बरेली। भारत भूमि के कण-कण में ईश्वरत्व का दर्शन होता है। यहां अध्यात्म की अत्यंत गहन परम्परा है। जहां-जहां से अध्यात्म झरा वहां तीर्थ बनते गये और इसी के साथ बन गयी तीर्थयात्राओं की एक लम्बी श्रृंखला। श्री अमरनाथ यात्रा इसका जीवन्त उदाहरण है। इस यात्रा के कदम-कदम पर मौन बिखरा है। मौन ही शिवत्व है, शिव है, सत्य है और सुंदर है। अमरनाथ यात्रा का अपना एक दर्शन है तो यह कश्मीर की अर्थव्यवस्था की रीढ़ भी है। अमरनाथ यात्रा के दौरान हुए अनुभव को बेहद शानदार ढंग से लिपिवद्ध करके पुस्तक के रूप में प्रस्तुत किया है अमित कुमार सिंह ने। उनसे बरेली लाइव के सम्पादक विशाल गुप्ता ने यात्रा को लेकर विस्तार से चर्चा की। उनके अनुभवों को जाना। प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंश:-
प्रश्न – अमरनाथ यात्रा विचार आपके मन में कैसे आया?
उत्तर– युवावस्था से ही मेरे मन में जिज्ञासा थी कि आखिर ऋषि हिमालय में ही साधना के लिए क्यों जाते हैं? क्या हिमालय का सौन्दर्य सत्य और शिव की प्राप्ति में सहायक होता है या फिर यहां का निम्न तापमान साधना में सहायक होता है? यदि होता भी है तो क्या समाज से पलायन करके निर्जन में निकलकर साधना, सत्य को खोजना व्यक्तिगत उपलब्धि है या इसका सामाजिक दायित्व से कोई सरोकार है?
इन सवालों का उत्तर किताबों में खोजना बेमानी था। ऐसे में हिमालय की यात्रा से ही इनका जवाब मिल सकता है। ऐसे में शिवत्व की खोज के लिए हिमालय में अमरनाथ यात्रा से बेहतर क्या हो सकता था?
प्रश्न – आपकी जिज्ञासाओं को हल करने में यह यात्रा कितनी सफल रही?
उत्तर-अमरनाथ यात्रा आश्चर्यजनक रूप से हिमालय के सौन्दर्य, रहस्य और रोमांच को प्रकट करने में पूर्णतया सफल रही। हालांकि पहाड़ का सौन्दर्य अन्य हिल स्टेशनों में भी मिलता है लेकिन वहां आत्मा की प्यास नहीं बुझती। अमरनाथ यात्रा के दौरान कदम-कदम पर शिवत्व के दर्शन होता है। शिवत्व और मौन का जीवन्त अनुभव होता है। मौन से सत्य को जानना कितना आसान होता है यह किसी साधक से नहीं छिपा है। यह यात्र मन से अ-मन की ओर स्वतः ही ले जाती है। यही सत्य और आनन्द की दशा है।
अन्य पहाड़ी स्टेशनों पर भी लोग नैसर्गिक सौन्दर्य का अनुभव करते हैं लेकिन वहां मन मस्त तो होता है लेकिन आत्मा तृप्त नहीं होती। मन के भीतर और बाहर की भीड़ पीछा नहीं छोड़ती, लेकिन अमरनाथ यात्रा के दौरान चार-पांच दिन तक मोबाइल, टीवी और इंटरनेट से आप मुक्त रहते हैं। जैसे ही आप सम्बन्धों के जाल से बाहर निकलते हैं, आपका अहंकार भी विसर्जित हो जाता है। इसके बाद आप स्वयं के साथ होते हैं। ईश्वर के साथ होते हैं। इस तरह से अमरनाथ यात्रा अहंकार से निरहंकार की यात्रा का माध्यम बन जाती है।
प्रश्न – लोगों की भीड़ तो यहां यात्रा में भी रहती है?
उत्तर-यहां भीड़ अपने लक्ष्य की ओर केन्द्रित रहती है। सबका एक ही लक्ष्य होता है शिव के दर्शन, शिवत्व का अनुभव। एक सामूहिक लक्ष्य हो तो बेजह के प्रश्न खत्म हो जाते हैं, चिन्ता और तनाव से भी मुक्ति मिल जाती है। आप और ईश्वर के मध्य फिर कोई नहीं होता।
प्रश्न – अमरनाथ यात्रा में खतरा भी तो रहता है?
उत्तर -हिमालय का सौन्दर्य, चारों ओर व्याप्त आनन्ददायक शांति एक दिव्यता का अनुभव कराती है। यहां ऊर्जा इतनी प्रबल और शुद्ध है कि घोर नास्तिक भी ईश्वर की उपस्थिति का अनुभव कर सकता है। रही बात खतरे की तो यह खतरा और रोमांच भी जागरूकता की दृष्टि से अत्यधिक उपयोगी सिद्ध होता है।
प्रश्न – भारत और पाक सम्बन्धों का असर भी इस यात्रा पर रहता है। कई बार दहशत का माहौल रहता है, ऐसे में यात्रा के अनुभव कैसे रहे?
