गुवाहाटी। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को पूर्वोत्तर के राज्यों से उग्रवाद के खात्मे के प्रयास में सोमवार को एक बड़ी सफलता मिली। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मौजूदगी में केंद्र सरकार, असम सरकार और बोडो उग्रवादियों के प्रतिनिधियों ने असम समझौता-2020 पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते के साथ ही करीब 50 साल से चला रहा बोडोलैंड विवाद समाप्त हो गया जिसमें अब तक 2823 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। पिछले 27 साल में यह तीसरा “असम समझौता” (असम समझौता-3)है।
इस विवाद के जल्द समाधान के लिए मोदी सरकार लंबे समय से प्रयासरत थी और अमित शाह के गृह मंत्री बनने के बाद इसमें काफी तेजी आई। गौरतलब है कि पिछले साल लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने पूर्वोत्तर के राज्यों से उग्रवाद समाप्त करने का वादा किया था।
इस अवसर पर गृह मंत्री ने ऐलान किया कि उग्रवादी गुट नेशनल डेमोक्रैटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड के 1550 कैडर 30 जनवरी को अपने 130 हथियार सौंप कर आत्मसमर्पण कर देंगे। शाह ने कहा कि इस समझौते के बाद अब असम और बोडो के लोगों का स्वर्णिम भविष्य सुनिश्चित होगा। उन्होंने आश्वासन दिया कि केंद्र सरकार बोडो लोगों से किए गए अपने सभी वादों को समयबद्ध तरीके से पूरा करेगी। इस समझौते के बाद अब कोई अलग राज्य नहीं बनाया जाएगा।
प्नधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर कहा कि बोडो समझौते के बाद अब शांति, सद्भाव और एकजुटता का नया सवेरा आएगा। समझौते से बोडो लोगों के लिए परिवर्तनकारी परिणाम सामने आएंगे, यह प्रमुख संबंधित पक्षों को एक प्रारूप के अंतर्गत साथ लेकर आया है। यह समझौता बोडो लोगों की अनोखी संस्कृति की रक्षा करेगा और उसे लोकप्रिय बनाएगा तथा उन्हें विकासोन्मुखी पहल तक पहुंच मिलेगी।
करीब 50 साल पहले असम के बोडो बहुल इलाकों में अलग राज्य बनाए जाने को लेकर हिंसात्मक विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए थे। इस विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व एनडीएफबी ने किया। यह विरोध इतना बढ़ गया कि केंद्र सरकार ने गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) कानून, 1967 के तहत एनडीएफबी को गैरकानूनी घोषित कर दिया। बोडो उग्रवादियों पर हिंसा, जबरन उगाही और हत्या का आरोप है। 2823 लोग इस हिंसा की भेंट चढ़ चुके हैं।
गौरतलब है कि बोडो असम का सबसे बड़ा आदिवासी समुदाय है जो राज्य की कुल जनसंख्या का 5 से 6 प्रतिशत है। यही नहीं, लंबे समय तक असम के बड़े हिस्से पर बोडो आदिवासियों का नियंत्रण रहा है। असम के चार जिलों कोकराझार, बाक्सा, उदालगुरी और चिरांग को मिलाकर बोडो टेरिटोरिअल एरिया डिस्ट्रिक का गठन किया गया है। इन जिलों में कई अन्य जातीय समूह भी रहते हैं। बोडो लोगों ने वर्ष 1966-67 में राजनीतिक समूह प्लेन्स ट्राइबल काउंसिल ऑफ असम के बैनर तले अलग राज्य बोडोलैंड बनाए जाने की मांग की।
वर्ष 1987 में ऑल बोडो स्टूडेंट यूनियन ने एक बार फिर से बोडोलैंड बनाए जाने की मांग की। यूनियन के नेता उपेंद्र नाथ ब्रह्मा ने उस समय असम को 50-50 में बांटने की मांग की। दरअसल, यह विवाद असम आंदोलन (1979-85) का परिणाम था जो असम समझौते के बाद शुरू हुआ। असम समझौते में असम के लोगों के हितों के संरक्षण की बात कही गई थी। इसके फलस्वरूप बोडो लोगों ने अपनी पहचान बचाने के लिए एक आंदोलन शुरू कर दिया। दिसंबर 2014 में अलगाववादियों ने कोकराझार और सोनितपुर में 30 लोगों की हत्या कर दी। इससे पहले वर्ष 2012 में बोडो-मुस्लिम दंगों में सैकड़ों लोगों की मौत हो गई थी और 5 लाख लोग विस्थापित हो गए थे।
