हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, हरिद्वार वह स्थान है जहाँ अमृत की कुछ बूँदें भूल से घड़े से गिर गयीं जब खगोलीय पक्षी गरुड़ उस घड़े को समुद्र मंथन के बाद ले जा रहे थे। चार स्थानों पर अमृत की बूंदें गिरीं और ये स्थान हैं:- उज्जैन, हरिद्वार, नासिक और प्रयाग| आज ये वे स्थान हैं जहां कुम्भ मेला चारों स्थानों में से किसी भी एक स्थान पर प्रति 3 वर्षों में और 12वें वर्ष इलाहाबाद में महाकुम्भ आयोजित किया जाता है। पूरी दुनिया से करोड़ों तीर्थयात्री, भक्तजन और पर्यटक यहां एकत्रित होते हैं और गंगा के तट पर शास्त्र विधि से स्नान इत्यादि करते हैं।
वह स्थान जहाँ पर अमृत की बूंदें गिरी थी उसे हरि-की-पौडी पर ब्रह्म कुंड माना जाता है जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘ईश्वर के पवित्र पग’। हरि-की-पौडी, हरिद्वार के सबसे पवित्र घाट माना जाता है और यहाँ स्नान करना मोक्ष प्राप्त करने के लिए आवश्यक माना जाता है।
दर्शनीय धार्मिक स्थल
हिन्दू परम्पराओं के अनुसार, हरिद्वार में छ: तीर्थ गंगाद्वार (हर की पौडी), भारत माता मंदिर, कुश्वर्त (घाट), कनखल, बिलवा तीर्थ (मनसा देवी), नील पर्वत (चंडी देवी) हैं।
हरि की पौडी। इसे ब्रम्हकुंड के नाम से भी जाना जाता है। यह पवित्र घाट राजा विक्रमादित्य ने पहली शताब्दी ईसा पूर्व में अपने भाई भ्रिथारी की याद में बनवाया था। मान्यता है कि भ्रिथारी हरिद्वार आया था और उसने पावन गंगा के तटों पर तपस्या की थी। जब वह मरे, उनके भाई ने उनके नाम पर यह घाट बनवाया, जो बाद में हरि- की- पौड़ी कहलाया जाने लगा। हरि की पौड़ी का सबसे पवित्र घाट ब्रह्मकुंड है। कई भक्त यहाँ विभिन्न प्रथाओं जैसे कि ‘मुंडन’और ‘अस्थि विसर्जन’ (मृत व्यक्ति की अस्थियों को नदी में प्रवाहित करना) को पूरा करने के लिए आते है। स्वरों व रंगों का एक कौतुक समारोह के बाद देखने को मिलता है जब तीर्थयात्री जलते दीयों को नदी पर अपने पूर्वजों की आत्मा की शान्ति के लिए प्रवाहित करते हैं। विश्व भर से हजारों लोग अपनी हरिद्वार यात्रा के समय इस प्रार्थना में उपस्थित होने का ध्यान रखते हैं। वर्तमान के अधिकांश घाट 1700 के समय विकसित किये गए थे।
चंडी देवी मन्दिर। यह मन्दिर चंडी देवी जो कि गंगा नदी के पूर्वी किनारे पर “नील पर्वत” के शिखर पर विराजमान हैं, को समर्पित है। यह कश्मीर के राजा सुचत सिंह द्वारा 1929 ई में बनवाया गया. स्कन्द पुराण की एक कथा के अनुसार, चंड- मुंड जोकि स्थानीय राक्षस राजाओं शुम्भ- निशुम्भ के सेनानायक थे को देवी चंडी ने यहीं मारा था जिसके बाद इस स्थान का नाम चंडी देवी पड़ गया। मान्यता है कि मुख्य प्रतिमा की स्थापना आठवीं सदी में आदि शंकराचार्य ने की थी। मन्दिर चंडीघाट से 3 किमी दूरी पर स्थित है व एक रोपवे द्वारा भी पहुंचा जा सकता है।
मनसा देवी मन्दिर। बिलवा पर्वत के शिखर पर स्थित, मनसा देवी का मन्दिर, शाब्दिक अर्थों में वह देवी जो मन की इच्छा (मनसा) पूर्ण करतीं हैं, एक पर्यटकों का लोकप्रिय स्थान, विशेषकर केबल कारों के लिए, जिनसे नगर का मनोहर दृश्य दिखता है। मुख्य मन्दिर में दो प्रतिमाएं हैं, पहली तीन मुखों व पांच भुजाओं के साथ जबकि दूसरी आठ भुजाओं के साथ।
