वाशिंगटन। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने सूरज के अदृश्य चुंबकीय क्षेत्र को ‘देखने’ और समझने के लिए एक वीडियो तैयार किया है जो गहरे अंतरिक्ष के सफर के लिए अहम साबित हो सकता है।
नासा के इस वीडियो में ‘रियल टाइम’ अवलोकन को कंप्यूटर के सिमुलेशन से जोड़ा गया है और इसके आधार पर विश्लेषण किया गया है कि कैसे प्लाज्मा सूरज के कोरोना से गुजरता है।
उल्लेखनीय है कि हमारा सूरज एक विकराल चुंबकीय तारा है। यह ऐसे पदार्थ से बना है जो विद्युत-चुंबकत्व के नियमों के अनुरूप गमन करता है। सूरज का चुंबकीय क्षेत्र सौर विस्फोटों से होने वाले औरोरा से ले कर अंतर-ग्रहीय चुंबकीय क्षेत्र और विकिरण तक सारी सौर परिघटनाओं के लिए जिम्मेदार है।
नासा के गोडार्ड फ्लाइट सेंटर के अंतरिक्ष वैज्ञानिक डीन पेसनेल ने कहा, ‘‘हम यकीनी तौर पर नहीं कह सकते कि सूरज में ठीक ठीक कहां चुंबकीसय क्षेत्र का निर्माण होता है।’’ पेसनेल ने कहा, ‘‘यह सौर सतह के नजदीक हो सकता है या सूरज के गहरे अंदर – या फिर विभिन्न गहराइयों पर।’’ इन अदृश्य क्षेत्रों को देखने के लिए वैज्ञानिकों ने सूरज पर पदार्थ का अवलोकन किया। सूरज प्लाज्मा से बना है जो पदार्थ की गैस की तरह की अवस्था है जिसमें इलेक्ट्रोन और आयन अलग हो जाते हैं और इस तरह आवेशित कणों का बेहद गरम मिश्रण तैयार होता है।
जब आवेशित कण गमन करते हैं, वे प्राकृतिक रूप से चुंबकीय क्षेत्र का निर्माण करते हैं। बदले में, चुंबकीय क्षेत्र उन आवेशित कणों के गमन पर अतिरिक्त प्रभाव डालता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि प्लाज्मा सूरज में कार्य-कारण संबंध की एक जटिल प्रक्रिया बनाता है। सूरज के केन्द्र में परमाणु संलयन से पैदा बेहद ताप प्लाज्मा को जैसे बिलोता है और यह सूरज के अंदर प्रवाहित होता है। प्लाज्मा का यह प्रवाह सूरज के चुंबकीय क्षेत्र का निर्माण करता है। वैज्ञानिक इस तंत्र को सौर डाइनमो का नाम देते हैं।
वैज्ञानिकों ने सौर सतह पर चुंबकीय क्षेत्र की ताकत और दिशा की पैमाइश की। फिर, उन्होंने अपने अवलोकनों को चुंबकत्व के बारे में अपनी समझ और सौर पदार्थ के गमन के तरीकों के बारे में अपनी समझ से उसके अंतराल को पाटने की कोशिश की।
माना जाता है कि सौर चुंबकत्व प्रणाली सूरज पर तकरीबन 11 साल के गतिविधि चक्र को संचालित करती है। हर प्रस्फुटन के साथ सूरज का चुंबकीय क्षेत्र कुछ हद तक हमवार होता जाता है। इस क्रम में वह अपनी सबसे आसान अवस्था में पहुंचता है। वैज्ञानिक इसे सौर न्यूनतम :सोलर मिनिमम: कहते हैं। करीब 11 साल बाद सौर अधिकतम की अवस्था आती है।
अनुसंधानकर्ता जनवरी 2011 से जुलाई 2014 तक यह देखने में सक्षम रहे कि चुंबकीय क्षेत्र कैसे बदलता है, कैसे बढ़ता और कैसे सिकुड़ता है।