दिवाली 2020 : 14 नवंबर को है दीपावली, जानिए क्या है शुभ मुहूर्त और महालक्ष्‍मी पूजन का विधान

दीपावली। यह शब्द सुनते ही या ख्याल में आते जगमग जलते दिए, लक्ष्मी-गणेश पूजन, ना-ना प्रकार के पकवान और लोगों के चेहरे पर तिरता उत्साह बरबस ही कौंध जाते हैं। दीपावली या दिवाली यों तो पांच पर्वों (धनतेस, नरक चौदस, दीपावली, अन्नकूट और भैयादूज का समुच्च या महापर्व है पर इनमें मुख्य पर्व दीपावली को ही माना जाता है। हिन्‍दू पंचांग के अनुसार दीपावली कार्तिक मास के कृष्‍ण पक्ष की अमावस्‍या को मनाई जाती है।

मान्‍यता है कि दीपावली पूजन विधि-विधान से  करने पर दरिद्रता दूर होती है, सुख-समृद्धि बढ़ती है और बुद्धि का विकास होता है। सनातन धर्मावलंबियों (हिन्‍दुओं) के अलावा सिख, बौद्ध और जैन धर्मों के लोग भी किसी न किसी रूप में दीवाली मनाते हैं।

दीपावली 2020 की तिथि और शुभ मुहूर्त

दीवाली/लक्ष्‍मी पूजन की तिथि: 14 नवंबर 2020 
अमावस्‍या तिथि प्रारंभ: 14 नवंबर 2020 को दोपहर 02 बजकर 17 मिनट से 
अमावस्‍या तिथि समाप्‍त: 15 नवंबर 2020  को सुबह 10 बजकर 36 मिनट तक 
लक्ष्‍मी पूजा मुहूर्त: 14 नवंबर 2020 को शाम 05 बजकर 28 मिनट से शाम 07 बजकर 24 मिनट तक

महालक्ष्मी पूजन की सामग्री

लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमा, लक्ष्मी जी को अर्पित किए जाने वाले वस्त्र, लाल कपड़ा, सप्तधान्य (सात तरह का अन्न), गुलाल, रोली, कुंकुंम, केसर, अक्षत, लौंग, अगरबत्ती, हल्दी की गांठ, अर्घ्य पात्र, फूल (कमल के पुष्प का विशेष महत्व है), फूलों की माला, सुपारी, सिंदूर, इत्र, इलायची, कपूर, सीताफल, कमलगट्टा, कुशा, साबुत धनिया (जिसे धनतेरस पर खरीदा हो), खील-बताशे, गंगाजल, देसी घी, चंदन, चांदी का सिक्का, दूध, दही, दीपक, पान, दूब, गेहूं, चावल, धूप बत्ती, मिठाई, पंचमेवा, पंच पल्लव (गूलर, गांव, आम, पाकर और बड़ के पत्ते), तेल, मौली, रूई, पांच यज्ञोपवीत (धागा), रोली, चीनी, शहद, नारियल,

लक्ष्‍मी पूजन की विधि और मूर्ति स्‍थापना

धनतेरस के दिन माता लक्ष्‍मी और भगवान गणेश की नई मूर्ति खरीदकर दीपावली की रात उसका पूजन किया जाता है। सबसे पहले एक चौकरी पर लाल वस्‍त्र बिछाकर उस पर मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की प्रतिमा को विराजमान करें। जलपात्र या लोटे से चौकी के ऊपर जल छिड़कते हुए इस मंत्र का उच्‍चारण करें-
ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्‍थां गतोपि वा। य: स्‍मरेत् पुण्‍डरीकाक्षं स: वाह्याभंतर: शुचि:।। 

इसके बाद अपने ऊपर और अपने पूजा के आसन पर जल छिड़कते हुए इस मंत्र का उच्‍चारण करें- 
पृथ्विति मंत्रस्‍य मेरुपृष्‍ठ: ग ऋषि: सुतलं छन्‍द: कूर्मोदेवता आसने विनियोग:।।  
ॐ पृथ्‍वी त्‍वया धृता लोका देवि त्‍वं विष्‍णुना धृता। 
त्‍वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम् नम:।।
पृथ्वियै नम: आधारशक्‍तये नम:।।

इन मंत्रों का उच्‍चारण करते हुए गंगाजल से आचमन करें-

ॐ केशवाय नम:, ॐ नारायणाय नम: ॐ माधवाय नम: 

इस मंत्र का उच्‍चारण करते हुए माता लक्ष्‍मी का ध्‍यान करें-
या सा पद्मासनस्था विपुल-कटि-तटी पद्म-पत्रायताक्षी, 
गम्भीरार्तव-नाभि: स्तन-भर-नमिता शुभ्र-वस्त्रोत्तरीया।
या लक्ष्मीर्दिव्य-रूपैर्मणि-गण-खचितैः स्‍वापिता हेम-कुम्भैः,
सा नित्यं पद्म-हस्ता मम वसतु गृहे सर्व-मांगल्य-युक्ता।।

