द वाशिंगटन पोस्ट में लिखे संपादकीय में फरीद जकारिया ने इस बात पर अफसोस जताया कि अमेरिकी सरकार में इसे छिपाकर रखने की आदत है क्योंकि वे नहीं जानते कि इस मुद्दे से निपटा कैसे जाए।
भारतीय-अमेरिकी जकारिया ने लिखा, ‘‘पाकिस्तानी सेना को तालिबान का ‘गॉडफादर’ बताया जाता रहा है। पाकिस्तान 1980 के दशक में सोवियत संघ से युद्ध के दौरान अमेरिका समर्थित मुजाहिद्दीन का गढ़ रहा है। वर्ष 1989 में जब सोवियत संघ पीछे हट गया तो अमेरिका ने तेजी से कदम वापस खींच लिए और पाकिस्तान उस रणनीतिक शून्य में दाखिल हो गया।
उन्होंने लिखा, ‘‘उसने पाकिस्तानी मदरसों में चरमपंथी इस्लाम की तालीम लेने वाले युवा पख्तून जिहादियों के समूह तालिबान :तालिब यानी छात्र: को आगे कर दिया। अब इतिहास खुद को दोहरा रहा है। अब जबकि अमेरिका अपने बल वापस ले रहा है तो पाकिस्तान एक बार फिर से अपनी पुरानी इच्छा के तहत अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रहा है।
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