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यहां होती है शिव के अंगूठे की पूजा, दिन में तीन बार बदलता है शिवलिंग का रंग!

माउंट आबू। दुनियाभर में भगवान शिव के कई मंदिर हैं। सभी मंदिर की अपनी कोई न कोई विशेषता भी है। राजस्थान के हिल स्टेशन माउंट आबू को अर्धकाशी के नाम से भी जाना जाता है क्योकि यहां पर भगवान शिव के कई प्राचीन मंदिर हैं। पुराणों के अनुसार, वाराणसी भगवान शिव की नगरी है तो माउंट आबू भगवान शंकर की उपनगरी।

माउंटआबू में स्थित अचलेश्वर महादेव मंदिर दुनिया की इकलौती ऐसी जगह है जहां भगवान शिव के अंगूठे की पूजा होती है। भगवान शिव के सभी मंदिरों में उनके शिवलिंग की पूजा होती है लेकिन यहां भगवान शिव के अंगूठे की पूजा होती है। यह दुनिया का इस तरह का इकलौता मंदिर है। भगवान शंकर यहां अंगूठे में वास करते है। अचलेश्वर माहदेव मंदिर माउंट आबू से लगभग 11 किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में अचलगढ़ की पहाड़ियों पर किले के पास है।

इस मंदिर की कई खासियत है जो इससे सबसे अलग और अनूठे शिव मंदिर के रूप में ला खड़ा करती है। इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत है यहां का शिवलिंग जो कि दिन मे तीन बार अपना रंग बदलता है। सुबह इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग का रंग लाल होता है। लेकिन दोपहर में इसका रंग पूरी तरह बदलकर केसरिया हो जाता है। उसके बाद सूर्यास्त के बाद यानी शाम में यह शिवलिंग उजले रंग में तब्दील हो जाता है। फिर शिवलिंग का यह रंग रात तक रहता है।  बताया जाता है कि मंदिर की स्थापना 2500 साल पहले हुई थी।

भगवान शंकर के इस अनूठे मंदिर में नंदी भी विराजमान है। मंदिर में नंदी की मूर्ति को पांच मिश्रित धातुओं से बनाया गया है। मंदिर के अधिकारियों के मुताबिक नंदी ने इस मंदिर को मुगल काल में मुस्लिम आक्रमणकारियों से भी रक्षा की थी। बताया जाता है कि नंदी ने लाखों मधुमख्खियों को छोड़कर मुस्लिम आक्रमणकारियों को यहां से खदेड़ दिया था। इस मंदिर के बारे में यह भी मान्यता है कि भगवान शंकर यहां आनेवाले किसी भी भक्त या श्रद्धालु को निराश नहीं करते है।

माउंटआबू की पहाड़ियों पर स्थित अचलगढ़ मंदिर पौराणिक मंदिर है जिसकी भव्यता देखते ही बनती है। इस मंदिर की पौराणिक कहानी है कि जब अर्बुद पर्वत पर स्थित नंदीवर्धन  हिलने लगा तो हिमालय में तपस्या कर रहे भगवान शंकर की तपस्या भंग हुई। क्योंकि इसी पर्वत पर भगवान शिव की प्यारी गाय नंदी भी थी। लिहाजा पर्वत के साथ नंदी गाय को भी बचाना था। भगवान शंकर ने हिमालय से ही अंगूठा फैलाया और अर्बुद पर्वत को स्थिर कर दिया। नंदी गाय बच गई और अर्बुद पर्वत भी स्थिर हो गया। भगवान शिव के अंगूठे के निशान यहां आज भी देखे जा सकते है। इसमें चढ़ाया जानेवाला पानी कहा जाता है यह आज भी एक रहस्य है। पहाड़ी के तल पर 15वीं शताब्दी में बना अचलेश्वर मंदिर में भगवान शिव के पैरों के निशान आज भी मौजूद हैं।
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