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न्यूयॉर्क। दुनियाभर में लाखों व्यक्तियों की जान ले चुका कोरोना वायरस लोगों को मानसिक रूप से भी बीमार कर रहा है। अमेरिका की हार्वर्ड यूनिवर्सिट के एक  शोध-पत्र में इसकी आशंका जताई गई है। भारतीयों की अगुआई वाली इस अंतरराष्ट्रीय शोध टीम के विक्रम पटेल ने कहा, “मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्या विश्व स्तर पर सबसे उपेक्षित स्वास्थ्य मुद्दों में से एक है, जो कोरोना महामारी के बाद और बढ़ गई है।” उन्होंने कहा कि यह महामारी मानसिक स्वास्थ्य का एक सामाजिक निर्धारक बन चुकी है, जो इसे खराब करने में ईंधन का काम कर रही है।

कोरोना वायरस पर आयोजित होने वाली ईएससीएमआइडी कांफ्रेंस में प्रस्तुत किए जाने वाले इस अध्ययन से पता चला कि मानसिक स्वास्थ्य पर दबाव, जो इस महामारी से पहले ही बहुत ज्यादा मात्र में मौजूद है, खतरनाक दर से बढ़ रहा है। पटेल ने कहा कि ऐसे कई मुद्दे हैं जो आबादी के बड़े हिस्से को प्रभावित करते हैं, जिसमें नौकरियों और आय की सुरक्षा, सामाजिक बहिष्कार, स्कूल बंद होना और परिवारों पर भारी दबाव बनाना आदि प्रमुख हैं।

विक्रम पटेल ने जोर देखकर कहा, “इस सब के अलावा अन्य चिंताएं जैसे चिकित्सा सेवा और देखभाल, संभावित घरेलू हिंसा स्थिति और सबसे बड़ी चिंता इस वायरस से संक्रमित होने का डर लोगों की मानसिक परेशानियां बढ़ा रहा है। …यह महामारी वैश्विक विकास की गति को कई वर्ष पीछे धकेल सकती है। इसमें उन देशों को बहुत नुकसान ङोलना पड़ेगा जो पहले से ही बहुत पीछे चल रहे हैं।”

गहरा रहा है मानसिक स्वास्थ्य का संकट

विक्रम पटेल ने कहा 2008 की मंदी (जिसमें केवल अमेरिका प्रभावित हुआ था) ने देशवासियों को आत्महत्या और मादक द्रव्यों का सेवन करने पर मजबूर कर दिया था जिससे बाहर आने के लिए आज भी कई लोग जद्दोजेहद कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी से पूर्व ही मानसिक स्वास्थ्य संकट एक बड़ा सवाल था, जो अब और गहरा गया है।

समय रहते कदम उठाएं सरकारें

गौरतलब है कि दुनियाभर में कोरोना वायरस (कोविड-19) का कहर जारी है। लंबे समय तक लागू रहे लॉकडाउन की वजह से कई लोगों की मानसिक हालत ठीक नहीं रही। ऐसे में दोबारा लॉकडाउन की आशंका उनकी समस्या और बढ़ा सकती है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं को दूर करने के लिए सरकारों को समय रहते कदम उठाने चाहिए ताकि एक बड़ी आबादी को बीमार होने से बचाया जा सके।

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