BareillyLive : जहां बहादुरी और सादगी की बात आती है वहाँ बरबस देश के सपूत लाल बहादुर शास्त्री की याद आ जाती है। आज उनकी 58 वीं पुण्य तिथि है उनके कुछ संस्मरण आपसे साझा कर रहे हैं ताकि उनकी स्मृति बनी रहे। ये वही शास्त्री जी हैं जिन्होंने अपने प्रधानमंत्री रहते समय लाहौर पे ऐसा कब्ज़ा जमाया था और पूरे विश्व ने जोर लगा लिया लेकिन लाहौर देने से इंकार कर दिया था। आख़िरकार उनकी एक बड़ी साजिश के तहत हत्या कर दी गयी। जिसका आज तक पता नहीं लगाया जा सका है। जब इंदिरा जी शास्त्री जी के प्रधान मंत्री आवास पर पहुंची तो कहा कि यह तो चपरासी का घर लग रहा है, इतनी सादगी थी शास्त्रीजी में। जब 1965 में पाकिस्तान से युद्ध हुआ था तो शास्त्री जी ने भारतीय सेना का मनोबल इतना बड़ा दिया था कि भारतीय सेना पाकिस्तानी सेना को गाजर-मूली की तरह काटती चली गयी थी और पाकिस्तान का बहुत बड़ा हिस्सा जीत लिया था। जब भारत पाकिस्तान का युद्ध चल रहा था तो अमेरिका ने भारत पर दबाव बनाने के लिए कहा था कि भारत युद्ध खत्म कर दे नहीं तो अमेरिका भारत को खाने के लिए गेहूं देना बंद कर देगा तो इसके जवाब मे शास्त्री जी ने कहा कि हम स्वाभिमान से भूखे रहना पसंद करेंगे किसी के सामने भीख मांगने की जगह शास्त्री जी ने देशवासियों से निवेदन किया कि जब तक अनाज की व्यवस्था नहीं हो जाती तब तक सब लोग सोमवार का व्रत रखना चालू कर दें और खाना कम खाया करें।
कुछ लोगों पर अब भी इस बात का असर है कि 60 वर्ष बाद भी वह सोमवार का व्रत रख रहे हैं। जब शास्त्री जी ताशकंद समझौते के लिए जा रहे थे तो उनकी पत्नी ने कहा कि अब तो इस पुरानी फटी धोती की जगह नई धोती खरीद लीजिये तो शास्त्री जी ने कहा इस देश में अभी भी ऐसे बहुत से किसान हैं जो फटी हुई धोती पहनते हैं इसलिए मैं अच्छे कपड़े कैसे पहन सकता हूँ क्योंकि मैं उन गरीबों का ही नेता हूँ अमीरों का नहीं और फिर शास्त्रीजी अपनी फटी पुरानी धोती को अपने हाथ से सिलकर ताशकंद समझौते के लिए गए। जब पाकिस्तान से युद्ध चल रहा था तो शास्त्री जी ने देशवासियों से कहा की युद्ध में बहुत रूपये खर्च हो सकते हैं इसलिए सभी लोग अपने फालतू के खर्च कम कर दें और जितना हो सके सेना को धन राशि देकर सहयोग करें। खर्च कम करने वाली बात शास्त्री जी ने अपने खुद के दैनिक जीवन में भी उतारी। उन्होंने अपने घर के सारे काम करने वालों को हटा दिया था और वो खुद ही कपड़े धोते थे और खुद ही अपने घर की साफ -सफाई करते थे। शास्त्री जी दिखने में जरूर छोटे थे पर वो सच में बहुत बहादुर और स्वाभिमानी थे। जब शास्त्री जी की मृत्यु हुई तो कुछ लोगों ने उन पर इल्ज़ाम लगाया कि शास्त्री जी भ्रष्टाचारी थे पर जांच होने के बाद पता चला कि शास्त्री जी के बैंक के खाते में मात्र 365/- रूपये थे। इससे पता चलता है की शास्त्री जी कितने ईमानदार थे। शास्त्री जी अभी तक के एक मात्र ऐसे प्रधानमंत्री रहे हैं जिन्होंने देश के बजट में से 25 प्रतिशत सेना के ऊपर खर्च करने का फैसला लिया था।
शास्त्री जी हमेशा कहते थे कि देश का जवान और देश का किसान देश के सबसे महत्वपूर्ण इंसान हैं इसलिए इन्हें कोई भी तकलीफ नहीं होना चाहिए और फिर शास्त्री जी ने ‘जय जवान जय किसान’ का नारा दिया। जब शास्त्री जी ताशकंद गए थे तो उन्हें साजिश के तहत 11 जनवरी 1966 को जहर देकर मार दिया गया था और देश मे झूठी खबर फैला दी गयी थी कि शास्त्री जी की मृत्यु दिल का दौरा पड़ने से हुई। सरकार ने इस बात पर आज तक पर्दा डाल रखा है। शास्त्री जी जातिवाद के खिलाफ थे।हम धन्य हैं कि हमारी भूमि पर ऐसे स्वाभिमानी और देशभक्त ने जन्म लिया। यह बहुत गौरव की बात है कि हमें शास्त्री जी जैसे प्रधानमंत्री मिले। 58 वीं पुण्यतिथि पर उन्हें शत-शत नमन।
सधन्यवाद: सुरेन्द्र बीनू सिन्हा