माया देवी मन्दिर। 11वीं शताब्दी का माया देवी, हरिद्वार की अधिष्ठात्री ईश्वर का यह प्राचीन मन्दिर एक सिद्धपीठ माना जाता है व इसे देवी सटी की नाभि व ह्रदय के गिरने का स्थान कहा जाता है। यह उन कुछ प्राचीन मंदिरों में से एक है जो अब भी नारायणी शिला व भैरव मन्दिर के साथ खड़े हैं।
भारत माता मंदिर। भारत माता को समर्पित और हरिद्वार में एक मुख्य पर्यटक आकर्षण है। इस मंदिर का निर्माण महान धार्मिक गुरु स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी द्वारा करवाया गया था। इस मंदिर में आठ मंजिलें है जिसमें से प्रत्येक मंजिल कई हिंदू देवी देवताओं एवं स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को समर्पित है। यात्री इस मंदिर में कई महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों जैसे कि महात्मा गांधी, वीर सावरकर एवं सुभाषचंद्र बोस इत्यादि की मूर्तियाँ देख सकते हैं।
इन मंदिरों के अलावा सप्त ऋषी आश्रम, पतञ्जली योगपीठ, श्रवणनाथजी का मंदिर चिल्ला वन्यजीव अभयारण्य, दक्ष महादेव मंदिर, एवं गौ घाट इत्यादि भी पर्यटकों को बड़ी संख्या में आकर्षित करते हैं।
सप्त ऋषी आश्रम अपने महान धार्मिक महत्व के लिए जाना जाता है। हिंदू पुराणों के अनुसार इस आश्रम का निर्माण उस स्थान पर किया गया है जहाँ सप्त ऋषी या सात महान साधुओं, अत्री, कश्यप, जमदग्नी, भारद्वाज, वशिष्ठ, विश्वामित्र, एवं गौतम ऋषी साधना किया करते थे।
हरिद्वार में रहते हुए पर्यटक कई विभिन्न त्योहारों जैसे कि रामनवमी, बुद्ध पूर्णिमा, कांवड़ मेला, एवं दीवाली में भी भाग ले सकते हैं। कांवड़ मेला प्रति वर्ष आयोजित किया जाता है और इस दौरान हरिद्वार में लगभग तीन करोड़ लोग आते हैं।
प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों के अलावा यह स्थल औद्योगिक दृष्टि से भी विकसित है। यहाँ भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स इंडिया मौजूद है। यह वह स्थान भी है जहाँ भारत का पहला तकनीकी संस्थान रूड़की विश्वविद्यालय या आईआईटी रूड़की स्थापित किया गया था।
यात्री वायुमार्ग, रेलमार्ग या रास्ते द्वारा हरिद्वार पहुँच सकते हैं। इस स्थान का सबसे निकटतम घरेलू हवाई अड्डा जॉली ग्रांट हवाई अड्डा है जो लगभग 20 किमी दूर स्थित है। यह दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से भी नियमित उड़ानों द्वारा जुड़ा हुआ है। सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन हरिद्वार रेलवे स्टेशन है, जो भारत के सभी मुख्य शहरों से जुड़ा हुआ है। देश के विभिन्न भागों से बसों द्वारा भी यहाँ पहुंचा जा सकता है। इसके अलावा नईदिल्ली से हरिद्वार के लिए नियमित अंतराल पर डीलक्स बसें उपलब्ध हैं।
हरिद्वार में गर्मियों में गर्मी एवं सर्दियों में अत्यधिक ठंड पड़ती है और मानसून में वातावरण में आद्रता होती है। हरिद्वार में भ्रमण के लिये मानसून अच्छा समय नहीं है क्योंकि इस दौरान मौसम बहुत असुविधाजनक होता है। हरिद्वार में भ्रमण करने के लिए सितंबर से लेकर जून की बीच का समय सबसे उपयुक्त है क्योंकि इस समय यहाँ मौसम सुहावना होता है।
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