मेरठ: पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाटलैंड में सपा-रालोद गठबंधन के लिए “सिर मुड़ाते ही ओले पड़े” जैसी स्थिति उत्पन्न हो गयी है। जाट और मुस्लिम वोट बैंक को साधने के लिए दोनों दलों ने यह गठबंधन किया था लेकिन जाटों के ही हाथ से फिसलने की नौबत आ गयी है। टिकट बंटवारे से नाराज जाट महासभा ने सपा-रालोद गठबंधन को गलती नहीं सुधारने पर चुनाव का बहिष्कार करने की धमकी दी है।
दरअसल, जाटलैंड कहे जाने वाले इस क्षेत्र में 20 प्रतिशत जाट और 30 प्रतिशत मुसलमान मतदाता हैं। इन दोनों के बल पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा का दबदबा कम करके अपना दबदबा कायम करने की उम्मीद के साथ सपा ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए राष्ट्रीय लोक दल (रालेद, RLD) के साथ गठबंधन किया था। मेरठ और मुजफ्फरनगर जिलों की सभी 13 विधानसभा सीटों के लिए प्रत्याशी भी तय कर दिए हैं। यह सूची बतलाती है कि मुजफ्फरनगर जिले में तो गठबंधन से एक भी मुस्लिम प्रत्याशी नहीं दिया गया है लेकिन मेरठ की 7 में से 4 विधानसभा सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार, जबकि सिर्फ 1 सीट पर जाट उम्मीदवार उतारा गया है। खासकर, सिवालखास विधानसभा सीट पर मुस्लिम प्रत्याशी प्रत्याशी उतार कर रालोद ने जाट समुदाय का गुस्सा और भड़का दिया है। गठबंधन ने मेरठ कैंट विधानसभा क्षेत्र से मनीषा अहलावत, सरधना विधानसभा सीट से अतुल प्रधान जबकि हस्तिनापुर सीट से पूर्व विधायक योगेश वर्मा को टिकट दिया है। इनमें एक भी उम्मीदवार जाट समुदाय से नहीं है। टिकटों का ऐसा वितरण ही बवाले जान बन गया है।
जयंत चौधरी की पार्टी रालोद ने सिवालखास सीट से जिस गुलाम मोहम्मद को अपना प्रत्याशी बनाकर उतारा है, वह सपा के पूर्व विधायक हैं। जाट समुदाय को यह दोहरे धक्के जैसा लग रहा है। वे सिवालखास सीट पर किसी जाट नेता के लिए टिकट चाहते थे, इस कारण गुलाम मोहम्मद का नाम सामने आते ही उनका गुस्सा फूट पड़ा। उन्होंने न केवल जयंत चौधरी के खिलाफ नारेबाजी बल्कि रालोद का झंडा भी फूंक दिया।
जाट समुदाय का मानना है कि एक तो करीब नौ दशकों से चौधरी परिवार की राजनीति का केंद्र रही सिवालखास सीट पर किसी जाट की जगह मुसलमान को उम्मीदवारी दे दी गई, ऊपर से यह उम्मीदवार भी रालोद का अपना नहीं है। मेरठ शहर से सपा विधायक रफीक अंसारी और किठौर से पूर्व मंत्री शाहिद मंजूर को टिकट मिलने से भी जाटों में खासी नाराजगी है।
इसी मुद्दे पर जाट महासभा के प्रदेश अध्यक्ष रोहित जाखड़ के नेतृत्व में मेरठ के कमिश्नरी चौराहे पर जाट समाज के सैकड़ों लोगों ने प्रदर्शन किया। यहीं पर तय किया कि सपा-रालोद गठबंधन ने टिकट बंटवारे में हुई गलती नहीं सुधारी और जाट समुदाय को उचित प्रतिनिधित्व नहीं दिया तो उनके प्रत्याशियों का बहिष्कार किया जाएगा। रोहित जाखड़ ने सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव पर जाटों के अपमान का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि रालोद ने सपा के साथ गठबंधन कर लिया, अखिलेश इसे जयंत चौधरी की मजबूरी सझने की भूल नहीं करें। उन्होंने यहां तक धमकी दे डाली कि अगर कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग पर डेढ़ साल तक आंदोलन करके केंद्र सरकार को घुटनों पर ला सकते हैं तो सपा को भी उसका सही जगह दिखाने में देर नहीं लगेगी।
ताजा हालात से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाटों और मुसलमानों के बीच समीकरण साधने की अखिलेश यादव की कोशिशों को बड़ा झटका लग सकता है। 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद भाजपा के हाथों खोयी अपनी राजनीतिक जमीन को वापस पाने की जद्दोजहद में जुटे अखिलेश यादव के सामने यह बड़ी चुनौती होगी कि आखिर वह आगे किस तरह से कदम बढ़ाएं जिससे चुनाव में दोनों समुदायों का साथ मिल सके। उनके सामने दोहरी चुनौती यह है कि मुजफ्फरनगर जिले की 6 में से एक भी सीट पर मुस्लिम उम्मीदवार नहीं देकर भाजपा की ध्रुवीकरण की संभावित रणनीति पर पानी फेरने का दांव कहीं उल्टा न पड़ जाए। अखिलेश यादव यदि मेरठ में नाराज जाटों को खुश करने के चक्कर में प्रत्याशी बदलते हैं तो संभव है कि मुजफ्फरनगर में अपने समुदाय का एक भी उम्मीदवार नहीं उतारे जाने से नाराज मुसलमान सपा के खिलाफ मुखर हो जायें।
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