वाशिंगटन। पाकिस्तान को अब कोई भी देश गंभीरता से नहीं लेता है। कश्मीर से धारा 370 को हटाए जाने से बौखलाए इस “आतंकिस्तान” के पास भारत के फैसले पर जवाब देने के विकल्प बिल्कुल सीमित हैं। अमेरिका की एक कांग्रेशनल रिपोर्ट (US Congressional report) में कहा गया है कि “पाकिस्तान के पास सैन्य कार्रवाई का विकल्प नहीं है क्योंकि उसकी क्षमता में भारी गिरावट आई है। ऐसे में वह अब केवल कूटनीति पर ही निर्भर रह सकता है।”
कांग्रेसनल रिसर्च सर्विस (CRS) की रिपोर्ट में कई विशेषज्ञों ने कहा है कि इस मुद्दे पर पाकिस्तान की साख खराब है क्योंकि वह आतंकी समूहों का साथ देता रहा है। कश्मीर पर छह महीने से कम समय में अपनी दूसरी रिपोर्ट में CRS ने कहा कि सैन्य ऐक्शन से यथास्थिति बदलने के लिए पाकिस्तान की क्षमता हाल के सालों में कम हुई है। इसका मतलब है कि वह कूटनीतिक रास्ते से ही जवाब देगा। सीआरएस यानी कांग्रेशनल रिसर्च सर्विस अमेरिकी संसद यानी कांग्रेस की स्वतंत्र रिसर्च विंग है। यह अमेरिकी सांसदों के सुझाए मसलों पर रिपोर्ट्स तैयार करती है।
कुछ दिन पहले जारी इस रिपोर्ट में CRS ने कहा कि 5 अगस्त 2019 के बाद पाकिस्तान कूटनीतिक रूप से अकेला दिखा है, एकमात्र तुर्की ने उसका साथ देने की बात कही। गौरतलब है कि नई दिल्ली द्वारा 5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को खत्म करने और इसे केंद्रशासित प्रदेश बनाने के बाद भारत और पाकिस्तान के रिश्ते बेहद खराब हो गए। पाकिस्तान इस मुद्दे पर भारत के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय समर्थन जुटाने की कोशिश कर रहा है। हालांकि, भारत ने साफ किया है कि यह पूरी तरह आंतरिक मामला है
रिपोर्ट में कहा गया है, “अधिकतर विशेषज्ञ मानते हैं कि कश्मीर पर इस्लामाबाद की साख बहुत कम है क्योंकि उसका इतिहास वहां आतंकी समूहों को चोरी-छुपे मदद पहुंचाने का है। पाकिस्तान के नेतृत्व के पास भारत के ऐक्शन का जवाब देने के लिए विकल्प बहुत कम हैं और कश्मीर में आतंकवाद को पाकिस्तान का समर्थन वैश्विक रूप से महंगा पड़ेगा।” रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पाकिस्तान और इसके दोस्त चीन की साख मानवाधिकार के मामले में भी कम है।
CRS के मुताबिक, कश्मीर पर
अमेरिका का स्टैंड लंबे समय से यह रहा है कि इसका समाधान भारत और पाकिस्तान के बीच
आपसी बातचीत से हो जिसमें कश्मीरी लोगों की राय को शामिल किया
जाए। CRS ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पिछले कुछ
दशकों में वॉशिंगटन की भारत के साथ नजदीकी बढ़ी है जबकि पाकिस्तान को अविश्वास की नजर से देखा जा रहा
है।
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