Opinion

विश्व तम्बाकू निषेध दिवस : किशोरों को धूम्रपान से बचाना बड़ी चुनौती

विश्व तम्बाकू निषेध दिवस 31 मई पर विशेष

31 मई का दिन पूरे विश्व में तम्बाकू निषेध दिवस के रूप में मनाया जाता है। सन् 1987 में पहला विश्व तम्बाकू निषेध दिवस आज ही के दिन मनाया गया था। तब से यह सिलसिला लगातार जारी है। तम्बाकू निषेध दिवस मनाने का उद्देश्य लोगों को तम्बाकू के सेवन से होने वाली हानियों के प्रति सचेत कर उन्हें तम्बाकू मुक्त और स्वस्थ रहने के लिए जागरूक करना है।

तम्बाकू निषेध दिवस 2021 की थीम है-“विजेता बनने के लिए तम्बाकू छोड़ो।“ विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा विशेष रूप से किशोरों और युवाओं को धूम्रपान से दूर रखने के लिए पूरे विश्व में एक रचनात्मक अभियान चलाया जाएगा। स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी, स्वयंसेवी संस्थाएं एवं शिक्षण संस्थाए विभिन्न कार्यक्रमो के माध्यम से किशोरों एवं युवाओं को यह संदेश देने का प्रयास करेंगी कि वे यदि जीवन के किसी भी क्षेत्र में विजेता बनना चाहते हैं तो उन्हें तम्बाकू से बनने वाले किसी भी उत्पाद का सेवन करने से बचना होगा। इस रचनात्मक अभियान की शुरुआत 31 मई 2021 से होगी। यह अभियान धरातल पर यथार्थ रूप में कितना सफल होगा यह अभी भविष्य के गर्भ में है।

धूम्रपान एक व्यसन है। धूम्रपान करने वाला व्यक्ति अपनी गाढ़ी कमाई की ढेर सारी पूंजी सिगरेट, बीड़ी एवं दियासलाई खरीदने पर व्यय कर देता है और बदले में उसे क्या मिलता है- केवल धुंआ और राख। यही नहीं उसे दमा, तपेदिक, श्वांस रोग, बीपी, डायबिटीज एवं कैंसर जैसी प्राणघातक बीमारियां रिटर्न गिफ्ट के रूप में मिलती हैं। अपनी गाढ़ी कमाई के एक बड़े हिस्से को धूम्रपान पर व्यय कर देने के कारण वह सदैव आर्थिक तंगी का शिकार रहता है और उसका पारिवारिक जीवन भी कलहपूर्ण रहता है।

वर्तमान समय में बड़ी संख्या में लोग किसी न किसी रूप में तम्बाकू का सेवन कर रहे हैं। सिगरेट, बीड़ी, गुटखा, तम्बाकू इत्यादि के रूप में वे अपने शरीर में इस जहर को घोल रहे हैं। आज देश की आबादी का बड़ा हिस्सा तम्बाकू की गिरफ्त में आ गया है। फैक्ट्री हो या कारखाना, कार्यालय हो या विद्यालय, खेत हो या खलिहान, गांव की चैपाल हो या फिर कोई सार्वजनिक स्थल, बस हो या ट्रेन हर जगह बड़ी संख्या में लोग गुटखा, खैनी, बीड़ी, सुरती या सिगरेट का सेवन करते मिल जाएंगे। पहले ग्रामीण अंचलों में श्रमिक महिलाएं बीड़ी पीते या तम्बाकू का सेवन करते मिलती थीं, मगर अब शहरी महिलाओं में भी सिगरेट पीने और गुटखा खाने का चलन बहुत तेजी से बढ़ रहा है।

12 से 18 वर्ष तक की उम्र के किशोर-किशोरियों को टीन एजर्स कहते हैं। देश में टीन एजर्स की संख्या करोड़ों में है। यह जीवन का सबसे नाजुक पड़ाव होता है। इस अवस्था में किशोरों पर उनकी संगति का सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है। टीन एजर्स में भी तम्बाकू उत्पादों की लत बढ़ती जा रही है जो गम्भीर चिंता का विषय है। अभी तक तम्बाकू की लत केवल बाल श्रमिकों में देखने को मिलती थी मगर अब कॉलेज परिसरों, छात्रावासों और यहां तक की छात्राओं के लिए बने छात्रावास में भी सिगरेट का धुआं मंडराने लगा है।

छात्र-छात्राओँ और खासकर किशओर-किशोरियों को तम्बाकू उत्पादों की लत से बचाना एक बड़ी चुनौती है। यदि समय रहते इसे रोकने के लिए कारगर प्रयास नहीं किये गए तो निकट भविष्य में इसके गम्भीर दुष्परिणाम सामने आएगे।

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा कोरोना संक्रमण के सम्बंध में यह आशंका व्यक्त की गई है कि तम्बाकू उत्पादों का सेवन करने वाले व्यक्तियों में अन्य व्यक्तियों की तुलना मे संक्रमण का खतरा कई गुना अधिक हैं ऐसे में टीन एजर्स को लेकर चुनौती और जटिल है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में अगस्त से अक्टूबर के मध्य कोरोना की तीसरी लहर आने की सम्भावना है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ यह आशंका व्यक्त कर रहे हैं कि कोरोना की तीसरी लहर 18 वर्ष से कम उम्र के किशोरों एवं बच्चों के लिए अधिक घातक होगी। इसलिए टीन एजर्स को कोरोना संक्रमण और तम्बाकू उत्पादों के सेवन से बचाने की दोहरी चुनौती हमारे सामने है।

किशोर एवं युवा हमारे देश का भविष्य हैं। उनके कंधों पर राष्ट्र के निर्माण की भारी जिम्मेदारी है। इसलिए उन्हें तम्बाकू उत्पादकों की लत से बचाना स्वास्थ्य विभाग, सामाजिक संस्थाओँ, अभिभावकों ओर शिक्षकों की सामूहिक जिम्मेदारी है। उन्हें धूम्रपान की लत से मुक्त करके ही हम उन्हें राष्ट्र का क्षमतावान एवं योग्य नागरिक बना सकते हैं।

सुरेश बाबू मिश्रा

(सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य, बरेली)

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