- 4 नवम्बर 2022, शुक्रवार को (कुमार योग एवं राजयोग आगामी सूर्योदय तक) में करें व्रत मिलेगा लाभ
- 5 नवंबर को व्रत एवं पूजा-पाठ का मिलेगा पांच गुणा फल)
- 5 नवंबर 2022,शनिवार को करें “तुलसी विवाह“ संपन्न
- तुलसी विवाह का शुभ मुहूर्त सायं 5ः30 बज़े से रात्रि 7ः25 बज़े तक एवं रात्रि 8ः45 बज़े से रात्रि 10ः25 बज़े तक।
- इस दिन स्वयं सिद्ध अबूझ विवाह मुहुर्त
- इस दिन चातुर्मास होगा समाप्त, भीष्म पंचक व्रत होगा आरम्भ
BareillyLive, एस्ट्रो डेस्क। दीपावली के पश्चात् आने वाली एकादशी को “देव उठनी“ या “देव प्रबोधिनी एकादशी“ कहा जाता है। इस बार यह 4 नवंबर 2022, शुक्रवार को स्मार्तजनों की होगी एवं दिनाँक 5 नवंबर 2022, शनिवार को वैष्णव संप्रदाय की होगी। तुलसी विवाह शनिवार 5 नवंबर को संपन्न किया जाएगा। एकादशी व्रती स्मार्तजन प्रबोधिनी एकादशी व्रत का पारण 12ः19बजे के बाद हरिवासर योग को छोड़कर ही तुलसी एवं गंगाजल से कर सकेंगे।
बालाजी ज्योतिष संस्थान के ज्योतिषाचार्य पण्डित राजीव शर्मा के अनुसार चार माह पूर्व आषाढ़ शुक्ल देवशयनी एकादशी के दिन शयनस्थ हुए भगवान श्री विष्णु का इस एकादशी को जाग्रत होना माना जाता है। श्रीहरि विष्णु के शयनकाल के इन चार मासों में विवाह आदि मांगलिक शुभ कार्यों का आयोजन निषेध माना जाता है। हरि के जागने के बाद ही इस एकादशी से सभी शुभ एवं मांगलिक कार्य शुरू किये जाते हैं। इस दिन स्वयं सिद्ध अबूझ मुहूर्त है। इस दिन तुलसी पूजन का उत्सव, तुलसी से शालिग्राम के विवाह का आयोजन धूम-धाम से मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार जिन दम्पतियों के कन्या नहीं होती है, उन्हें जीवन में एक बार तुलसी का विवाह करके कन्यादान का पुण्य अवश्य प्राप्त करना चाहिए।
तुलसी विवाह :-
तुलसी विवाह कार्तिक शुक्ल एकादशी व्रत के पारण वाले दिन (प्रबोधोत्सव) रात्रि के प्रथम भाग (प्रदोषकाल) में करने का शास्त्र निर्देश है। यह पर्व कार्तिक शुक्ल एकादशी, द्वादशी के अतिरिक्त पूर्णिमा तक किसी भी तिथि में विवाह नक्षत्र काल मे करने का विधान है। इस वर्ष कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन रविवार तथा भद्रा व्याप्ति के कारण तुलसी विवाह निषेध रहेगा। तुलसी विवाह प्रबोधोत्सव के साथ एकादशी व्रत पारण वाले दिन प्रदोषकाल में अर्द्धरात्रि से पहले ही करने की परम्परा है, अतः इस वर्ष एकादशी पारणा (प्रबोधोत्सव) वाले दिन दिनाँक 5 नवंबर 2022, शनिवार को प्रदोषकाल में उत्तर भाद्रपद एवं रेवती नक्षत्र का संयोग होगा। अतः इस दिन शास्त्रसम्मत तुलसी विवाह सम्पन करना चाहिए।
क्यों होता है तुलसी विवाहः-
देवोत्थान एकादशी के दिन मनाया जाने वाला तुलसी विवाह विशुद्ध मांगलिक और आध्यात्मिक प्रसंग है देवता जब जागते हैं तों सबसे पहले प्रार्थना हरिवल्लभा तुलसी की ही सुनते हैं इसलिए तुलसी विवाह को देव जागरण के पवित्र मुहुर्त के स्वागत का आयोजन माना जाता है। तुलसी विवाह अखण्ड सौभाग्य देने वाला होता है। यह विवाह कार्तिक शुक्ल एकादशी को आयोजित किया जाता है।
तुलसी एक पूज्य वृक्ष है, इसका एक-एक पत्र वैष्णवों के लिए द्वादशाक्षर मंत्र ऊँ नमोः भगवते वासुदेवाय की भांति प्रभाव करने वाला होता है। वृहद धर्म पुराण के अनुसार हिन्दुओं के धार्मिक कार्य तथा संस्कार बिना तुलसी के अधूरे रहते हैं। कार्तिक मास में तुलसी पूजन महत्वपूर्ण है, भगवान विष्णु ने परमसती तुलसी की महत्ता स्वीकार की थी, तुलसी विवाह सामूहिक रूप से होता है। ऐसे माता-पिता जिनके पुत्र अथवा पुत्री के विवाह में विलम्ब हो रहा है उनको श्रद्धापूर्वक तुलसी विवाह सम्पन्न कराना चाहिए, इसका फल तत्काल मिलता है। विशेष रूप से कार्तिक मास में तुलसी विवाह का आयोजन कन्यादान के रूप में करते हैं।
तुलसी विवाह की विधि :-
भगवती तुलसी का आवाहनः-
“आगच्छ त्वं महादेवि! स्थाने चात्र स्थिरा भव। यावत पूजां करि यामि तावत त्वं संनिधौ भव।।“
