Opinion

कामकाजी महिला और संयुक्त परिवार

संयुक्त परिवार में माता-पिता अपने पुत्रों को इस बात के लिए प्रेरित करें कि वह अपनी कामकाजी पत्नी का रसोई में कामों में सहयोग करे, हाथ बंटाए न कि उसका “जोरू का गुलाम” कह कर मजाक बनाएं। स्त्री यदि घर और रसोई से निकल कर पुरुष के कंधे से कंधा मिलाकर कार्य कर सकती है तो पुरुष क्यों नहीं?

कामकाजी महिला और संयुक्त परिवार” शीर्षक को यदि हम ध्यान से पढ़ें और देखें तो पाएंगे कि उपरोक्त शीर्षक अपने भीतर दो उपशीर्षकों को समाहित किए हुए है। पहला- कामकाजी महिलाएं और दूसरा- संयुक्त परिवार। इसलिए यह जरूरी हो जाता है कि पहले इन्हीं दो शब्दों की व्याख्या की जाए। कामकाजी अर्थात नौकरी करने वाली वह महिला, जो परिवार के आर्थिक मोर्चों पर कंधे से कंधा मिलाकर योगदान करती हुई परिवार को एकसूत्र में बांधने का प्रयास करती है। दूसरा है संयुक्त परिवार अर्थात वह परिवार जिसमें माता-पिता, भाई-बहन सभी साथ रहते हुए एक दूसरे के सुख-दुख के साथी होते हैं। यदि वर्तमान संदर्भों में वैवाहिक विज्ञापनों पर दृष्टिपात करें तो हम पाते हैं कि ज्यादातर नौजवान कामकाजी अर्थात नौकरीपेशा-कमाऊ पत्नी की अभिलाषा रखते हैं। ऐसे लोग प्रायः पत्नी पति की संयुक्त आय से शीघातिशीघ्र साधन-संपन्न होना चाहते हैं। ऐसे में यदि कामकाजी महिला को विवाह उपरांत अपने होने वाले पति के परिवार के सदस्यों के साथ रहना पड़े तो संयुक्त परिवार में सभी सदस्यों के विचार और धारणाएं अलग-अलग होने के कारण उसे नए वातावरण में स्वयं को ढालना पड़ता है। वह स्वावलंबी होने के साथ-साथ यदि स्वतंत्रता पसंद है तो उसे संयुक्त परिवार में कई कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ सकता है।

कामकाजी महिला जब विवाह के बाद ससुराल जाती है तो उसे प्रायः दो मोर्चों संभालने पड़ते हैं। पहला- वह कामकाजी है, नौकरीपेशा है और उसे उस रूप में अपने आप को एडजस्ट करना। दूसरा- नए संयुक्त परिवार में सबका ध्यान रखते हुए उत्तम बहू बनकर रहना। कामकाजी महिला के यह काफी कठिन कार्य है कि वह संयुक्त परिवार और अपने कैरियर के बीच उचित संतुलन बनाकर चले। उसकी अपनी कुछ व्यक्तिगत, निजी प्राथमिकताएं होती हैं साथ ही कुछ प्रोफेशनल गोल्स भी होते हैं। वह दोनों ही मोर्चों पर सफलतना पाना चाहती है। इसलिए सबसे ज्यादा जरूरी है पति का सहयोग। अतः विवाह से पहले इस पहलू पर अपने होने वाले पति से अच्छी तरह इस मुद्दे ;विषयद्ध पर चर्चा अवश्य कर लेनी चाहिए ताकि भविष्य में पैदा होने वाली कठिनाइयों,  भ्रमों से बच सके।

जब आप विवाह संस्था के सामाजिक बंधन में बंधते हैं तो परिवार के कुछ नए नियम आपको परिभाषित करने का प्रयास करेंगे, जिन्हें जानते और समझते हुए कामकाजी महिला को दोनों के बीच सामंजस्य बैठाने का प्रयास करना चाहिए। सुपर वुमेन के रूप में परिभाषित होने के लिए संभव है कामकाजी महिला को उसकी कीमत चुकानी पड़े।