उत्तर – मेरा शोध कार्य भारत और पाकिस्तान के सम्बंधों पर ही है। कश्मीर के लोगों से मिलना भी मेरा सपना था। ऐसे में जब मित्रों ने अमरनाथ यात्रा पर जाने का प्रस्ताव रखा तो मैंने स्वीकार कर लिया। हालांकि इसके लिए पत्नी और मां को समझाने में थोड़ी मेहनत करनी पड़ी। हम ट्रेन से जम्मू पहुंचे और वहां से श्रीनगर। यहां लालचैक पर पहुंचे तो आमतौर पर चर्चा में रहने वाले इस इलाके को लेकर थोड़ा डर मन में था लेकिन हमने वहां घूमकर फोटो शूट भी किये। डल झील घूमे। झील में हाउसबोट और शिकारे देखकर। यहां पानी में रहते लोग, सजा बाजार, जगमग रोशनी देखकर पानी में तैरता शहर सा अनुभव हो रहा था।
इसके बाद अलसुबह अनन्त नाग होते हुए पहलगाम की ओर रवाना हुए। यहां पहुंचकर हमने सुरक्षा का जो अभूतपूर्व इंतजाम देखा तो लगा कि आतंकियों द्वारा यात्रा वाधित करने के किसी भी प्रयास को विफल करने के लिए सेना पूरी तरह तैयार है। हालांकि इसको लेकर थोड़ी दहशत का अनुभव हुआ लेकिन तम्बुओं के इस शहर के रोमांच ने मन मोह लिया। इन तम्बुओं में यात्रा के दौरान आवश्यकता पड़ने वाली हर चीज मुहैया थी। यहां सेना के कार्यालय में पंजीकरण की औपचारिकता के बाद असल यात्रा शुरू होनी थी।
प्रश्न – असल यात्रा अर्थात ?
उत्तर- यहां से यात्रा पैदल होनी थी। पहलगाम से चंदनबाड़ी, वहां से पिस्सूटाॅप, फिर जोगीपाल होते हुए शेषनाग पहुंचना था। वहां से एमजीटाॅप होते हुए आगे का सफर करना होता है। फिर पोषपत्री, पंचतरिणी होते हुए बाबा बर्फानी की अमरनाथ गुफा तक पहुंचा जाता है। यहां जगह-जगह बीएसएफ के शिविर, सेना की सतर्क टुकड़ियां यात्रियों की सुविधा का पूर्ण ध्यान रखती हैं। कश्मीरी लोगों का भी सहयोग सराहनीय रहा।
प्रश्न – बाबा बर्फानी के दर्शन के बाद क्या अनुभव रहा?
उत्तर -अमरनाथ गुफा तक का मार्ग तमाम चुनौतियों से भरा है। लेकिन गुफा दर्शन मात्र ही एक अद्भुत आनन्द की अनुभूति करा देता है। गुफा के द्वार पर लगी घण्टियों की गूंज और बम-बम भोले का जयघोष वातावरण में एक आध्यात्मिक ऊर्जा का वर्तुल बना देता है। जब हम बाबा बर्फानी के सामने पहुंचे तो वह 15 फिट की ऊंचाई वाले शिवलिंग के रूप में प्रकट थे। उनके दर्शन से मैं अभिभूत, आश्चर्यचकित और आल्हादित था। शिवलिंग दर्शन करते हुए न जाने मुझे क्या हुआ कि मैं फूट-फूटकर रोने लगा। मन एकदम शान्त और विचार शून्य। यह अजीव से अनुभूति थी। न अतीत की कोई बात न भविष्य का ख्याली पुलाव। यह अध्यात्मिक सम्भोग की दिव्य अनुभूति थी। बाबा बर्फानी के दर्शन के बाद हम धीरे-धीरे बाहर आये, हालांकि मन नहीं कर रहा था लेकिन पीछे दर्शनों के लिए हजारों भक्तों की कतार के दबाव के कारण आना पड़ा। मन कर रहा था कि यहीं रह जायें। हो सकता है कि यह भी एक वासना हो लेकिन मनःस्थिति ऐसी ही थी।
उत्तर – बातचीत में कश्मीर के लोगों ने कहा कि भारत की मेनस्ट्रीम मीडिया कश्मीर के सम्बंध में नकारात्मकता की ग्रंथि से ग्रस्त है। वहां हुई कोई भी छोटी सी नकारात्मक घटना भी मीडिया की सुर्खियां बन जाती है जबकि कोई सकारात्मक घटना मीडिया का ध्यान आकर्षित नहीं करती। मीडिया सनसनी फैलाकर अपना व्यावसायिक मुनाफा कमाने में तनिक भी अपराध बोध महसूस नहीं करती। हालांकि लौटकर हम श्रीनगर पहुंचे तो आॅटो वाले से यह सुनकर अवाक रह गये कि क्या आप इण्डिया से आये हैं?
प्रश्न – कश्मीर के लोग आजादी की बात अक्सर करते हैं? इस सम्बंध में क्या अनुभव रहे?
उत्तर– मैं हैरान था कि लोकतांत्रिक चुनावों और सरकारों के बावजूद वहां आजादी एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। लेकिन यह आजादी क्यों और किससे? इस विषय पर राय स्पष्ट नहीं है। वहां के युवाओं का कहना है कि कश्मीर में युवक बेरोजगार हैं। कश्मीर में रोजगार के अवसर सीमित हैं और यहां के युवा बाहर के अनुरूप स्वयं को ढाल पाने के योग्य हैं नहीं। ऐसे में यह एक चुनौती है।
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