गोबर, खासकर गाय के गोबर से बने उत्पादों की मार्केट में दिनों-दिन डिमांड बढ़ती जा रही है। देश एक बार फिर से अपनी पुरानी जड़ों की तरफ मुड़ता दिख रहा है। इसी के मद्देनजर गोबर से सामान बनाने के कारखानों और ट्रेनिंग सेंटरों में भी वृद्धि देखी जा रही है। इसी कड़ी में एक संस्थान है उत्तर प्रदेश के प्रयागराज जिले के कौड़िहार ब्लॉक के श्रींगवेरपुर स्थित बायोवेद कृषि प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान शोध संस्थान। यहां गोबर से बने उत्पादों को बनाने का प्रशिक्षण दिया जाता है।
यहां गोबर से गमले और अगरबत्ती जैसे कई उत्पाद बनाए जाते हैं। यहां गोबर की लकड़ी भी बनाई जाती है, इसका प्रशिक्षण भी देते हैं। इसे गोकाष्ठ कहते हैं। इसमें लैकमड मिलाया गया है, इससे ये ज्यादा समय तक जलती है। गोकाष्ठ के साथ ही गोबर का गमला भी काफी लोकप्रिय हो रहा है।”
बायोवेद शोध संस्थान लाख के कई तरह की मूल्यवर्धित वस्तुओं के निर्माण का प्रशिक्षण देकर हजारों परिवारों को रोजगार के साथ अतिरिक्त आय का साधन उपलब्ध करा रहा है। संस्थान के निदेशक डॉ. बी.के. द्विवेदी बताते हैं कि जानवरों के गोबर, मूत्र में लाख के प्रयोग से कई वस्तुएं बनाई जा रही हैं। इनमें गमला, कलमदान, कूड़ादान, मच्छर भगाने वाली अगरबत्ती, जैव रसायन, मोमबत्ती एवं अगरबत्ती स्टैंड, ट्रॉफियों का निर्माण आदि शामिल हैं।देशी गाय माता के गोबर से निर्मित गमला 80% पानी और 100% खाद की बचत करता है। ये वातावरण के अनुसार पौधे के विकास में भी बहुत लाभकारी है। इसकी लागत मात्र 10 रुपये हैं।
बायोवेद कृषि प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान शोध संस्थान के प्रबंध निदेशक बताते हैं कि यहां गोबर की लकड़ी तक बनाई जाती है। इसे बनाने की ट्रेनिंग दी जाती है। इसे गोकाष्ठ कहते हैं। इसमें लैकमड मिलाया गया है, इससे यह आम लकड़ी की तुलना में ज्यादा देर तक जलती है। गोबर का गमला भी काफी लोकप्रिय हो रहा है। यह काफी सस्ता आैर ईको फ्रेंडली है। उन्होंने बताया कि जब किसी पौधे की प्लास्टिक की थैली हटाने में लापरवाही की जाए तो पौधे की जड़ें खराब हो जाती हैं और मिट्टी में लगाने पर यह पनप नहीं पाता। इस स्थिति से बचने के लिए गोबर का गमला उपयोगी है। इसमें मिट्टी भरकर पौधा लगाइए और जब इस पौधे को जमीन की मिट्टी में लगाना हो तो गड्ढा कर गमले को ही मिट्टी में दबा दीजिए। इससे पौधा खराब नहीं होगा और पौधे को गोबर की खाद भी मिल जाएगी। संस्थान में केले के तने का भी अच्छा प्रयोग किया जा रहा है। केले के तने से साड़ियां तक बनती हैं। गोबर से एनर्जी केक बनाया जाता है, जो अंगीठी में तीन-चार घंटे तक आसानी से जल जाता है। ये गैस की तरह ही जलाया जाता है।
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