शारदीय नवरात्र 17 अक्टूबर 2020 दिन शनिवार से प्रारंभ हो रहे हैं। इस काल में माता दुर्गा की आराधना सबसे श्रेष्ठ मानी जाती है। देवी भागवत पुराण के अनुसार, इस बार शारदीय नवरात्र का आगमन अश्व (घोड़े) पर होगा जिसके परिणामस्वरूप छत्र भंग, पड़ोसी देशों से युद्ध, आंधी-तूफान आदि की आशंका है। सर्व-रूप में कहें तो आने वाले वर्ष में कुछ राज्यों में सत्ता में उथल-पुथल हो सकती है और सरकारों को जन विरोध का भी सामना करना पड़ सकता है। कृषि के मामलों में आने वाला साल सामान्य रहेगा। देश के कई भागों में कम बारिश होने से कृषि को हानि होगी और किसानों को परेशानी का सामना करना पड़ेगा। इस बार नवरात्र की विदाई भैंसे पर होगी। इसको भी अच्छा नहीं माना जाता है।
ज्योतिषाचार्य राजेश कुमार शर्मा के अनुसार, 16 अक्टूबर को रात्रि 1:00 बजे से प्रतिपदा प्रारंभ होगी जोकि 17 अक्टूबर को रात्रि 9:08 बजे तक रहेगी। घट स्थापना का शुभ मुहूर्त प्रातः 6:27 बजे से 10:13 बजे तक का है। इसके उपरांत अभिजीत मुहूर्त दोपहर 11:44 से 12:49 तक शुभ रहेगा।
सर्वप्रथम एक दिवस पूर्व मन-वचन-कर्म से हम सद् संकल्प लें। तत्पश्चात प्रातःकाल जल्दी उठकर स्नान आदि करके साफ एवं स्वच्छ वस्त्र आदि पहनें। पूजन सामग्री को एक दिन पूर्व ही एकत्रित कर लें और पूजा के थाल को सजा लीजिए। मां दुर्गा की प्रतिमा को लाल रंग के वस्त्र में रखें तो सर्वोत्तम होगा।
मिट्टी के बर्तन में जौ के बीज बोएं और नवमी तक प्रतिदिन इसको जल प्रदान करें।
पूर्ण विधि के अनुसार शुभ मुहूर्त में कलश को स्थापित करें। इससे पहले कलश को गंगाजल से भरना चाहिए। उसके मुख पर आम की पत्तियां लगाएं और ऊपर नारियल रखें। नारियल को लाल कपड़े में लपेट कर कलावा से बांध दें। तत्पश्चात इसको मिट्टी के बर्तन पर रखना चाहिए। फूल, कपूर और ज्योति के साथ पंचोपचार पूजन करें।
9 दिन तक मां दुर्गा से संबंधित मंत्रों का जाप एवं माता का स्वागत करके उनसे सुख-समृद्धि की कामना करनी चाहिए।
अष्टमी और नवमी को माता दुर्गा की पूजा के पश्चात नौ कन्याओं का पूजन करना और उन्हें तरह-तरह के व्यंजनों का भोग लगाना चाहिए। तत्पश्चात जो घट स्थापित किया है, उसका विसर्जन करके मां की आरती गाएं, उन्हें फूल और चावल चढ़ाएं और वेदी से कलश का उठाएं।
यहां यह उल्लेख करना आवश्यक है कि यदि संभव हो तो प्रतिदिन एक कन्या का पूजन करें और नवमी को उसे संपूर्ण वस्त्र आदि देकर विदा करें तो सर्वश्रेष्ठ होगा।
मां दुर्गा की धातु की प्रतिमा सबसे अच्छी मानी जाती है और यदि नहीं है तो चित्र भी श्रेष्ठ रहता है। लाल चुनरी, आम की पत्तियां, चावल, दुर्गा सप्तशती की पुस्तक, लाल कलावा, गंगाजल, चंदन, नारियल, कपूर, जौ के बीज, मिट्टी का बर्तन, गुलाल, सुपारी, पान के पत्ते, लवंग (लौंग) इलायची, कपूर आदि को पूजा की थाली में रखना चाहिए।
नवरात्र की अवधि में हर दिन का एक रंग होता है। इन रंगों का उपयोग करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है। मार्कंडेय पुराण के अनुसार रंगों का क्रम इस प्रकार है- प्रतिपदा पीला, द्वितीयी हरा, तृतीया भूरा, चतुर्थी नारंगी,पंचमी सफेद, षष्ठी लाल, सप्तमी नीला, अष्टमी गुलाबी और नवमी बैजनी।
प्रथम दिवस माता शैलपुत्री, द्वितीय दिवस ब्रह्मचारिणी, तृतीय दिवस मां चंद्रघंटा, चतुर्थ दिवस मां कुष्मांडा, पंचम दिवस स्कंदमाता, छठवें दिन मां कात्यायनी, सातवें दिन मां कालरात्रि, आठवें दिन महागौरी और नवे दिन माता सिद्धिदात्री।
मार्कंडेय पुराण के अनुसार मां के इन रूपों की आराधना जो व्यक्ति सच्चे मन से करता है उसे हर प्रकार की सुख-संपत्ति प्राप्त होती है।
शारदीय नवरात्र में प्रतिपदा से दसवीं तक का पर्व 9 दिन में मनाया जाएगा। प्रतिपदा 17 अक्टूबर को और विजयादशमी 25 अक्टूबर को मनाई जाएगी क्योंकि तिथियों का चढ़ाव-उतार हो रहा है। यहां जानने योग्य विशेष बात यह है कि 24 अक्टूबर को प्रातः 6:58 तक अष्टमी है और तत्पश्चात नवमी। इस कारण अष्टमी और नवमी का पूजन एक ही दिन करना उचित होगा। 25 अक्टूबर को प्रातःकाल 7:41 बजे दशमी तिथि शुरू हो जाएगी। इस कारण दशहरा और अपराजिता पूजन एक ही दिन होंगे जो कि सर्वश्रेष्ठ है। इस प्रकार 9 दिन में 10 पर्व संपन्न होंगे।
हवन-पूजन 23 अक्टूबर को दोपहर 1:56 बजे से 24 अक्टूबर को सायंकाल तक करना फलदायी होगा।
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