महिला समानता दिवस मनाने की शुरुआत सबसे पहले अमेरिका में हुई थी। धीरे-धीरे विश्व के कुछ अन्य देशों में भी महिला समानता दिवस मनाया जाने लगा। वर्तमान समय में 26 अगस्त का दिन पूरे विश्व में महिला समानता दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसका उददेश्य महिलाओं की स्थिति को बेहतर बनाकर उन्हें समाज में समानता का अधिकार दिलाना है मगर हमारे देश में महिलाओं में व्याप्त अशिक्षा और पुरुषों पर उनकी निर्भरता के कारण महिला समानता अभी दूर कीं कौड़ी लगती है ।
महिला और पुरुष परिवार रूपी गाड़ी के दो पहिए हैं। यदि गाड़ी के दोनों पहिए बराबर होंगे तो वह सड़क पर सरपट दौड़ेगी। यही बात परिवार पर लागू होती है। यदि पुरुष और महिला दोनों का स्तर समान होगा तो परिवार का विकास तीव्र गति से होगा। इसलिए इक्कीसवीं सदी में महिला समानता का मुद्दा जोर-शोर से उठाया जा रहा है। महिला समानता दिवस मनाने का उद्देश्य महिला समानता के अभियान को गति प्रदान करना है।
हमारे देश में प्राचीनकाल में महिलाओं को समाज में उच्च स्थान प्राप्त था। कन्या को देवी के समान पूजा जाता था। उन्हें शिक्षा प्राप्त करने और अपना वर चुनने की पूर्ण स्वतंत्रता थी। इसलिए हमारे यहां “यत्र नारीयस्त पूज्यंते, रमंते तत्र देवता“ की अवधारणा विकसित हुई। अपाला, घोषा, गार्गी, सीता, सावित्री, अनुसुइया जैसी विदुषी एवं त्यागमयी महिलाओं ने पूरे विश्व में महिलाओं का मान बढ़ाया।
इसके बाद हमारे देश ने पराधीनता के लम्बे दंश को झेला। पहले मुगल आक्रांताओं और फिर अंग्रेजों ने हमारे देश पर शासन किया। हमारी सभ्यता, संस्कृति, संस्कार एवं सामाजिक संरचना सब पराधीन हो गए। विदेशी आक्रांताओं के भय से महिलाओं को पर्दे के पीछे धकेल दिया गया। इससे उनकी स्वतंत्रता, समानता एवं शिक्षा पर ग्रहण लग गया।
देश की आजादी के आन्दोलन में महिलाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, दक्षिण भारत की वीर रानी चेन्नमा, ऊधा देवी, झलकारी बाई जैसी वीर नारियों के महान बलिदानों को कौन नहीं जानता।
स्वराज आन्दोलन में भी देश की महिलाओं ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। कस्तूरबा गांधी, सरोजिनी नायडू, सुचेता कृपलानी, अरुणा आसिफ अली जैसी असंख्य महिलाओं ने स्वतंत्रता के लिए पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष किया।
स्वतंत्रता के बाद महिलाओं की दशा में बहुत तेजी से परिवर्तन आया है। आज वे जीवन के हर क्षेत्र में तेजी से प्रगति कर रही हैं। शिक्षा, चिकित्सा, विज्ञान, अन्तरिक्ष, खेल, राजनीति एवं प्रशासन के क्षेत्र में महिलाओं की भागेदारी बहुत तेजी से बढ़ी है। विजय लक्ष्मी पंडित, इन्दिरा गांधी, मदर टेरेसा, सुषमा स्वराज, मायावती, जयललिता, ममता बनर्जी, किरन बेदी, पीटी उषा, कुंजू रानी, बबिता फोगाट, मिताली राज, कल्पना चावला आदि महिलाओं ने अपने उत्कृष्ट कार्यों से पूरे विश्व में हमारे देश की कीर्ति पताका फहराई है।
आज देश में एक ओर महिलाए प्रगति और विकास के नए-नए आयाम गढ़ रही हैं मगर दूसरी ओर हमारे देश की एक स्याह तस्वीर भी है जो हमें शर्मसार करती है। वह तस्वीर है महिलाओं के साथ छेड़छाड़, घरेलू हिंसा और दुष्कर्म के बढ़ते मामले। इक्कीसवीं सदी के इस प्रगतिशीलता के दौर में भी देश की करोड़ों महिलाओं के साथ जानवरों जैसा सलूक किया जाता है।
नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार 2019 में हमारे देश में दुष्कर्म के 32033 मामले दर्ज हुए। आंकड़े बताते हैं कि देश में प्रति 16 मिनट पर दुष्कर्म की एक वारदात हो जाती है। महिलाओं के साथ दुष्कर्म के मामले में राजस्थान का देश में पहला और नागालैण्ड का अंतिम स्थान है। उत्तर प्रदेश दूसरे, मध्य प्रदेश तीसरे, महाराष्ट्र चौथे और केरल दुष्कर्म के मामले में पांचवें स्थान पर है।
थाम्पसन राइटर्स फाउण्डेशन द्वारा कराए गये हालिया सर्वे में महिलाओं की स्थिति के मामले में भारत को 19 देशों की सूची में अंतिम स्थान पर रखा गया है। अभी तक दुनिया में अरब देशों की महिलाओं की स्थिति को सबसे खराब माना जाता था परन्तु इस सर्वे में भारत के नौ राज्यों में महिलाओं की स्थिति को अरब देशों की महिलाओं से भी बदतर बताया गया है। ये राज्य हैं राजस्थान, बिहार, झारखण्ड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, बंगाल, महाराष्ट्र और आन्ध्र प्रदेश। भारत जैसे प्रगतिशील देश में महिलाओं की यह स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण एवं चिन्ताजनक है।
महिलाओं के इस शोषण एवं दुर्दशा का मूल कारण महिलाओं में व्याप्त व्यापक निरक्षरता एवं उनकी पुरुषों पर निर्भरता है। सन् 2011 की जनगणना के अनुसार देश की 35 प्रतिशत महिलाएं निरक्षर हैं। ये अंगूठाटेक महिलाएं अपने अधिकारों एवं कर्तव्यों के बारे में पूरी तरह अनभिज्ञ हैं। महिला समानता और महिला जागृति जैसे शब्द उनके लिए निरर्थक एवं बेमानी है। महिलाओं की इसी दयनीय स्थिति को देखकर शायद गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा होगा, “केहि विधि सजी, नारि जग माहीं। पराधीन सपनेहु सुख नाहीं।”
शिक्षा ही महिलाओं के पैरों के नीचे वह जमीन तैयार करती है जिस पर उसे अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा एवं अपने अधिकारों की लड़ाई लड़नी है। अशिक्षा का अजगर महिलाओं के विकास की राह रोके हुए है। इसलिए यदि हमें महिला समानता एवं महिला सशक्तीकरण जैसे नारों को यथार्थ के धरातल पर उतारना है तो महिलाओं में शिक्षा एवं ज्ञान के दीप जलाने होंगे। महिलाओं को शिक्षित करके ही हम उन्हें विकास की मुख्य धारा से जोड़ सकते हैं और उन्हें समाज में समानता का अधिकार दिला सकते हैं।
सुरेश बाबू मिश्रा
(साहित्यकार एवं शिक्षाविद्)
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