नई दिल्ली। रक्षा उत्पादन क्षेत्र में एक बड़ा कदम बढ़ाते हुए भारत ने सोमवार को मानव रहित स्क्रैमजेट हाइपरसोनिक स्पीड फ्लाइट का सफल परीक्षण किया। रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) ने ओडिशा तट के पास डॉ. अब्दुल कलाम द्वीप पर इसका परीक्षण किया। रक्षा सूत्रों की मानें तो हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल प्रणाली के विकास को आगे बढ़ाने के लिए आज का परीक्षण एक बड़ा कदम है। स्क्रैमजेट के हाइपरसोनिक स्पीड फ्लाइट के सफल परीक्षण से भारत की रक्षा क्षमता आसमान और अंतरिक्ष दोनों में बढ़ेगी। जो विमान 6126 से 12251 किमी प्रतिघंटा की रफ्तार से उड़े, उसे हाइपरसोनिक विमान कहते हैं।
एचएसटीडीवी (हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डिमॉन्स्ट्रेटर व्हीकल/Hypersonic Technology Demonstrator Vehicle) हाइपरसोनिक स्पीड फ्लाइट के लिए मानव रहित स्क्रैमजेट प्रदर्शन विमान है। भारत के एचएसटीडीवी (HSTDV) का परीक्षण 20 सेकंड से भी कम समय का था। 12,251 किलोमीटर प्रतिघंटा यानी 3.40 किलोमीटर प्रति सेकेंड की गति। इतनी रफ्तार से जब यह दुश्मन पर हमला करेगा तो उसके बचने का कोई भी मौका नहीं मिलेगा।
Hypersonic Technology Demonstrator Vehicle के सफल परीक्षणों के बाद अगर इसे बनाकर उड़ाने में सफलता मिल जाएगी तो भारत ऐसी तकनीक हासिल करने वाले देशों के चुनिंदा क्लब में शामिल हो जाएगा। इस विमान का उपयोग मिसाइल और सैटेलाइट लॉन्च करने के लिए हो सकता है। इसका इस्तेमाल कम लागत पर उपग्रह लॉन्च करने के लिए भी किया जा सकता है।
डीआरडीओ ने परीक्षण की सफलता पर कहा कि यह परीक्षण इसलिए किया गया ताकि हम भविष्य के लिए तकनीकों को जांच सकें। हाइपरसोनिक स्पीड फ्लाइट को लॉन्च करते के बाद उसकी गतिविधियों को विभिन्न राडार, टेलीमेट्री स्टेशन और इलेक्ट्रो ऑप्टिकल ट्रैकिंग सेंसर्स से ट्रैक किया गया। अभी डाटा जमा करके उसका विश्लेषण किया जा रहा है। गौरतलब है कि इससे पहले पिछले साल जून के महीने में भी HSTDV का परीक्षण किया गया था।
चीन ने पिछले साल अपने पहले हाइपरसोनिक (ध्वनि से तेज रफ्तार वाले) विमान शिंगकॉन्ग-2 या स्टारी स्काय-2 का सफल परीक्षण किया है। चीन का यह विमान परमाणु हथियार ले जाने और दुनिया की किसी भी मिसाइल विरोधी रक्षा प्रणाली को भेदने में सक्षम है। हालांकि सेना में शामिल होने से पहले इसके कई परीक्षण किए जाएंगे. लेकिन एक साल बाद भी चीन की तरफ से इस विमान को लेकर कोई जानकारी सामने नहीं आई है। इससे पहले अमेरिका और रूस भी हाइपरसोनिक विमान का परीक्षण कर चुके हैं।
इससे पहले यह माना जा रहा था कि हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी ट्रांसपोर्टर व्हीकल के विकास से स्क्रैमजेट तकनीक से बन रहे हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल ब्रह्मोस-2 का काम बाधित होगा। भारत और रूस ने ब्रह्मोस को लेकर समझौता किया था। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। ब्रह्मोस मिसाइल के विकास को लेकर इस तकनीक की वजह से कोई बाधा नहीं आई है.।
मात्र 1,300 करोड़ रुपये के शुरुआती निवेश से शुरू किए गए ब्रह्मोस संयुक्त उपक्रम का मूल्य आज की तारीख में 40,000 करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है। ब्रह्मोस, दोनों देशों द्वारा साझा तौर पर विकसित की गई एक सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल है।
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