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गठिया की दवा से कोरोना वायरस का इलाज संभव, अमेरिका में भारतीय वैज्ञानिक का दावा

जॉर्जिया स्टेट यूनिवर्सिटी में वायरस वैज्ञानिक डॉ. मुकेश कुमार की अगुवाई में वैज्ञानिकों की टीम ने कोरोना वायरस से संक्रमित मनुष्य की कोशिकाओं पर इस दवा का सफल प्रयोग किया है। यूनिवर्सिटी ने डॉ. कुमार के प्रयोग पर आधारित शोध पत्र को पिछले सप्ताह प्रकाशित करते हुये यह जानकारी दी है।

नई दिल्ली। कोरोना वायरस (कोविड-19) ने भले ही पूरी दुनिया पर आक्रमण कर मानव सभ्यता को खतरा में डाल दिया हो पर मनुष्य की जिजीविषा को खत्म नहीं कर पाया है। यही कारण है कि इस खतरनाक वायरस की वजह से करीब दो लाख लोगों की मौत होने के बावजूद स्वास्थ्य विज्ञानियों ने हार नहीं मानी है। दुनिया की दर्जनों लेबोरेट्रीज में वैक्सीन बनाने के प्रयास जारी हैं। भारत में प्लाज्मा थेरेपी ने उम्मीद जगाई है। इन प्रयासों के बीच ही अमेरिका में भारतीय मूल के वैज्ञानिक डॉ. मुकेश कुमार ने शुरुआती प्रयोगों की सफलता के आधार पर दावा किया है कि गठिया (Arthritis) की दवा से कोरोना वायरस संक्रमण का सफल इलाज संभव है।

जॉर्जिया स्टेट यूनिवर्सिटी में वायरस वैज्ञानिक डॉ. मुकेश कुमार की अगुवाई में वैज्ञानिकों की टीम ने कोरोना वायरस से संक्रमित मनुष्य की कोशिकाओं पर इस दवा का सफल प्रयोग किया है। यूनिवर्सिटी ने डॉ. कुमार के प्रयोग पर आधारित शोध पत्र को पिछले सप्ताह प्रकाशित करते हुये यह जानकारी दी है। डॉ. कुमार ने बताया कि जोड़ों की हड्डियों को कमजोर करने वाले गठिया रोग (Rheumatoid Arthritis) के इलाज में दी जाने वाली औरानोफिन (Auranofin) दवा से कोरोना संक्रमित मरीज की कोशिकाओं में मौजूद कोविड-19 वायरस के संक्रमण को महज 48 घंटे में लगभग खत्म कर दिया गया। उनकी टीम अब जानवरों और मनुष्यों पर इसका समानांतर प्रयोग (Clinical trial) कर रही है। प्रयोग का अंतिम परिणाम आने में एक से दो महीने लगेंगे। 

डॉ. मुकेश कुमार ने बताया कि गठिया के इलाज के लिए स्वर्ण तत्वों से निर्मित (गोल्ड बेस) इस दवा की खोज अमेरिका में 1985 में की गयी थी। अमेरिकी खाद्य एवं औषधि विभाग ने इस दवा की खोज के बाद इसके इस्तेमाल की मंजूरी दे दी थी। 

मूलत: हरियाणा के सिरसा से ताल्लुक रखने वाले मुकेश डॉ कुमार मध्य प्रदेश के महू स्थित पशु चिकित्सा महाविद्यालय से विषाणु विज्ञान में स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद जॉर्जिया विश्विद्यालय में घातक विषाणुओं के इलाज पर शोध कर रहे हैं। 

उन्होंने बताया कि कोरोना वायरस के वैश्विक संकट से निपटने के दो ही उपाय हैं- पहला, इसका टीका बनाना और दूसरा दवा की खोज करना। उनकी दलील है कि इलाज की खोज के भी दो तरीके हैं- पहला, नयी दवा की खोज करना और दूसरा, मौजूदा दवाओं में से कारगर साबित होने वाली दवा की खोज करना। 

डॉ. मुकेश कुमार के मुताबिक, संकट की गंभीरता और तत्काल इलाज की जरूरत को देखते हुए सबसे त्वरित एवं कारगर उपाय मौजूदा दवाओं में से इस वायरस को कमजोर करने वाली सटीक दवा की खोज करना है। उनका दावा है कि औरानोफिन कोविड-19 के इलाज में प्रभावी साबित हो सकती है क्योंकि यह स्वर्ण तत्वों से बनी है और स्वर्ण तत्वों पर आधारित दवाएं वायरस के संक्रमण के इलाज में बहुत पहले से कारगर रही हैं।     

गत फरवरी में कोरोना वायरस के संक्रमण का प्रकोप शुरु होने के बाद उन्होंने इस दवा के प्रयोगशाला में कोशकीय परीक्षण की शुरुआत की थी। डॉ. कुमार ने कहा कि चूंकि यह दवा एफडीए द्वारा मान्यता प्राप्त है, इसलिये जरूरी प्रयोगों के दौर से गुजरने के बाद इसका तत्काल इस्तेमाल शुरू किया जा सकेगा। दवा के असरकारक होने के बारे में उन्होंने बताया कि कोरोना वायरस दो प्रकार से घातक साबित होता है। सबसे पहले यह वायरस शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को संतुलित करने वाली कोशिकाओं को कमजोर करता है। इसके बाद फेफड़े से शुरूकर किडनी और लिवर तक शरीर के सभी अंदरूनी अंगों को बहुत तेजी से निष्क्रिय (Multiple organ failure) कर देता है। उनका कहना है कि यह दवा वायरस पर दोहरी मार करती है । पहला, शरीर की कोशिकाओं से रोग प्रतिरोधक क्षमता को संतुलित करने वाले साइटोकीन तत्व के स्राव की अधिकता को कम करती है और दूसरा, कोशिकाओं में कोरोना वायरस की वृद्धि को तत्काल रोक देती है।

उनके अनुसार कोरोना वायरस, साइटोकीन के स्राव को अचानक बढ़ाकर रोग प्रतिरोधी कोशिकाओं को अतिसक्रिय कर देता है, इससे शरीर का प्रतिरोधक तंत्र पूरी तरह से असंतुलित हो जाता है और यह मल्टीपल ऑर्गन फेलियर की ओर शरीर को धकेल देता है। डॉ. कुमार ने बताया कि प्रयोगशाला में कोशिकाओं पर किये गये प्रयोग में पाया गया कि इस दवा के असर से 48 घंटे के भीतर संक्रमित कोशिका में वायरस की मौजूदगी 95 प्रतिशत तक समाप्त हो गयी।  उन्होंने बताया कि इससे स्पष्ट है कि यह दवा कोशिकाओं में वायरस की वृद्धि को तत्काल रोकने में सक्षम साबित हुयी है। 

डॉ. कुमार ने बताया कि प्रयोगशाला में कोशिकाओं पर किए गए प्रयोग में पाया गया कि इस दवा के असर से 48 घंटे के भीतर संक्रमित कोशिका में वायरस की मौजूदगी 95 प्रतिशत तक समाप्त हो गई। उन्होंने बताया कि इससे स्पष्ट है कि यह दवा कोशिकाओं में वायरस की वृद्धि को तत्काल रोकने में सक्षम साबित हुई है। क्लीनिकल ट्रायल की सफलता के प्रति पूरी तरह से आश्वस्त, डॉ. कुमार को उम्मीद है कि जल्द ही परीक्षण का दौर पूरा करने के बाद यह दवा कोरोना के खिलाफ वैश्विक जंग में मुख्य मारक हथियार साबित होगी।

gajendra tripathi

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