उस दिन जब बेटियों को शहतूत पेड़ से तोड़कर खिलाना चाहा तो उन्होंने मना कर दिया कि डैडी हम अभी नहीं खाएंगे। मैंने पूछा क्यों तो उन्होंने कहा कि ये गंदे हैं। इन्हें तोड़कर घर ले चलिए वहां धोकर खाएंगे। लेकिन, मैं चाहता था कि वे इन्हें धोकर न खायें। आखिर क्यों? जानिए इस पोस्ट में।
हम सब अपने घर में बच्चों को यही सिखाते हैं कि बाजार से लाने वाले फल और सब्जियों को अच्छे से धोकर ही प्रयोग करना चाहिए। आज के माहौल के हिसाब से ही यह सही भी है क्योंकि इतने कीटनाशकों व अन्य रसायनों का प्रयोग किया जाता है कि अगर उन्हें धोया नहीं जाएगा तो कीटनाशकों के अंश भी हमारे शरीर के अंदर चले जाएंगे। लेकिन, मैं यहां आपको एक और बात बताने जा रहा हूं। आजकल अगर आप किसी व्यक्ति का विटामिन का स्तर चेक कराएं तो उसमें सबसे ज्यादा कमी विटामिन डी और विटामिन B12 की होती है। विटामिन डी के बारे में फिर कभी, आज विटामिन B12 की बात करेंगे।
हम शाकाहारी लोगों को बताया जाता है की विटामिन बी12 शाकाहार में नहीं होता इसलिए हमारे अंदर कमी हो जाती है। हमें विटामिन B12 लेने के लिए डेयरी उत्पाद जैसे दूध और अंडे या फिर मांस खाने के लिए कहा जाता है। लेकिन प्रश्न यह खड़ा होता है कि यदि शाकाहार में विटामिन B12 नहीं है तो उन पशुओं के अंदर विटामिन बी12 कहां से आता है जो सिर्फ शाकाहार ही करते हैं और उसके बाद हमें दूध और मांस प्रदान करते हैं।
दरअसल, विटामिन B12 को प्रकृति में पाए जाने वाले कई प्रकार के बैक्टीरिया बनाते हैं जो धूल, मिट्टी और नदी-झरनों के पानी में पाए जाते हैं। ये बैक्टरिया कोबाल्ट नामक तत्व से मिलकर बी12 बनाते हैं। ये बैक्टीरिया हमारी और पशुओं की बड़ी आंत यानी कोलन में भी होते हैं और वहां भी बी12 बनाते हैं। लेकिन यह बी12 हमारे शरीर मे अवशोषित नहीं हो पाता, बल्कि मल के साथ बाहर निकल जाता है। यह हमारी छोटी आंत में ही अवशोषित होकर हमें मिल सकता है। घास पर, फल-सब्जियों पर जो धूल-मिट्टी जमी होती है ये उसमें भी पाए जाते हैं। जब मवेशी उस घास को खाते हैं और प्राकृतिक स्रोत से पानी पीते हैं तो धूल के साथ-साथ विटामिन B12 भी शरीर में पहुँच जाता है। और जब हम पशु-जन्य उत्पाद दूध, मांस, अंडे आदि का सेवन करते हैं तो हमें भी विटामिन बी12 मिल जाता है।
लेकिन मांसाहारी लोग भी यह खुशफहमी न पालें कि उनके अंदर विटामिन B12 की कमी नहीं होगी क्योंकि आजकल पशुओं को भी कृत्रिम रूप से पाला जा रहा है। उनको कृत्रिम वातावरण में रखा जाता है, साफ पानी और चारा खाने को मिलता है। इस कारण उनके अंदर भी विटामिन B12 की कमी हो जाती है। हां यदि पशुओं को कृत्रिम रूप से विटामिन बी12 दिया जा रहा हो तो इसकी कमी नहीं होती अन्यथा उनमें भी विटामिन B12 की कमी होने लगी है।
यदि शाकाहारी लोग भी फल-सब्जियों को उन पर लगी धूल के साथ ही खाएं तो विटामिन बी12 बनाने वाले वैक्टीरिया ठीक उसी तरह हमारे पेट में भी पहुंच जाएंगे जैसे कि पशुओं के शरीर में पहुंचते हैं। इसके विपरीत जब हम फल और सब्जियों को धोते हैं तो उनके साथ विटामिन बी12 भी धुल जाता है और हम उससे वंचित रह जाते हैं।
मैं यह नहीं कह रहा कि आप फल और सब्जियों को धोकर न खाएं। आज के हालात में ऐसा करना बहुत जरूरी है लेकिन मैंने आपको इसके पीछे का विज्ञान बता दिया। यदि आपको कोई ऐसा पौधा या पेड़ मिले जिस पर कभी कीटनाशक आदि रसायनों का प्रयोग न किया गया हो तो आप उससे तोड़े हुए फल और सब्जी को बिना धोये निसंकोच खा सकते हैं।
आप सोच रहे होंगे कि विटामिन B12 की कमी हो रही है तो हो जाने दो, क्या फर्क पड़ता है! फर्क पड़ता है साथियों। यह बहुत ही महत्वपूर्ण विटामिन है। इसकी कमी के कारण हमारा दिमाग, हमारी नर्व्स अच्छी तरह से काम नहीं करतीं यहां तक कि हमारे शरीर में खून भी सही से नहीं बन पाता। शरीर मे सुन्नपन, सुई जैसी चुभन, स्मृति यानि याददाश्त की कमी, डिप्रेसन, थकान आलस्य आदि विटामिन बी12 की कमी के लक्षण हैं। इसलिए इसका होना बहुत जरूरी है। यदि आपके शरीर में उपरोक्त तरह के लक्षण हैं तो एक बार विटामिन B12 लेकर जरूर देखें। इसको सप्लीमेंट फॉर्म में भी ले सकते हैं।
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