इस मंत्र का उच्‍चारण करते हुए मां लक्ष्‍मी का आवाह्न करें-
आगच्‍छ देव-देवेशि! तेजोमयि महा-लक्ष्‍मी!
क्रियमाणां मया पूजां, गृहाण सुर-वन्दिते!
।। श्रीलक्ष्‍मी देवीं आवाह्यामि ।।

अब इस मंत्र का उच्‍चारण करते हुए हाथ में पांच पुष्‍प अंजलि में लेकर अर्पित करें-
नाना रत्‍न समायुक्‍तं, कार्त स्‍वर विभूषितम्।
आसनं देव-देवेश ! प्रीत्‍यर्थं प्रति-गह्यताम्।।
।। श्रीलक्ष्‍मी-देव्‍यै आसनार्थे पंच-पुष्‍पाणि समर्पयामि।। 

स्‍वागत: अब स्‍वागतम् मंत्र (श्रीलक्ष्‍मी देवी !) का उच्‍चारण करते हुए मां लक्ष्‍मी का स्‍वागत करें

पाद्य: अब इस मंत्र का उच्‍चारण करते हुए मां लक्ष्‍मी के चरण धोने के लिए जल अर्पित करें-
पाद्यं गृहाण देवेशि, सर्व-क्षेम-समर्थे, भो:!
भक्तया समर्पितं देवि, महालक्ष्‍मी! नमोsस्‍तुते।।
।। श्रीलक्ष्‍मी-देव्‍यै पाद्यं नम: ।।

अर्घ्‍य: इस मंत्र का उच्‍चारण करते हुए मां लक्ष्‍मी को अर्घ्‍य दें-
नमस्‍ते देव-देवेशि! नमस्‍ते कमल-धारिणि!
नमस्‍ते श्री महालक्ष्‍मी, धनदा देवी! अर्घ्‍यं गृहाण।
गंध-पुष्‍पाक्षतैर्युक्‍तं, फल-द्रव्‍य-समन्वितम्।
गृहाण तोयमर्घ्‍यर्थं, परमेश्‍वरि वत्‍सले!
।। श्रीलक्ष्‍मी देव्‍यै अर्घ्‍यं स्‍वाहा ।।

स्‍नान: इस मंत्र का उच्‍चारण करते हुए मां लक्ष्‍मी की प्रतिमा को जल से स्‍नान कराएं। इसके पश्चात पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और चीनी का मिश्रण) से स्‍नान कराएं। आखिर में शुद्ध जल से स्‍नान कराएं-
गंगासरस्‍वतीरेवापयोष्‍णीनर्मदाजलै:।
स्‍नापितासी मय देवी तथा शांतिं कुरुष्‍व मे।।   
आदित्‍यवर्णे तपसोsधिजातो वनस्‍पतिस्‍तव वृक्षोsथ बिल्‍व:।
तस्‍य फलानि तपसा नुदन्‍तु मायान्‍तरायश्र्च ब्रह्मा अलक्ष्‍मी:।
।। श्रीलक्ष्‍मी देव्‍यै जलस्‍नानं समर्पयामि ।।

वस्‍त्र: अब मां लक्ष्‍मी को मौली के रूप में वस्‍त्र अर्पित करते हुए इस मंत्र का उच्‍चारण करें-
दिव्‍याम्‍बरं नूतनं हि क्षौमं त्‍वतिमनोहरम् ।
दीयमानं मया देवि गृहाण जगदम्बिके।।
उपैतु मां देवसख: कीर्तिश्च मणिना सह।
प्रादुर्भूतो सुराष्‍ट्रेsस्मिन् कीर्तिमृद्धि ददातु मे। 
।। श्रीलक्ष्‍मी देव्‍यै वस्‍त्रं समर्पयामि ।।

आभूषण:  इस मंत्र का उच्‍चारण करते हुए मां लक्ष्‍मी को आभूषण अर्पित करिए-
रत्‍नकंकड़ वैदूर्यमुक्‍ताहारयुतानि च।
सुप्रसन्‍नेन मनसा दत्तानि स्‍वीकुरुष्‍व मे।।
क्षुप्तिपपासामालां ज्‍येष्‍ठामलक्ष्‍मीं नाशयाम्‍यहम्।
अभूतिमसमृद्धिं च सर्वात्रिर्णद मे ग्रहात्।।   
।। श्रीलक्ष्‍मी देव्‍यै आभूषणानि समर्पयामि।।

सिंदूर:  मां लक्ष्‍मी को सिंदूर चढ़ाएं-
ॐ सिन्‍दुरम् रक्‍तवर्णश्च सिन्‍दूरतिलकाप्रिये।
भक्‍त्या दत्तं मया देवि सिन्‍दुरम् प्रतिगृह्यताम्।।
।। श्रीलक्ष्‍मी देव्‍यै सिन्‍दूरम् सर्पयामि ।।

कुमकुम: अब कुमकुम समर्पित करें-
ॐ कुमकुम कामदं दिव्‍यं कुमकुम कामरूपिणम्।
अखंडकामसौभाग्‍यं कुमकुम प्रतिगृह्यताम्।।
।। श्रीलक्ष्‍मी देव्‍यै कुमकुम सर्पयामि ।।

