Religion-Spirituality

आस्था का केंद्र : बरेली का भू-बैकुंठ धाम तिरुपति वेंकटेश्वर मंदिर

प्रत्येक आस्थावान सनातनधर्मी की यह कामना होती है कि वह जीवन में कम से कम एक बार भगवान तिरुपति वेंकटेश्वर मंदिर के दर्शन करके अपने जीवन को धन्य कर ले। दक्षिण भारत में तिरुमला की पहाड़ियों पर स्थित भगवान तिरुपति वेंकटेश्वर मंदिर को कलियुग में साक्षात बैकुंठ माना जाता है। लेकिन, महंगी और कष्टसाध्य यात्रा होने के कारण अधिकतक परिवार इसके दर्शन-पूजन से वंचित रह जाते हैं। उनकी इस इच्छा पूर्ण करने के लिए बरेली के राजेंद्र नगर के पटेल नगर क्षेत्र में लगभग 51 वर्ष पूर्व तिरुपति वेंकटेश्वर मंदिर की स्थापना की गई।

यह मंदिर दक्षिण भारतीय वास्तुकला का अनुपम उदाहरण है। इसका वार्षिकोत्सव प्रतिवर्ष जून में परम्पराओं का पालन करते हुए धूमधाम से मनाया जाता है। मंदिर से जुड़े शंकर दास के अनुसार, इस बार कोविड-19 नियमों का पालन करते हुए मंगलवार, 22 जून 2021 को सांकेतिक वार्षिक हवन-पूजन ही होगा।        

इस मंदिर का उद्घाटन उत्तर प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल जीसी रेड्डी ने 15 अप्रैल 1970 को किया था। इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहां सभी पूजा-अर्चना आंध्र प्रदेश में स्थापित मुख्य देव स्थान की परंपरा के अनुसार दक्षिण भारतीय ढंग से पुजारियों द्वारा ही सम्पन्न कराई जाती हैं। दक्षिण भारतीय लोगों की भावनाओं का ध्यान रखते हुए आईवीआरआई कर्मियों ने वर्ष 1969 में तिरुपति बालाजी समिति बनाई थी। बाद में इस कमेटी में मुख्य रूप से डॉ एमएस शास्त्री, वैज्ञानिक डॉ सदागोपालन, डॉ जेआर राव, पूर्व एमएलसी डॉ एपी सिंह को शामिल किया गया। एमआर लघाटे, निर्भय सक्सेना, शंकर दास आदि भी इसके सदस्य बने।

स्थापत्य की दृष्टि से इसमें वास्तुशास्त्र का ध्यान रखा गया है। भगवान वेंकटेश्वर की विशाल मूर्ति के दर्शन से भक्तों को आत्मिक शांति मिलती है। मंदिर के दरवाजे पर ही तिलक, शंख, चक्र उत्कीर्ण किये गए हैं। बाद में मंडप के दायीं ओर भगवान गणेश और बायीं ओर अंडाल देवी, अन्नपूर्णा देवी की स्थापना की गई। इसके बाद मंदिर परिसर में पद्मावती देवी, बजरंग बली, भगवान शंकर, दुर्गा माता, राधा-कृष्ण के मंदिरों के साथ ही शनिदेव महाराजा एवं तुलसी का स्थल भी बनाया गया।

मुख्य मंदिर और परिसर में अन्य मंदिरों का वास्तुशिल्प दक्षिण शैली का ही है। मंदिर के गेट पर दक्षिण भारत की परंपरा के अनुसार एक विशाल गोपुरम् भी बनाया गया है। वर्ष 1977 में मंदिर के साथ ही मालती दलाल मंडपम का निर्माण कराया गया। लाल रंग के इस मंडपम की छटा दूर से ही देखते बनती है।

मंदिर का संचालन मालती दलाल ट्रस्ट करता है। ट्रस्टी डॉ एपी सिंह के अनुसार मंदिर परिसर में शीघ्र ही अन्य कार्य कराने की भी योजना है। मंदिर के पुजारी मध्यम कुमार हैं। पिछले साल कोरोना वायरस लॉकडाउन की वजह से मंदिर के 50वें वार्षिकोत्सव को स्थगित कर दिया गया था। इस बार कोविड-19 नियमों का पालन करते हुए मंगलवार, 22 जून 2021को सांकेतिक वार्षिक हवन-पूजन होगा।               

निर्भय सक्सेना

(वरिष्ठ पत्रकार)

gajendra tripathi

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