विशाल गुप्ता, बरेली। मंगलवार को आध्यात्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर बरेली में थे। आर्ट ऑफ लिविंग के अनुयायियों और श्रीश्री को मानने वालों के लिए यह दिन होली के बाद एक और उत्सव का था। लेकिन श्रीश्री रविशंकर का जिस तरह बरेली आना हुआ, वह भी चौकाने वाला है। हालांकि सभी जानते हैं कि श्रीश्री अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण के लिए कोर्ट के बाहर ही मुद्दे का हल निकालने के लिए पहल कर रहे हैं। इसके लिए वह मुस्लिम धर्मगुरुओं से मिल रहे हैं। उनका बरेली आगमन भी इसी चेन की एक कड़ी था। वह मौलाना तौकीर रजा खां के निमंत्रण पर आये थे।
कौन हैं मौलाना तौकीर रज़ा खां
बता दें कि मौलाना तौकीर रज़ा खां, वैसे तो इस्लामी धार्मिक खानदान आला हजरत खानदान के नुमाइंदे हैं। लेकिन उनकी पहचान एक धार्मिक या आध्यात्मिक व्यक्ति की न होकर एक राजनेता की है। वह इत्तेहाद-ए-मिल्लत कौंसिल नाम की राजनीतिक पार्टी के मुखिया हैं। यह पार्टी विधानसभा और लोकसभा से लेकर निकाय चुनावों में भी अपने प्रत्याशी खड़ा करती और चुनाव लड़ाती है। खास बात यह भी कि मौलाना तौकीर 2010 में बरेली में हुए दंगों में मुख्य आरोपी भी हैं। साथ उनके साथ डा. नफीस भी इसी दंगे में सह आरोपी हैं। ये दोनों ही जमानत पर हैं।
अगले साल 2019 में लोकसभा चुनाव होना हैं। ऐसे में आईएमसी प्रमुख मौलाना तौकीर अपनी राजनीतिक जमीन तलाश रहे थे, क्योंकि हाल में उनकी पार्टी का कोई प्रत्याशी लोकसभा या विधानसभा चुनाव नहीं जीता है। पिछले चुनाव में पार्टी के पास प्रत्याशियों का टोटा सा हो गया था। ऐसे में उन्होंने श्रीश्री रविशंकर के मुस्लिमों से मिलने के प्रयासों को देखा तो उन्हें श्रीश्री में अपना सहारा नजर आने लगा। इतना ही नहीं दंगे के आरोपी होने के नाते अपनी छवि को बदलने और कद बढ़ाने के लिए भी यह मुफीद लगा।
उन्होंने श्रीश्री रविशंकर को आमंत्रित किया। सोने पर सुहागा यह कि श्रीश्री ने उनका निमंत्रण स्वीकार कर लिया। यहां आकर उन्होंने दरगाह-ए-आला हजरत पर हाजिरी लगायी और वहां से मौलाना तौकीर के निवास पर उनसे मुलाकात की। यहां जो बातें हुईं, सो हुईं लेकिन वह कुछ सवाल छोड़ गयी।
…तो शायद कोई उम्मीद बंध सकती थी
सवाल यह कि अगर मौलाना तौकीर और श्रीश्री रविशंकर ने कोई फार्मूला दे दिया तो हिन्दुओं को छोड़िए क्या मुसलमानों को भी यह मंजूर होगा, अगर मस्जिद के विरोध में आया। मौलाना तौकीर की देश के मुसलमानों में कितनी पकड़ है। आलाहजरत दरगाह विश्वभर में एक अहम स्थान रखती है। यहां धर्मगुरु सब्ुहानी मियां साहब और अजहरी मियां साहब हैं। अगर श्रीश्री ने दरगाह में हाजिरी के बाद सज्जादानशीन अजहरी मियां या पूर्व सज्जादानशीन मौलाना सुब्हानी मियां से मुलाकात की होती तो शायद कोई उम्मीद बंध सकती थी।
श्रीराम का जन्म अयोध्या में हुआ इसका साक्षात प्रमाण धर्मग्रन्थों में मिलता है। उसे किसी भी सूरत में बदला नहीं जा सकता। ऐसे में मुस्लिम धर्मगुरुओं से बात करना तो शायद विवाद को बातचीत से हल करने में सहायक हो लेकिन एक राजनीतिक शख्सियत से मुलाकात के सियासी मायने ही निकाले जाएंगे। वह भी एक ऐसी शख्सियत जो कई बार अपने विवादित बयानों, दंगों के आरोपों, वंदेमातरम् का खुलेआम विरोध के आरोपों से घिरा हो, कोई समाधान दे सकेगा इसमें संशय रहेगा ही।
खैर, श्रीश्री रविशंकर का बरेली आने से किसी को कुछ मिला हो या नहीं, श्रीराम को अयोध्या में उनकी जमीन वापस मिलने की उम्मीद बंधी हो या नहीं आईएमसी प्रमुख मौलाना तौकीर को अगले चुनाव तक चर्चा में रहने के लिए राजनीति की जमीन जरूर हासिल हो गयी।