दरअसल, 38-38 सीटें आपस में बांटने के बाद सपा और बसपा ने रायबरेली और अमेठी को कांग्रेस के लिए छोड़ने की घोषणा कर दी है। ऐसे में किसी अन्य दल के लिए दो सीटें ही बचती हैं और रालोद मात्र दो सीटों से संतुष्ट नहीं है।

नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव 2019 के लिए उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा का गठबंधन भले ही बन गया हो पर फिल्म अभी बाकी है और सस्पेंस खत्म नहीं हुआ है। मामला एक और सहयोगी के रूप में राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) को गठबंधन में शामिल करने पर फंसा हुआ है। दरअसल, 38-38 सीटें आपस में बांटने के बाद सपा और बसपा ने रायबरेली और अमेठी को मां-बेटे (सोनिया गांधी और राहुल गांधी) के लिए छोड़ने की घोषणा कर दी है। ऐसे में किसी अन्य दल के लिए दो सीटें ही बचती हैं और रालोद मात्र दो सीटों से संतुष्ट नहीं है।

कहते हैं राजनीति में समझौते और आगे-पीछे होने की गुंजाइश कभी  खत्म नहीं होती। ऐसे में तमाम असहमतियों को बावजूद रालोद ने अभी उम्मीद नहीं छोड़ी है। रालोद के सर्वोच्च नेता अजित सिंह कह ही चुके हैं कि उनका दल उत्तर प्रदेश के रण में गठबंधन करके ही उतरेगा। ऐसे में सभी की निगाहें सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और रालोद उपाध्यक्ष जयंत चौधरी की बुधवार को नई दिल्‍ली में होने जा रही मुलाकात पर हैं। इस दौरान सीट बंटवारे को लेकर चर्चा होने की उम्‍मीद है। सूत्रों के मुताबिक कैराना फ़ॉर्मूले के तहत एक सीट रालोद को और दी जा सकती है। कैराना लोकसभा उपचुनाव के समय सपा और रालोद के बीच जो तालमेल हुआ था, उसके तहत कैराना में रालोद के चुनाव चिन्‍ह पर सपा के प्रत्‍याशी ने चुनाव लड़ा था। इसको ही कैराना फॉर्मूला कहा जाता है।

नाउम्मीद नहीं हैं रालोद नेता


सूत्रों के मुताबिक गठबंधन में मुंहमांगी सीटें नहीं मिलने के बावजूद रालोद नेता नाउम्मीद नहीं हैं। गठबंधन की घोषणा के लिए हुई अखिलेश यादव और मायावती की संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस के बाद रालोद के वरिष्ठ नेता मसूद अहमद ने कहा भी था कि रालोद अभी भी गठबंधन में है। हमारे उपाध्यक्ष जयंत चौधरी ने कुछ दिनों पहले अखिलेश यादव से छह सीटों की मांग की थी और हम अभी नाउम्मीद नही हैं। हमारे नेता जयंत गठबंधन के नेताओं से बातचीत करेंगे और हमें हमारा हक मिलेगा। रालोद के राष्ट्रीय प्रवक्ता अनिल दुबे का कहना है कि हमारी अभी वार्ता चल रही है। हमारा मुख्य उददेश्य भाजपा को हराना है जिसके लिए सबको साथ आना है।

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