किला पुल के पास कटघर रेलवे क्रॉसिंग को पार करते ही बायें हाथ पर स्थित है बाबा चौमुखीनाथ मन्दिर। इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग देखने में ही अति प्राचीन अनुभव होता है। इस मन्दिर की विशेषता यह है कि यहां पूर्ण शिव परिवार पूर्ण विराजमान है। यहां शिववालय में इस प्राचीन शिवलिंग के निकट ही श्रीगणेश, माता पार्वती, नन्दी के साथ षड्मुख अर्थात छह मुख वाले श्रीकार्तिकेय की भी अति प्राचीन प्रतिमा स्थापित है। श्रीकार्तिकेय अपने वाहन मयूर पर विराजमान हैं। साथ अखिल विश्व को प्रकाशमान करने वाले भगवान सूर्य में अपने रथ पर विराजे हुए हैं।
भगवान श्री कार्तिकेय भगवान शिव और माता पार्वती के ज्येष्ठ पुत्र हैं। इनका मूल नाम स्कन्द है, किन्तु कृतिकाओं द्वारा पालन-पोषण के कारण इनको कार्तिकेय कहा गया। ये इसी नाम से प्रसिद्ध हुए। देव सेनापति कार्तिकेय के स्कन्द नाम का अर्थ होता है विनाश। कार्तिकेय का जन्म आसुरी शक्तियों के विनाश के लिए हुआ था। स्कन्द पुराण के अनुसार किसी बात से नाराज होकर कार्तिकेय कैलाश छोड़कर दक्षिण की ओर चले गये। इन्हें दक्षिण भारत को ही अपनी कर्मस्थली भी बना लिया। दक्षिण में तमिलनाडु में इनके अनेक प्राचीन मंदिर हैं। ये दक्षिण के रक्ष देवता हैं और मुरुगन के नाम से प्रसिद्ध हैं। उत्तर छोड़ कर दक्षिण चले जाने के कारण ही उत्तर भारत में इनकी प्रतिमा दुर्लभ ही मिलती हैं।
बाबा चौमुखी नाथ मंदिर में स्थापित प्राचीन शिवलिंग पर चारों दिशाओं में मुखाकृति बनी हैं, जो प्राचीनता के कारण स्पष्ट नहीं हो पाती हैं।
प्राचीन काल में बरेली को अहिच्छत्र और उत्तर पांचाल नगरी कहा जाता था। रुहेलखण्ड विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति विभाग के प्रोफेसर डॉ. अभय सिंह बताते हैं कि ऐतिहासिक प्रमाण बताते हैं कि दूसरी शताब्दी में अहिच्छत्र में महाराजा अच्युत का राज था। दक्षिण के राजा समुद्रगुप्त अपने राज्य का विस्तार करते हुए अहिच्छत्र तक आ गये और युद्ध में अच्युत को हरा दिया। अपने राज्य में समुद्रगुप्त ने यहां के मंदिरों में कार्तिकेय की प्रतिमाओं की स्थापना की थी।
प्रो. अभय सिंह के अनुसार कार्तिकेय की प्रतिमाओं की स्थापना का यह क्रम लगभग पांचवी शताब्दी के अंत तक चला। प्रो. अभय बताते हैं कि कार्तिकेय की पूजा इस क्षेत्र में कुमार गुप्त के काल में काफी अधिक प्रचलित थी। संभव है कि यह मंदिर भी इसी काल में बना हो।
सामान्यतः दक्षिण के मंदिरों में कार्तिकेय के साथ भगवान सूर्य की प्रतिमा मिलती हैं, जो कि बाबा चौमुखीनाथ मंदिर में भी हैं। यहां मयूर यानि मोर पर सवार कार्तिकेय के बराबर में ही अश्वरथ पर सवार भगवान सूर्य की भी अति प्राचीन प्रतिमा स्थापित है।
पुराणों और ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर कार्तिकेय और सूर्य दोनों ही क्रोध और अग्नि यानि तेज के देवता माने गये हैं। स्कन्द पुराण के अनुसार देवासुर संग्राम में विजय बाद भी कार्तिकेय की क्रोधाग्नि शान्त नहीं हुई तो उन्होंने दक्षिण में उज्जैन में माता पार्वती आशीर्वाद से शिक्षा नदी में कूदकर अक्षय वट वृक्ष के निकट अपने क्रोध को शान्त किया था।
बरेली के बाबा चौमुखीनाथ मंदिर में श्रीहनुमान जी की विशाल दक्षिणमुखी प्रतिमा भी कई दशकों से स्थापित है। श्रीहनुमान जी की दक्षिणमुखी प्रतिमा के पूजन की महिमा तमाम ग्रन्थों में विस्तार से वर्णित है। कहते हैं कि दक्षिणमुखी हनुमान जी के पूजन और प्रार्थना से भक्तों के संकट अतिशीघ्र कट जाते हैं।
मंदिर प्रांगण में ही दो अलग-अलग मंदिरों में महाकाली की विशाल प्रतिमा और काल भैरव की अतिप्राचीन प्रतिमा भी विराजमान है। कालभैरव मंदिर और महाकाली मंदिर में अखण्ड ज्योति जलती रहती है। इन प्रतिमाओं के समक्ष खड़े होने मात्र से अद्भुत का ऊर्जा का संचार मनुष्य को शरीर में अनुभव होता है। साथ ही मंदिर में अतिप्राचीन पीपल का वृक्ष है, जिसे शनिदेव का प्रतीक मानकर शनिवार को विशेष पूजा करते हैं।
मन्दिर के पुजारी पंडित गोपाल शर्मा बताते हैं कि बाबा चौमुखी नाथ मंदिर में भगवान शिव के जलाभिषेक और साथ ही भगवान कार्तिकेय की पूजा से भक्ति का सम्पूर्ण फल प्राप्त होता है। वस्तुतः सम्पूर्ण शिव परिवार की पूजा के लिए उत्तर के मंदिरों में शिव, माता पार्वती, श्रीगणेश और नन्दी की पूजा की जाती है और कार्तिकेय के पूजन के लिए दक्षिण के राज्यों विशेषकर तमिल नाडु और आंध्र प्रदेश जाना होता है। ऐसे में बाबा चौमुखी नाथ मंदिर रुहेलखण्ड में एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां सम्पूर्ण श्रीशिव परिवार विराजमान है और उत्तर तथा दक्षिण का संगम है।
पंडित गोपाल शर्मा के अनुसार इस प्रकार देखा जाये तो बाबा चौमुखीनाथ मंदिर में तीनों जीवित महाशक्तियां महादेव भगवान शिव, महाकाली और श्रीहनुमान जी विराजमान हैं। यहां पूजन-दर्शन को भक्तों को अलौकिक दिव्यता का अनुभव अपने जीवन में होता है।
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