कलियुगाब्द…………….5119
विक्रम संवत्…………..2074
शक संवत्……………..1939
रवि………………..दक्षिणायन
मास……………………कार्तिक
पक्ष………………………कृष्ण
तिथी………………….त्रयोदशी
रात्रि 12.08 पर्यंत पश्चात चतुर्दशी
तिथि स्वामी…………….काम
नित्यदेवी…………..सर्वमंगला
सूर्योदय……….06.24.32 पर
सूर्यास्त……….06.00.09 पर
नक्षत्र………….उत्तराफाल्गुनी
दुसरे दिन प्रातः 06.38 पर्यंत पश्चात हस्त
योग………………………ब्रह्मा
संध्या 05.58 पर्यंत पश्चात इंद्र
करण……………………..गरज
दोप 12.15 पर्यंत पश्चात वणिज
ऋतु………………………..शरद
दिन…………………..मंगलवार

💰 धन त्रयोदशी पर्व :-
धनतेरस दीपावली से दो दिन पहले मनाई जाती है | जिस प्रकार देवी लक्ष्मी सागर मंथन से उत्पन्न हुई थी उसी प्रकार भगवान धनवन्तरि भी अमृत कलश के साथ सागर मंथन से उत्पन्न हुए हैं. देवी लक्ष्मी धन की देवी हैं परन्तु उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए आपको स्वस्थ्य और लम्बी आयु भी चाहिए यही कारण है दीपावली दो दिन पहले से ही यानी धनतेरस से ही दीपामालाएं सजने लगती हें
कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन ही धन्वन्तरि का जन्म हुआ था इसलिए इस तिथि को धनतेरस के नाम से जाना जाता है. धन्वन्तरी जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथो में अमृत से भरा कलश था. भगवान धन्वन्तरी चुकि कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परम्परा है. कहीं कहीं लोकमान्यता के अनुसार यह भी कहा जाता है कि इस दिन धन (वस्तु) खरीदने से उसमें 13 गुणा वृद्धि होती है. इस अवसर पर धनिया के बीज खरीद कर भी लोग घर में रखते हैं. दीपावली के बाद इन बीजों को लोग अपने बाग-बगीचों में या खेतों में बोते हैं.

⚜ धनवंतरी जयंती :-
आविर्बभूव कलशं दधदर्णवाद्यः पियूषपूर्णममरत्व कृते सुराणाम |
रुग्जालजीर्ण जनता जनित प्रशंसो, धन्वन्तरिः सभगवान भविकाय भूयात ||

धन्वन्तरि देवताओं के वैद्य हैं और चिकित्सा के देवता माने जाते हैं इसलिए चिकित्सकों के लिए धनतेरस का दिन बहुत ही महत्व पूर्ण होता है.
धन्वंतरि ईसा से लगभग दस हज़ार वर्ष पूर्व हुए थे। वह काशी के राजा महाराज धन्व के पुत्र थे। उन्होंने शल्य शास्त्र पर महत्त्वपूर्ण गवेषणाएं की थीं। उनके प्रपौत्र दिवोदास ने उन्हें परिमार्जित कर सुश्रुत आदि शिष्यों को उपदेश दिए इस तरह सुश्रुत संहिता किसी एक का नहीं, बल्कि धन्वंतरि, दिवोदास और सुश्रुत तीनों के वैज्ञानिक जीवन का मूर्त रूप है। धन्वंतरि के जीवन का सबसे बड़ा वैज्ञानिक प्रयोग अमृत का है। उनके जीवन के साथ अमृत का कलश जुड़ा है। वह भी सोने का कलश। अमृत निर्माण करने का प्रयोग धन्वंतरि ने स्वर्ण पात्र में ही बताया था। उन्होंने कहा कि जरा मृत्यु के विनाश के लिए ब्रह्मा आदि देवताओं ने सोम नामक अमृत का आविष्कार किया था। सुश्रुत उनके रासायनिक प्रयोग के उल्लेख हैं। धन्वंतरि के संप्रदाय में सौ प्रकार की मृत्यु है। उनमें एक ही काल मृत्यु है, शेष अकाल मृत्यु रोकने के प्रयास ही निदान और चिकित्सा हैं। आयु के न्यूनाधिक्य की एक-एक माप धन्वंतरि ने बताई है। पुरुष अथवा स्त्री को अपने हाथ के नाप से 120 उंगली लंबा होना चाहिए, जबकि छाती और कमर अठारह उंगली। शरीर के एक-एक अवयव की स्वस्थ और अस्वस्थ माप धन्वंतरि ने बताई है। उन्होंने चिकित्सा के अलावा फसलों का भी गहन अध्ययन किया है। पशु-पक्षियों के स्वभाव, उनके मांस के गुण-अवगुण और उनके भेद भी उन्हें ज्ञात थे। मानव की भोज्य सामग्री का जितना वैज्ञानिक व सांगोपांग विवेचन धन्वंतरि और सुश्रुत ने किया है, वह आज के युग में भी प्रासंगिक और महत्त्वपूर्ण है।

🕉 धनतेरस पूजन मुर्हूत :-
संध्या 07.43 से रात्रि 09.44 तक ।
प्रातः 08.35 से 10.45 तक गृह के धन के साथ दैवी शक्तियों का पूजन आर्थिक मामलों में स्थायित्व प्रदान करता है। इसी मुहूर्त में बहीखाता क्रय करना शुभ रहेगा। इसके बाद संध्या के पूजन मुहूर्त में भी बहीखाता खरीदा जा सकता है। सूर्यास्त के पश्चात अकाल मृत्यु से बचने के लिए घर के मुख्य द्वार पर बाहर की ओर 4 बातियों वाले दीप का दान यानी करें यानी दीप जलाएं। धनतेरस पर रजत यानी चांदी खरीदना सौभाग्य कारक माना जाता है।

☸ शुभ अंक………….8
🔯 शुभ रंग………..काला

👁‍🗨 राहुकाल :
दोप 03.03 से 04.29 तक ।

🚦 दिशाशूल :-
उत्तरदिशा –
यदि आवश्यक हो तो गुड़ का सेवन कर यात्रा प्रारंभ करें।

✡ चौघडिया :-
प्रात: 09.19 से 10.45 तक चंचल
प्रात: 10.45 से 12.11 तक लाभ
दोप. 12.11 से 01.37 तक अमृत
दोप. 03.03 से 04.29 तक शुभ
रात्रि 07.30 से 09.04 तक लाभ ।

🎶 आज का मंत्र :-
|| ॐ वीरवीराय नमः ||

🎙 संस्कृत सुभाषितानि :-
अष्टावक्र गीता – अष्टादश अध्याय :-
सन्तुष्टोऽपि न सन्तुष्टः
खिन्नोऽपि न च खिद्यते।
तस्याश्चर्यदशां तां
तादृशा एव जानते॥१८- ५६॥
अर्थात :-
लौकिक दृष्टि से प्रसन्न दिखने पर वह प्रसन्न नहीं होता और दुखी दिखने पर दुखी नहीं होता। उसकी उस आश्चर्यमय दशा को उसके समान लोग ही जान सकते हैं॥५६॥

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