उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में अब करीब छह महीने का ही समय बचा है। इसलिए भाजपा अब पूरी तरह चुनावी मोड में आ गई है। हालांकि उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों में 2022 में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं मगर केन्द्र से लेकर उत्तर प्रदेश तक के सभी प्रमुख भाजपा नेताओं का पूरा फोकस उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव पर ही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह उत्तर प्रदेश में सभाएं करके चुनावी बिगुल फूंक चुके हैं। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा दो दिन तक राजधानी लखनऊ में रहकर कई दौर की बैठकें कर चुके हैं।
2022 में होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा ने जो आक्रामक और माइक्रो रणनीति बनाई है उसका कोई तोड़ विपक्षी दलों को ढूंढ़े नहीं मिल रहा है। भाजपा के पास जहां एक ओर अमित शाह, जेपी नड्डा और सुनील बंसल जैसे मंझे हुए चुनावी रणनीतिकार हैं तो दूसरी ओर योगी आदित्यनाथ जैसा आक्रामक चुनावी चेहरा है। योगी आदित्यनाथ की बेदाग नेता और कड़क प्रशासक की छवि सभी विपक्षी दलों पर भारी पड़ रही है। विपक्षी दलों के बंटे होने और आपस में ही एक-दूसरे की टांग खींचने का लाभ भी भाजपा को मिल रहा है और इससे उसके नेताओं के हौसले और भी बुलंद हैं।
विपक्षी दल जहां इन दिनों क्षेत्रों में सम्मेलन, रैलियां और सभाएं करने में लगे हुए हैं, वहीं दूसरी ओर भाजपा के नेता चुनावी बैठकें कर बूथ स्तर तक चुनावी रणनीति बनाने में व्यस्त हैं। बूथ स्तर तक की यही माइक्रो चुनावी रणनीति भाजपा की असली ताकत है जिसका लाभ उसे हर चुनाव में मिलता है।
विपक्षी दल जहां चुनाव से पहले जातिगत समीकरणों को साधने और अधिक से अधिक जातियों को अपने पीछे लामबंद करने की मुहिम में लगे हुए हैं, वहीं दूसरी ओर भाजपा विकास और राम मन्दिर को चुनाव का प्रमुख मुद्दा बनाने जा रही है। अब ऊंट किस करवट बैठेगा यह तो आने वाला समय ही बताएगा, मगर 2022 का चुनावी घमासान काफी दिलचस्प होने जा रहा है।
कुछ महीने पहले ही सम्पन्न हुए जिला पंचायत अध्यक्षों एवं क्षेत्र पंचायत प्रमुखों के चुनाव में मिली भारी जीत से भाजपा के नेता और कार्यकर्ता जोश से लबरेज हैं। इस समय पार्टी का पूरा फोकस इन्हीं जिला पंचायत अध्यक्षों एवं ब्लाक प्रमुखों को सम्मानित करने पर है। आगामी विधानसभा चुनाव में वे इन विजयी अध्यक्षों एवं ब्लाक प्रमुखों के माध्यम से क्षेत्र के मतदाताओं को अपने पक्ष में करने का पूरा-पूरा प्रयास करेंगे। उन्हें इस काम में कहां तक सफलता मिलती है यह तो आने वाला समय ही बताएगा।
भाजपा और किस विपक्षी दल में मुख्य मुकाबला होगा यह तस्वीर अभी पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हो पा रही है। सपा, बसपा और कांग्रेस छोटे-छोटे दलों से गठबन्धन कर अपनी-अपनी ताकत बढ़ाने में लगे हुए हैं। बसपा एक बार फिर सोशल इंजीनियरिंग के सहारे चुनावी वैतरणी पार करने की जुगत में है तो सपा की पूरी कोशिश एम वाई (माई) समीकरण को साधने की है। इसमें वह और कई पिछली जातियों को शामिल कर अपनी ताकत बढ़ाने की मुहिम में जुटी हुई है। कांग्रेस अपने परंपरागत वोटों को फिर से अपने पाले में करने की फिराक में है।
हालांकि किसान आन्दोलन की वजह से उपजी किसानों की नाराजगी का लाभ विपक्षी दलों को मिल सकता है। भाजपा भी किसानों की नाराजगी से अच्छी तरह वाकिफ है और उसके चुनावी रणनीतिकार लगातार किसानों की नाराजगी दूर करने का प्रयास कर रहे हैं। किसानों के कल्याण के लिए नई-नई घोषणाएं की जा रही हैं। अब इसका कितना लाभ भाजपा को मिलेगा यह तो चुनाव के बाद ही पता लग पायेगा।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कोरोना की दूसरी लहर के दौरान एक कुशल सेनानायक की तरह जिस तरह खुद फ्रन्ट पर आकर कोरोना संक्रमितों की हर संभव मदद की और कोरोना प्रभावित हर जिले में जाकर स्वयं वहां के अधिकारियों और जनता से बात की, उससे उनकी छवि जनता के बीच में एक लोकप्रिय नेता की बनी है। इसका लाभ भी विधानसभा चुनाव में भाजपा को मिल सकता है।
सुरेश बाबू मिश्रा
(वरिष्ठ साहित्यकार)
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