समझौते के बारे में जानकारी रखने वाले एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि समझौता असम में रहने वाले बोडो आदिवासियों को कुछ राजनीतिक अधिकार और समुदाय के लिए कुछ आर्थिक पैकेज मुहैया कराएगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि असम की क्षेत्रीय अखंडता बरकरार रखी जाएगी तथा एनडीएफबी की अलग राज्य या केंद्र शासित प्रदेश की प्रमुख मांग नहीं मानी गई है। एक अन्य अधिकारी ने कहा कि समझौता राज्य के विभाजन के बिना संविधान की रूपरेखा के अंदर किया गया है। अधिकारी ने कहा कि गृह मंत्री समझौते को जल्द से जल्द अंतिम रूप देने को लेकर उत्सुक थे ताकि असम में बोडो उग्रवाद समाप्त किया जा सके और राज्य के बोडो बहुल क्षेत्रों में दीर्घकालिक शांति लौटे।
आंदोलनों के साथ-साथ हथियारबंद समूहों ने अलग बोडो राज्य बनाने के लिए प्रयास शुरू कर दिया। अक्टूबर 1986 में रंजन दाइमारी ने उग्रवादी गुट बोडो सिक्यॉरिटी फोर्स का गठन किया। बाद में इस समूह ने अपना नाम नैशनल डेमोक्रैटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड कर लिया। एनडीएफबी ने राज्य में कई हत्याओं, हमलों और उगाही की घटनाओं को अंजाम दिया।
वर्ष 1990 के दशक में सुरक्षा बलों ने एनडीएफबी के खिलाफ व्यापक अभियान शुरू किया। अभियान को देखते हुए ये उग्रवादी पड़ोसी देश भूटान भाग गए। वहां से एनडीएफबी के लोगों ने अपना अभियान जारी रखा। वर्ष 2000 के आसपास भूटान की शाही सेना ने भारतीय सेना के साथ मिलकर आतंकवाद निरोधक अभियान चलाया जिसमें इस गुट की कमर टूट गई।
एनडीएफबी ने 90 लोगों को मारा, बाद में फूट
अक्टूबर 2008 में एनडीएफबी ने असम के कई हिस्सों में बम हमले किए गए जिसमें 90 लोगों की मौत हो गई। उसी साल एनडीएफबी के संस्थापक रंजन दिमारी को हमलों के लिए दोषी ठहराया गया। इन विस्फोटों के बाद एनडीएफबी दो भागों में बंट गई। एनडीएफबी (पी) का नेतृत्व गोविंदा बासुमतारी और एनडीएफबी (आर) रंजन ने किया। वर्ष 2009 में एनडीएफबी (पी)ने केंद्र सरकार के साथ बाचतीत शुरू की। वर्ष 2010 में रंजन दिमारी को बांग्लादेश ने अरेस्ट करके भारत को सौंप दिया। वर्ष 2013 में रंजन को जमानत मिल गई। अब दोनों ही गुटों ने केंद्र के साथ बातचीत शुरू कर दी।
वर्ष 2012 में इंगती कठार सोंगबिजित ने एनडीएफबी (R) से खुद को अलग कर लिया और एनडीएफबी (S) बनाया। माना जाता है कि इंगती के गुट ने ही दिसंबर 2014 में 66 आदिवासियों की हत्या की। यह गुट बातचीत के खिलाफ था। वर्ष 2015 में इंगती की जगह पर बी साओरैग्वारा ने गुट की कमान संभाली। बाद में इंगती ने एनडीएफबी (एस) से अलग होकर अपना अलग गुट बना लिया। इस तरह पूरा गुट 4 भागों में बंट गया। केंद्र सरकार ने सोमवार को इन चारों ही गुटों के साथ समझौता किया है। इस समझौते को अंजाम देने के लिए दाईमारी को दो दिन पहले असम की एक जेल से रिहा किया गया था।
विभिन्न बोडो पक्षकारों के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर के केंद्र के कदम के विरोध में गैर बोडो संगठनों द्वारा सोमवार को आहूत 12 घंटे के बंद के कारण असम में बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद (बीटीसी) के तहत आने वाले चार जिलों में जनजीवन प्रभावित हुआ है। आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि कोकराझार, बक्सा, चिरांग और उदलगुड़ी जिलों में जनजीवन प्रभावित हुआ है, लेकिन बंद का असर राज्य के अन्य हिस्सों पर नहीं पड़ा है। कोकराझार जिले के कुछ हिस्सों में टायर जलाए गए, लेकिन अब तक किसी अप्रिय घटना की कोई खबर नहीं है। सभी शैक्षिक संस्थान बंद रहे। हालांकि, कॉलेजों में पूर्व निर्धारित कुछ परीक्षाएं हुईं। सड़कों पर वाहनों की आवाजाही नजर नहीं आई और सभी दुकानें तथा कारोबारी प्रतिष्ठान बंद हैं।
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