Must Know- क्यों और कैसे हुआ काशी के कोतवाल कालभैरव का जन्म?

कालभैरव को साक्षात भगवान शिव का दूसरा रूप माना जाता है। इस दूसरे रूप को विग्रह रूप के नाम से भी जाना जाता है। शिव की क्रोधाग्नि का विग्रह रूप माने जाने वाले कालभैरव का अवतरण मार्गशीर्ष कृष्णपक्ष की अष्टमी को हुआ था। माना जाता है कि कालभैरव की पूजा से घर में काली शक्तियों का वास नहीं होता। इसके अलावा इनकी पूजा से घर में नकारत्मक ऊर्जा, जादू-टोने, भूत-प्रेत आदि का भय नहीं रहता। कालभैरव का वर्णन शिव पुराण में भी मिलता है। इसमें लिखा है कि भैरव साक्षात शिव के ही दूसरे रूप हैं।

कालभैरव के जन्म को लेकर एक बड़ी ही रोचक कथा है। एक बार देवताओं ने ब्रह्मा और विष्णु जी से बारी-बारी से पूछा कि जगत में सबसे श्रेष्ठ कौन है? तो उन दोनों ने स्वाभाविक रूप से खुद को ही श्रेष्ठ बताया लेकिन जब यह प्रश्न देवताओं ने वेदशास्त्रों से पूछा तो उत्तर कुछ और ही आया। उन्होंने कहा कि सर्वश्रेष्ठ वही हो सकता है जिसके भीतर चराचर जगत, भूत, भविष्य और वर्तमान समाया हुआ हो, जो अनादि, अनंत और अविनाशी हो। यह सारे गुण केवल और केवल भगवान रूद्र में ही समाहित है, इसलिए सबसे श्रेष्ठ भगवान शिव ही हैं।

वेद शास्त्रों से शिव के बारे में इतनी प्रशंसा सुनकर ब्रह्मा ने पांचवें मुख ने शिव की निंदा चालू कर दी। इससे वेद काफी दुखी हुए। इसी दौरान एक दिव्यज्योति के रूप में भगवान रूद्र प्रकट हुए। ब्रह्मा ने कहा कि हे रूद्र, तुम मेरे ही सिर से पैदा हुए हो और अधिक रुदन करने के कारण मैंने ही तुम्हारा नाम ‘रूद्र’ रखा है, अतः तुम मेरी सेवा में आ जाओ। ब्रह्मा के इस आचरण पर शिव को भयानक क्रोध आया और उन्होंने भैरव को उत्पन्न करके कहा कि तुम ब्रह्मा पर शासन करो।

उन दिव्य शक्ति संपन्न भैरव ने अपने बाएं हाथ की सबसे छोटी अंगुली के नाख़ून से शिव के प्रति अपमान जनक शब्द कहने वाले ब्रह्मा के पांचवे सर को ही काट दिया। शिव के कहने पर भैरव काशी की ओर प्रस्थान कर गए जहां उन्हें ब्रह्म हत्या से मुक्ति मिली। इसके बाद भगवान रूद्र ने उन्हें काशी का कोतवाल नियुक्त कर दिया। काशी में आज भी कालभैरव को काशी के कोतवाल के रूप में पूजा जाता है। ऐसी भी पौराणिक धारणा है कि कालभैरव के दर्शन किए बिना काशी विश्वनाथ का दर्शन अधूरा माना जाता है।

भगवान कालभैरव को प्रसन्न करने के लिए इस मंत्र का प्रयोग किया जाता है।

अतिक्रूर महाकाय कल्पान्तं दहनोपम्, भैरवं नमस्तुभ्यं अनुज्ञा दातुमर्हसि

इस मंत्र का रोजाना 11 बार जाप करने से बुरी शक्तियां आपसे दूर रहेंगी।

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