नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर में धारा 370 के विवादित प्रवधान और अनुच्छेद 35ए खत्म होने के बाद से बिलबिला रहे पाकिस्तानी हुक्मरानों का दम फूलने लगा है। संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस, ब्रिटेन, फ्रांस, आर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कंट्री समेत किसी भी बड़े मंच पर कोई सुनवाई न होने से निराश पाकिस्तान के बड़बोले विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने भारत की इस बड़ी कामयाबी को स्वीकार करते हुए आखिरकार हार मान ली है।
हालत यह रही कि कुरैशी समर्थन मांगने चीन पहुंचे तो कोई आश्वासन मिलना तो दूर उल्टे नसीहत मिली। अमेरिका ने पल्ला झाड़ लिया तो रूस ने साफ तौर पर अपने पुराने दोस्त भारत का समर्थन कर दिया। सबसे बुरा हुआ संयुक्त राष्ट्र में। संयुक्त राष्ट्र के अधिकारियों ने तो कश्मीर मुद्दे पर जवाब देना भी जरूरी नहीं समझा। सऊदी अरब पर बहुत भरोसा था पर उसने भी इस मुद्दे पर पाकिस्तान की कोई मदद नहीं की, उल्टे उसकी सबसे बड़ी सरकारी कंपनी ने भारत में अरबों डालर के निवेश का एलान कर जले में नमक छिड़क दिया। लुटे-पिटे पाकिस्तान ने अंततः भारत की इस बड़ी कामयाबी को स्वीकार करते हुए हार मान ली है।
पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने एक प्रेस कांफ्रेंस में स्वीकार किया कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांचों स्थायी सदस्यों (पी5 ) के समक्ष पाकिस्तान यदि कश्मीर मुद्दे को उठाता है तो उसको समर्थन मिलना मुश्किल है। बेहद निराश नजर आ रहे कुरैशी का कहना था कि मुस्लिम देशों से भी समर्थन मिलता नहीं दिख रहा है।
कुरैशी ने कहा, “सुरक्षा परिषद के लोग कोई गुलदस्ता लेकर नहीं खड़े हैं। पी5 सदस्यों में से कोई भी बाधा उत्पन्न कर सकता है। इस मामले में कोई अस्पष्टता नहीं होनी चाहिए, किसी तरह के भ्रम में नहीं रहना चाहिए।” इसके साथ ही कुरैशी ने कहा, “पाकिस्तान और कश्मीर के लोगों को ये जान लेना चाहिए कि वहां (यूएनएससी में) आपका कोई इंतजार नहीं कर रहा और न ही आपके निमंत्रण का इंतजार कर रहा है।”
पाकिस्तान के विदेश मंत्री ने कहा, “ढेर सारे देशों के भारत के साथ हित जुड़े हैं। मैंने पहले ही इस बारे में आपको संकेत दिए थे। ढेर सारे लोगों ने भारत में निवेश किया है। … हमने मुस्लिम देशों से इस बारे में बात की लेकिन मुस्लिम देशों की रहनुमाई करने वालों ने वहां (भारत) निवेश कर रखा है, उनके वहां पर हित हैं।”
गौरतलब है कि कुरैशी का बयान ऐसे वक्त पर आया है जब सऊदी अरब की सबसे बड़ी सरकारी कंपनी अरामको ने रिलायंस के तेल एवं केमिकल व्यापार में 20 प्रतिशत निवेश का एलान किया है। राजस्व के लिहाज से अरामको दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी है। यह भारत में सबसे बड़ा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश है।