तुलसी देवी मावाहा यामि। आवाहनार्य पुष्पा लिं समर्पयामि।
भावार्थः– भगवती तुलसी आप पधारें, पूजा हेतु स्थिर हों।
इस विवाह में लोग तुलसी जी के पौधे का गमला, गेरू आदि से सजाकर उसके चारों ओर ईख का मण्डप बनाकर उसके ऊपर ओढऩी या सुहाग प्रतीक चुनरी ओढ़ाते हैं, गमले को साड़ी ओढ़ाकर, तुलसी को चूड़ी चढ़ाकर उनका श्रृंगार करते हैं। गणपत्यादि पंचदेवों तथा श्री शालिग्राम जी का विधिवत् पूजन करके श्री तुलसी जी की षोडशोप्चार पूजा “तुलस्यैनम्ः“ अथवा “हरिप्रियार्ये नम्ः“ मंत्र बोलते हुए करें। तत्पश्चात् एक नारियल दक्षिणा के साथ टीका के रूप में रखते हैं तथा भगवान शालिग्राम जी की मूर्ति का सिंहासन हाथ में लेकर तुलसी जी की सात परिक्रमा कराकर उसके बाद आरती करने के पश्चात् विवाह उत्सव समाप्त होता है। द्वादशी के दिन पुनः तुलसी जी और विष्णु जी की पूजा कर व्रत का पारण करना चाहिए। भोजन के पश्चात् तुलसी के स्वतः टूटकर गिरे पत्तों को खाना शुभ होता है। इस दिन गन्ना , आवंला, और बेर का फल खाने से जातक के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। इस विवाह को महिलाओं के परिपेक्ष्य में अखण्ड सौभाग्यकारी माना जाता है।
तुलसी का वास्तु शास्त्रीय महत्वः-
जिस घर में तुलसी का पौधा सम्मान के साथ पूजित होकर स्थिर रहता है उस घर की स्त्रियां कभी आसाध्य रोग से पीड़ित नहीं होतीं।
ब्रह्मवैवर्त पूराण की कथानुसारः-
कालान्तर में तुलसी देवी, भगवान गणेश के शापवश असुर शंखचूड़ की पत्नी बनी। असुर शंखचूड़ के आतंक के कारण भगवान श्री हरि ने वैष्णवी माया फैला कर शंखचूड़ का वध कर दिया, तत्पश्चात् भगवान श्री हरि शंखचूड़ का रूप धारण कर साध्वी तुलसी के घर पहुंचे वहां उन्होने शंखचूड़ समान प्रदर्शन किया, तुलसी ने पति को युद्ध में आया देख उत्सव मनाया, तब श्री हरि ने शंखचूड़ के वेश में शमन किया, उस समय तुलसी जी के साथ उन्होंने सुचारू रूप से हास-विलास किया तथापि तुलसी को इस बार पहले की अपेक्षा आकर्षण में व्यतिक्रम का अनुभव हुआ, अतः उसे वास्तविकता का अनुमान हो गया, तब तुलसी ने कहा क्योंकि आपने मेरा सतीत्व नष्ट कर दिया, इसलिए मैं आपको श्राप दे रही हूँ, तुलसी के वचन सुनकर श्राप के भय से भगवान श्री हरि ने लीलापूर्वक अपना सुन्दर मनोहर स्वरूप प्रकट किया।
उन्हें देखकर पति के निधन का अनुमान करके तुलसी ने श्री हरि को पाषाण रूप होकर पृथ्वी पर रहने का श्राप दिया, तब भगवान श्री हरि ने कहा कि तुम मेरे लिए भारतवर्ष में रहकर बहुत दिनों तक तपस्या कर चुकी हो, अब तुम दिव्य देह धारण कर मेरे साथ सानन्द रहो, मैं तुम्हारे श्राप को सत्य करने के लिए भारतवर्ष में पोषाण (शालिग्राम) बनकर रहूँगा और तुम एक पूजनीय पौधे के रूप में पृथ्वी पर रहोगी। गण्डकी नदी के तट पर मेरा वास होगा, बिना तुम्हारे मेरी पूजा नहीं हो सकेगी। तुम्हारे पत्रों और मंजरियों से मेरी पूजा होगी। इस प्रकार शालिग्राम जी का पृथ्वी पर उद्भव हुआ। अतः तुलसी शालिग्राम जी का विवाह पौराणिक आख्यानों पर आधारित है।
तुलसीदल के बारे में कुछ ज्ञातव्य बातेंः-
- तुलसी पत्र बिना स्नान किये नहीं तोड़ऩा चाहिए। इससे पूजन कार्य निष्फल हो जाता है।
- वायु पुराण के अनुसार पूर्णिमा, अमवस्या, द्वादशी, रविवार व संक्रान्ति के दिन दोपहर दोनों संध्या कालों के बीच में तथा रात्रि में तुलसी नहीं तोडऩा चाहिए, तेल मालिश किये हुये भी तुलसी ग्रहण न करें।
- जन्म या मृत्यु के अशौच में, अपिवत्र समय में तुलसी पत्र ग्रहण नहीं करना चाहिए। क्योंकि तुलसी श्री हरि के स्वरूप वाली ही हैं।
- धर्म पुराण के अनुसार तुलसी पत्र को पश्चिम दिशा की ओर मुख करके भी नहीं तोडऩा चाहिए।
- तुलसीदल कभी दांतों से नहीं चबाना चाहिए।
- गणेश जी की पूजा में तुलसी पत्र चढ़ाना वर्जित है।
विशेषः- इस दिन आवश्यकता में इस अबूझ मुहूर्त में सगाई/टीका/रोका/गोद भराई शुभ कार्य किये जा सकते हैं
-ज्योतिषाचार्य पं राजीव शर्मा
बालाजी ज्योतिष संस्थान,बरेली