चेतना सत्ता एक शरीर से निकल कर नए शरीर में प्रवेश संभव है। पुनर्जन्म का भी यही सिद्धांत है। पुनर्जन्म का दूसरा प्रत्यक्ष प्रमाण पूर्वजन्म की स्मुति युक्त बालकों का जन्म लेना है। बालकों के पूर्वजन्म की स्मृति की परीक्षा आजकल दार्शनिक और परामनोवैज्ञानिक करते हैं।
उदाहरण-
1. उदाहरण के तौर पर पूर्वभव के संस्कारों के बिना मोर्जाट चार वर्ष की अवस्था में संगीत नहीं कम्पोज कर सकता था।
2. ठीक इसी प्रकार लार्ड मैकाले और विचारक मील, चलना सीखने से पूर्व लिखना सीख गए थे। वैज्ञानिक जान गाॅस जब तीन वर्ष का था तभी अपने पिताजी की गणितीय त्रुटियों को ठीक करता था।
डाॅ. स्टीवेन्सन ने अपने अनुसंधान के दौरान कुछ ऐसे मामले भी देखे हैं
जिसमें व्यक्ति के शरीर पर उसके पूर्वजन्म के चिन्ह मौजूद हैं। यद्यपि आत्मा का रुपान्तरण तो समझ में आता है लेकिन दैहिक चिन्हों का पुनःप्रकट होना आज भी एक पहेली है। डाॅ. हेमेन्द्र नाथ बनर्जी का कथन है कि कभी-कभी वर्तमान की बीमारी का कारण पिछले जन्म में भी हो सकता है।
पूर्व जन्म में आग से जलकर मरीं थी रोजन वर्ग-
श्रीमती रोजन वर्ग की चिकित्सा इसी तरह हुई। आग को देखते ही थर-थर कांप जाने वाली इस महिला का जब कोई भी डाॅक्टर इलाज नहीं कर सका। तब वे मनोचिकित्सक के पास गयीं। वहां जब उन्हें सम्मोहित कर पूर्वभव की याद कराई गयी, तो रोजन वर्ग ने बताया कि वे पिछले जन्म में जल कर मर गई थीं। अतः उन्हें उसका अनुभव करा कर समझा दिया गया, तो वे बिल्कुल स्वस्थ हो गई।
एक अन्य उदाहरण भी है-
वैज्ञानिकों ने विल्सन कलाउड चेम्बर परीक्षण में चूहे की आत्मा की तस्वीर तक खींची है। क्या इससे यह प्रमाणित नहीं होता है कि मृत्यु पर चेतना का शरीर से निर्गमन हो जाता है।
पुनर्जन्म के विपक्ष में भी अनेक तर्क एवं प्रश्न खड़े हैं। यह पहेली शब्दों द्वारा नहीं सुलझाई जा सकती है। जीवन के प्रति समग्र सजगता एवं अवधान ही इसका उत्तर दे सकते हैं। सामाजिक संस्कारों बढ़ने वाला मन इसे नहीं समझ सकता है।
पुनर्जन्म आज एक धार्मिक सिद्धान्त मात्र नहीं रह गया है। विश्व के अनेक विश्वविद्यालयों एवं परामनोवैज्ञानिक शोध संस्थानों में ठोस कार्य हुआ है। वर्तमान में यह अंधविश्वास नहीं, बल्कि वैज्ञानिक तथ्य के रुप में स्वीकारा जा चुका है।
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