BareillyLive : इसे कहते हैं बटर ट्री यानी मक्खन का पेड़ …जी हाँ! इस तरह के पेड़ उत्तराखंड में अक्सर दिखाई पड़ते हैं। च्यूर नाम का यह पेड़ देवभूमि वासियों को वर्षों से घी उपलब्ध करा रहा है। इसी खासियत के कारण इसे ‘इंडियन बटर ट्री’ कहा जाता है।
जीबी पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के डॉ. वी पी डिमरी बताते हैं कि दूध की तरह मीठा और स्वादिष्ट होने के कारण च्यूर के फलों को चाव से खाया जाता है। दुनिया में तेल वाले पेड़ों की सैकड़ों प्रजातियां हैं, लेकिन कुछ ही ऐसी हैं, जिनसे खाद्य तेल प्राप्त किया जा सकता है। डॉ. डिमरी कहते हैं कि यदि च्यूर के व्यावसायिक उत्पादन को बढ़ावा दिया जाए, तो यह राज्य की आर्थिक स्थिति को बदल सकता है।
च्यूर संरक्षित प्रजाति का पेड़ है और इसे काटने की अनुमति नहीं है। इसके बावजूद च्यूरा के पेड़ों की संख्या लगातार घट रही है। यह पेड़ तीन से पांच हजार फीट की ऊंचाई में होता है। च्यूर के वृक्ष नेपाल के वनों में बहुतायत से पाए जाते हैं। सिक्किम और भूटान में भी च्यूरा के पेड़ काफी मिलते हैं। उत्तराखंड में अल्मोड़ा, पिथौरागढ़ और चंपावत जिलों के घाटी वाले क्षेत्रों में भी च्यूरा के पेड़ काफी हैं। नैनीताल जिले के कुछ इलाकों में भी इसके इक्का-दुक्का पेड़ हैं।
च्यूरा को घी वृक्ष के रूप में जाना जाता है। च्यूरा के बीजों से वनस्पति घी निकाला जाता है, जो काफी पौष्टिक होता है। यह दूध से बने घी की तरह ही दिखाई देता है और स्वाद में भी लगभग इसी तरह होता है। इसका फल भी काफी जायकेदार होता है। घी निकालने के बाद बीज का प्रयोग खाद की तरह भी किया जा सकता है। इसकी लकड़ी मजबूत और हल्की होने के कारण फर्नीचर और खासकर नाव आदि बनाने में भी प्रयोग में लाई जाती है।
च्यूरा का घी औषधि के काम भी आता है। च्यूरा के फूलों व बीजों से शहद, घी, तेल, साबुन, धूप, अगरबत्ती, कीटनाशक दवा आदि बनाये जाते हैं। च्यूरा के फूलों से शहद बनता है। इसके फूलों में दोनों तरफ पराग होता है, जिस कारण इससे बनने वाले शहद की मात्रा काफी अधिक रहती है। च्यूरा के फल बेहद मीठे और रसीले होते हैं, जिन्हें पराठों आदि में प्रयोग किया जाता है। इसकी खली जानवरों के लिए सबसे अधिक पौष्टिक मानी जाती है।
संकलन: एम शकील अंजुम