नई दिल्ली। अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पिछले साल दावा किया था कि कोरोना वायरस दरअसल “चीनी वायरस है”। यूरोप के कई नेता भी ऐसे दावे करते रहे हैं। यहां तक कि चीन के ही कुछ लोग अपने देश की सरकार पर कोरोना वायरस को लेकर अंगुली
उठाते रहे हैं। अब आस्ट्रेलिया के मशहूर अखबार “द वीकेंड ऑस्ट्रेलियन” ने अपनी रिपोर्ट में यह खुलासा किया है कि चीन 6 साल पहले से सार्स वायरस की मदद से जैविक हथियार बनाने की कोशिश कर रहा था।
आस्ट्रेलियाई अखबार का कहना है कि कोरोना वायरस 2019 में अचानक नहीं आया, बल्कि चीन वर्ष 2015 से इसकी तैयारी कर रहा था और उसकी सेना (पीएलए) 6 साल पहले से कोविड-19 वायरस (कोरोना वायरस) को जैविक हथियार की तरह इस्तेमाल करने की साजिश रच रही थी।
इस रिपोर्ट में चीन के एक रिसर्च पेपर को आधार बनाया गया है। इसमें कहा गया है कि चीनी वैज्ञानिक और स्वास्थ्य अधिकारी 2015 में ही कोरोना के अलग-अलग स्ट्रेन पर चर्चा कर रहे थे। उस समय चीनी वैज्ञानिकों ने कहा था कि तीसरे विश्वयुद्ध में इसे जैविक हथियार की तरह इस्तेमाल किया जाएगा। इस बात पर भी चर्चा हुई थी कि इसमें हेरफेर करके इसे महामारी के तौर पर कैसे बदला जा सकता है।
रिपोर्ट में इस बात पर भी सवाल उठाया गया है कि जब भी कोरोना वायरस को सोर्स की जांच करने की बात आती है तो चीन पीछे हट जाता है। ऑस्ट्रेलियाई साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट रॉबर्ट पॉटर ने बताया कि यह वायरस किसी चमगादड़ के मार्केट से नहीं फैल सकता। वह थ्योरी पूरी तरह से गलत है। चीनी रिसर्च पेपर पर गहरा अध्ययन करने के बाद रॉबर्ट ने कहा, “वह रिसर्च पेपर बिल्कुल सही है। हम चीन के रिसर्च पेपर पर अध्ययन करते रहते हैं। इससे पता चलता है कि चीनी वैज्ञानिक क्या सोच रहे हैं।”
दावे में हो सकता है दम
“द वीकेंड ऑस्ट्रेलियन” की इस रिपोर्ट में दम हो सकता है। आपको याद होगा कि पिछले साल अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कई बार सार्वजनिक तौर पर कोरोना को “चीनी वायरस” कहा था। उन्होंने कहा था- “यह चीन की लैब में तैयार किया गया और इसकी वजह से दुनिया का हेल्थ सेक्टर तबाह हो रहा है। कई देशों की अर्थव्यवस्था इसे संभाल नहीं पाएंगी।” ट्रम्प ने तो यहां तक कहा था कि “अमेरिकी खुफिया एजेंसियों के पास इसके सबूत हैं और समय आने पर ये दुनिया के सामने रखे जाएंगे।” ब्लूमबर्ग ने पिछले दिनों एक रिपोर्ट में इस तरफ इशारा किया था कि अमेरिका इस मामले में बहुत तेजी और गंभीरता से जांच कर रहा है।
कोरोना वायरस ने जिन देशों में सबसे ज्यादा तबाही मचाई है, उनमें अमेरिका, भारत, ब्राजील, इटली, ब्रिटेन शामिल हैं और ये सभी चीन की काली करतूतों के खिलाफ आवाज उठाते रहे हैं।
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