अक्षत: अक्षत चढ़ाएं-
अक्षताश्च सुरश्रेष्‍ठं कुंकमाक्‍ता: सुशोभिता:।
मया निवेदिता भक्‍तया पूजार्थं प्रतिगृह्यताम्।। 
।। श्रीलक्ष्‍मी देव्‍यै अक्षतान् सर्पयामि ।।

गंध: अब माता लक्ष्‍मी को चंदन समर्पित करें-
श्री खंड चंदन दिव्‍यं, गंधाढ्यं सुमनोहरम्।
विलेपनं महालक्ष्‍मी चंदनं प्रति गृह्यताम्।
।। श्रीलक्ष्‍मी देव्‍यै चंदनं सर्पयामि ।।

पुष्‍प: पुष्‍प समर्पिम करें- 
यथाप्राप्‍तऋतुपुष्‍पै:, विल्‍वतुलसीदलैश्च।
पूजयामि महालक्ष्‍मी प्रसीद मे सुरेश्वरि।
।। श्रीलक्ष्‍मी देव्‍यै पुष्‍पं सर्पयामि ।।

अंग पूजन: अब इन मंत्रों का उच्‍चारण करते हुए बाएं हाथ में फूल, चावल और चंदन लेकर दाहिने हाथ से मां लक्ष्‍मी की प्रतिमा के आगे रखें-
ॐ चपलायै नम: पादौ पूजयामि।
ॐ चंचलायै नम: जानुनी पूजयामि। 
ॐ कमलायै नम: कटिं पूजयामि।
ॐ कात्‍यायन्‍यै नम: नाभि पूजयामि।
ॐ जगन्‍मात्रै नम: जठरं पूजयामि।
ॐ विश्‍व-वल्‍लभायै नम: वक्ष-स्‍थलं पूजयामि।
ॐ कमल-वासिन्‍यै नम: हस्‍तौ पूजयामि।
ॐ कमल-पत्राक्ष्‍यै नम: नेत्र-त्रयं पूजयामि।
ॐ श्रियै नम: शिर पूजयामि।

अब मां लक्ष्‍मी को धूप, दीपक और नैवेद्य (मिष्‍ठान) समपर्ति करें। फिर उन्‍हें पानी देकर आचमन कराएं। इसके बाद ताम्‍बूल (पान) अर्पित करें और दक्षिणा दें। इसके पश्चात  माता महालक्ष्‍मी की बाएं से दाएं प्रदक्षिणा करें।  मां लक्ष्‍मी को साष्‍टांग प्रणाम कर उनसे पूजा के दौरान हुई ज्ञात-अज्ञात भूल के लिए माफी मांगें।

मां लक्ष्‍मी की आरतीः विधिपबर्वक पूजा संपन्न होने के पश्चात माता लक्ष्मी की आरती उतारें-

ॐ जय लक्ष्मी माता,
मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निसदिन सेवत,
हर विष्णु विधाता॥

उमा, रमा, ब्रम्हाणी,
तुम ही जग माता।
सूर्य चद्रंमा ध्यावत,
नारद ऋषि गाता॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता…॥

दुर्गा रूप निरंजनि,
सुख-संपत्ति दाता।
जो कोई तुमको ध्याता,
ऋद्धि-सिद्धि धन पाता॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता…॥

तुम ही पाताल निवासनी,
तुम ही शुभदाता।
कर्म-प्रभाव-प्रकाशनी,
भव निधि की त्राता॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता…॥

जिस घर तुम रहती हो,
ताँहि में हैं सद्‍गुण आता।
सब सभंव हो जाता,
मन नहीं घबराता॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता…॥

तुम बिन यज्ञ ना होता,
वस्त्र न कोई पाता।
खान पान का वैभव,
सब तुमसे आता॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता…॥

शुभ गुण मंदिर सुंदर,
क्षीरोदधि जाता।
रत्न चतुर्दश तुम बिन,
कोई नहीं पाता॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता…॥

महालक्ष्मी जी की आरती,
जो कोई नर गाता।
उँर आंनद समाता,
पाप उतर जाता॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता…॥

ॐ जय लक्ष्मी माता,
मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निसदिन सेवत,
हर विष्णु विधाता॥

भक्तजन गणेश आरती एवं प्रतिदिन की जाने वाली भगवान श्रीविष्णु हरि (नारायण) की आरती (ॐ जय जगदीश हरे…) का विधिपूर्वक गायन भी कर सकते हैं।

नोट :  यह आलेख ज्योतिषाचार्य व पुरोहित पंडित जमुना दत्त जोशी, पुरोहित ललित मोहन बहुगुणा, ज्योतिषविद् अनुवंदना माहेश्वरी एवं ज्योतिषविद् रेनू त्रिपाठी से समय-समय पर हुई वार्ता और धर्मग्रंथों पर आधारित है। स्थान विशेष की परंपरा के अनुरूप पूजन विधि में कुछ अंतर हो सकता है।)

gajendra tripathi

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