नयी दिल्ली : (Which car should you buy, know expert opinion) भारत में बहुत सी कंपनियां अब धीरे-धीरे घर से काम करने की सुविधा देना बंद कर रही हैं जिसके चलते बहुत से लोग नये चार पहिया और दो पहिया वाहन खरीदने लगे हैं। अगर आप भी कार खरीदने की सोच रहे हैं तो सावधानी बरतनी पड़ेगी। आप अपनी कार का चुनाव बिना किसी विज्ञापन, किसी भी तरह के सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर या कार निर्माता कंपनी की मीडिया मैनेजमेंट कंपनी के प्रभाव में आये कैसे करें और किस तरह अपनी जरूरत के अनुसार भरोसेमंद कार खरीद सकें, यह जानने के लिए हमने बात की तपेश तिवारी। तपेश इंटरनेट के माध्यम से सेवा उपलब्ध कराने वाली कई कंपनियों में बड़े ओहदे पर रह चुके हैं। उन्होंने उपभोक्ता अनुसंधान और उपभोक्ता व्यवहार पर बहुत काम किया है और इस समय तेजी से आगे बढ़ते एक स्टार्टअप में वाइस प्रेसिडेंट हैं।
तपेश तिवारी से बात करके कुछ इतनी सरल बातें पता चलीं जिनको ध्यान में रखकर आप भी एक समझदारी भरी खरीदारी कर सकते हैं। इन बातों को हम आपको इसलिए भी बता रहे हैं कि अगर आप किसी भी कार का रिव्यू किसी भी अख़बार या न्यूज़ चैनेल पर देखें तो आपको अधिकतर उसके फीचर्स के बारे में जानकारी मिलेगी। उसे लेने के बाद की सर्विस, स्पेयर पार्ट्स की लागत, टायर कितनी जल्दी बदलने पड़ते हैं आदि पर कोई भी बात नहीं करता है।
तो सबसे पहले यह जानने की कोशिश करते हैं कि आप जब कार खरीदते हैं तो आपको उसके साथ और क्या-क्या खर्चे करने पड़ते हैं, जब तक वह कार आप अपने पास रखते हें। चौंकिये मत जनाब, यह एक बहुत बड़ा सत्य है जो अक्सर पहली बार खरीदने वाले लोग नहीं जान पाते और बाद में पछताना पड़ता है।
इनमें सबसे पहले आता है कार के रजिस्ट्रेशन का खर्च। भारत में चार मीटर से कम लंबी कार के लिए आपको कम पैसे देने पड़ते हैं। तो आप अपनी कार की जरूरत को सबसे पहले चेक करें कि क्या आपको वाकई में चार मीटर से लंबी कार की रोजाना के कामकाज के लिए जरूरत है भी कि नहीं। अब बारी आती है कार के बीमा कराने की। यह जानकर आपको थोड़ा सा अजीब लगेगा कि आजकल बीमा कंपनियां उन कारों का प्रीमियम बढ़ा देती हैं जिनकी क्लेम आने आवृत्ति ज़्यादा है या उनके क्लेम के समय मरम्मत की लागत बहुत ज्यादा आ रही है या जिन आरटीओ नंबर की कारों में क्लेम ज़्यादा आ रहा है। तो आप चेक करें कहीं आप ऐसी कार तो नहीं खरीद रहे हैं जिसकी एक्सिडेंटल रिपेयरिंग की लागत बहुत ज्यादा आती है या उस कार के संबंधित ब्रांड की बहुत अधिक दुर्घटनांएं तो नहीं हो रही हैं। ऐसी कार लेने से बचें।
अगला नंबर आता है कार की सर्विस का जिसके नाम पर कार निर्माता कंपनी आपकी जेब साफ करने को तैयार रहती है। आपको कार लेते समय कम से कम तीन-चार ऐसे कस्टमर्स से बात करनी चाहिए जो कार का वह मॉडल कम से कम दो साल से चला रहे हैं जो आप खरीदना चाह रहे हैं। ऐसे कस्टमर आपको उसी शोरूम के आसपास ही मिल जाएंगे क्योंकि अक्सर कार कंपनियों का सर्विस सेंटर कार शोरूम से लगा हुआ ही होता है।
अगला और बहुत महत्वपूर्ण बात यह है कि आप जिस मॉडल की कार ले रहे हैं, उसकी सेल्स के नंबर क्या हैं। आप जिस भी सेगमेंट की कार ले रहे हैं, उसके सेल्स के नंबर इंटरनेट पर सर्च कर सकते है। तपेश ने हमें सलाह दी कि भारत में 10 लाख रुपये के आस-पास के एक्स शोरूम से कम की कोई भी वह कार जिसके सेल्स नंबर दस हज़ार प्रतिमाह से कम है, ना खरीदें। दस लाख रुपये से अधिक की कार के लिए वह कहते हैं आप जिस सेगमेंट की कार लेना चाह रहे हैं, उसमें उपलब्ध सभी विकल्पों में सबसे जायदा बिकने वाले विकल्प को ही चुनें। इसके पीछे तपेश ने दो कारणों पर प्रमुख रूप से प्रकाश डाला। उनका कहना है कि एक तो कंपनी और सर्विस एजेन्सी के लेवल पर इससे नीचे के नंबर पर सर्विस लागत ढंग से ऑप्टिमाइज़ नहीं हो पाती है, दूसरा ये नंबर आपकी कार की रीसेल वैल्यू को भी बहुत प्रभावित करता है। उन्होंने इस बात को समझाने के लिए टोयोटा अर्बन क्रूज़र और मारुति ब्रेज़्ज़ा का उदाहरण दिया कि कैसे दोनों एक ही तरह की कार थीं पर एक कंपनी उसके सेल्स नंबर नही संभाल पाई और आखिरकार उसने अर्बन क्रूज़र मॉडल की बिक्री बंद कर दी। महिंद्रा की तो उन्होंने पूरी लिस्ट ही गिना दी कि कैसे लोगान, वेरिटो, महिंद्रा अल्टूर्स जैसे कई सारे मॉडल कंपनी आज बंद कर चुकी है।
उन्होंने अपनी बात को समझाते हुए कहा कि अच्छे सेल्स के नंबर किसी भी कंपनी की सारी परेशानी ख़त्म कर देते हैं क्योंकि उन नंबर्स को बनाए रखने के लिए कंपनी अपनी कार और उससे रिलेटेड सर्विस को देने में कोई कसर नहीं छोड़ती है।
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