21 वीं सदी की कामकाजी महिलाओं को संयुक्त परिवार की पुरातन संरचना में रखने पर क्या होता है? इस विषय पर हर किसी की व्यक्तिगत राय भिन्न हो सकती है। वास्तव में यह स्थिति एक सिक्के के दो पहलुओं के समान है। कुछ की राय इसके पक्ष में तो कुछ की विपक्ष में हो सकती है। लेकिन, यदि गौर किया जाए तो कामकाजी महिलाएं संयुक्त परिवार की पक्षधर नजर आती हैं। इसके कुछ कारण हैं। संयुक्त परिवार में माता-पिता अपने पुत्रों को इस बात के लिए प्रेरित करें कि वह अपनी कामकाजी पत्नी का रसोई में कामों में सहयोग करे, हाथ बंटाए न कि उसका “जोरू का गुलाम” कह कर मजाक बनाएं। स्त्री यदि घर और रसोई से निकल कर पुरुष के कंधे से कंधा मिलाकर कार्य कर सकती है तो पुरुष क्यों नहीं? पुरुष दैनिक कार्यों में कामकाजी महिलाओं की सहायता कर सकते हैं। जब महिला नौकरी के लिए घर से बाहर निकलती है तो वह अपने बच्चों को पर्याप्त समय नहीं दे पाती है। ऐसे में उसके बच्चों का पूरा ध्यान रखें, वह भी बिना किसी तनाव के। इसके दो लाभ होंगे- एक तो कामकाजी महिला बिना किसी तनाव के अपने दफ्तर के कार्यों को सुचारू रूप से कर पाने में सक्षम होगी और दूसरा- परिवार के बुर्जुगों को भी बच्चों के साथ समय बिताने का अवसर मिलेगा। उनका मन लगेगा, साथ ही बच्चों को परिवार का प्यार, दुलार, संस्कार मिलेंगे।

संयुक्त परिवारों में पनपता है भाईचार और संस्कार

सर्दी,  गर्मी और बरसात के मौसम में कार्यालय के लिए भागते हुए क्रेच में बच्चे को छोड़ते समय कामकाजी महिला के हृदय में उठने वाली टीस को शायद ही कभी कोई अन्य महसूस कर पाए किंतु यदि संयुक्त परिवार है तो वह बच्चे को कोमल और सुरक्षित हार्थों के सुपुर्द कर कार्यालय जा सकती है। बच्चों में भाईचारे की भावना, प्यार की अभिव्यक्ति और भावना, आपसी संबंधों का आदर करना, बड़ों के पांव छूकर आशीर्वाद लेना आदि संस्कार संयुक्त परिवारों में ही पनपते देखे गए हैं। कामकाजी महिला जब थक-हरी कार्यालय से घर लौटे तो दरवाजा खोल स्नेहिल मुस्कराहट के साथ उसका स्वागत करने के साथ ही उसे एक गिलास पानी देने से तो मानो दिनभर की उसकी थकान क्षणभर में छूमंतर हो जाती है और उसमें नई स्फूर्ति का संचार हो जाता है और वह पुनः घर के कार्यों में जुट जाती है।

बुजुर्ग शिक्षक की भूमिका में रहें, एकपक्षीय जज न बनें

ऐसी महिला को यूं ही सुपरमैन नहीं कहते, वह काम भी उसी श्रेणी के करती है। स्वस्थ पारिवारिक वातावरण वहीं संभव है जहां पारिवारिक मूल्यों को समझने और समझाने वाले बुजुर्ग हों। जो गलती करने पर शिक्षक की तरफ समझाएं, न कि पुत्र के पक्ष में एक पक्षीय फैसला सुनाने वाले जज की भूमिका निभाएं। संयुक्त परिवार में सभी लोग मिल-जुलकर घर का खर्च चलाने में सहायता करते हैं जिससे जिम्मेदारी का बोझ किसी एक के कंधों पर नहीं पड़ता है। मुश्किलों का सामना सभी मिल-जुलकर, एकजुट होकर करते हैं, सभी एक दूसरे की मुश्किलों का हल निकालते हैं। त्यौहात-पर्व आदि इकट्ठे मनाने से त्यौहारों का आनंद दोगना हो जाता है।

कुंठा और अकेलेपन से बचाचा है संयुक्त परिवार

आजकल की भागदौड़ वाली जिंदगी में कुंठा और अकेलापन एक बड़ी बीमारी के रूप में उभर रहे हैं किंतु यदि हम संयुक्त परिवार में सभी सदस्यों के साथ हंसी-खुशी का समय बिताते हैं तो इन बीमारियों से स्वतः ही मुक्ति पा जाते हैं।

हालांकि कुछ लोग सिक्के के दूसरे पहलू को देखते हुए एकल परिवार की वकालत कर सकते हैं और उसकी उपलब्धियों का गुणगान कर सकते हैं। ऐले लोगों को एक कविता की यहे पंक्तियां अवश्य पढ़नी चाहिए-

मैं आज युवा पीढ़ी को एक बात बताना चाहूंगा

उनके अंतः मन में एक दीप जलाना चाहूंगा

ईश्वर ने जिसे जोड़ा है, उसे तोड़ना ठीक नहीं

ये रिश्ते हमारी जागीर हैं ये कोई भीख नहीं

संस्कार और संस्कृति रग-रग में बसते थे

उस दौर में हम मुस्कुराते नहीं खुलकर हंसते थे

इंसान अब खुद से अब दूर होता जा रहा है। संयुक्त परिवार का दौर अब खोता जा रहा है। हमें यदि अपनी पुरातन संस्कृति को जीवित रखना है तो पारिवारिक सहयोग जो कि संयुक्त परिवार प्रथा का अभिन्न अंग है, को अपनाना होगा।

बेशक कामकाजी महिलाओं को संयुक्त परिवार में रहते हुए कई बार अपनी इच्छाओं का दमन करना पड़ता है. ज्यादा कार्य करने पड़ते हैं, बड़े-बूढ़ों की इज्जत करनी पड़ती है और उनका ख्याल रखना होता है परंतु हमें साथ ही यह भी याद रखना चाहिए कि कुछ पाने के लिए कुछ खोना प्रकृति का नियम है।

इन पंक्तियों की लेखक स्वयं एक कामकाजी महिला शिक्षक है और संयुक्त परिवार में रहते हुए मुझसे ज्यादा भला उसकी अहमियत कौन जान सकता है?  यह एक विवाद का विषय हो सकता है परंतु यदि हम पारिवारिक मूल्यों के तराजू में इसके लाभों को तौलेंगे तो निसंदेह संयुक्त परिवार का पलड़ा भारी ही पाएंगे।

अंत में मैं केवल यह कहना चाहूंगी कि इस विषय पर हर किसी का व्यक्तिगत मत भिन्न हो सकता है। अपनी राय आप किसी पर थोप नहीं सकते। विभिन्न विचारधाराओं वाली महिलाएं भिन्न-भिन्न मत रख सकती हैं। संयुक्त परिवार में कामकाजी महिला भलीभांति जानती है कि परिवार में कायदा नहीं अनुशासन होता है, परिवार में भय नहीं भरोसा होता है। कामकाजी महिला के अंतरमन में झांक कर देखिए, आप उसमें केवल संयुक्त परिवार की छवि पाएंगे।

संयुक्त परिवार में एक दूजे का साथ है होता

कोई सदस्य कभी भी हिम्मत नहीं खोता,

खुशकिस्मत होते हैं वे जिन्हें परिवार मिला,

वरना यह हर किसी के नसीब में नहीं होता            

मीना सिन्हा

(शिक्षक, राजकीय विद्यालय, उत्तम नगर, नई दिल्ली)

gajendra tripathi

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