नई दिल्ली, 27 जुलाई। देवशयनी एकादशी सोमवार (27 जुलाई) को है और संसार के पालनहार भगवान विष्णु पाताल लोक में राजा बलि के घर विश्राम करने के लिए चले जाएंगे। आषाढ़ शुक्ल एकादशी तिथि को देव शयनी या हरिशयनी के नाम से जाना जाता है। श्री हरिविष्णु आज चार माह के लिए शयन कर जाएंगे। इस दौरान मांगलिक कार्य नहीं होंगे। वैवाहिक कार्यक्रम भी नहीं होंगे। इस दौरान मंदिरों में धार्मिक कार्यक्रम होंगे।
इसके साथ ही चतुर्मास की शुरुआत होगी और आगामी चार माह तक मांगलिक कार्यक्रम में विराम लग जाएगा। ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक शास्त्रगत मान्यताओं के आधार पर इस दौरान देवी-देवता, क्षीर सागर में विश्राम करेंगे और इसी वजह से चार माह तक मांगलिक कार्यक्रम नहीं होगे। देवशयनी से लेकर देवोत्थान एकादशी के दौरान समस्त मांगलिक कार्यक्रम निषेध होंगे। 22 नवंबर को देवउठनी एकादशी में तुलसी विवाह के साथ ही देवी-देवता क्षीर सागर में विश्राम कर लौटेंगे।
पंडितों के अनुसार, देवशयनी एकादशी से देवउठनी एकादशी के अंतराल में किसी भी तरह का मांगलिक कार्यक्रम करने की परंपरा नहीं है। ऐसी मान्यता है कि इस दौरान किए गए कार्यों में सफलता कम मानी जाती है। इसलिए देवउठनी के बाद ही मांगलिक कार्यक्रम किए जाते हैं। इस वर्ष 14 जुलाई से देवगुरु बृहस्पति सूर्य देव की उच्च राशि सिंह में प्रवेश कर चुके हैं। ज्योतिषशास्त्र में सिंहस्थ बृहस्पति के प्रभाव से भी वैवाहिक व शुभ कार्यां में बाधा उत्पन्ना होती है। इसका प्रभाव गंगा के उत्तरी व गोदावरी नदी के दक्षिणी क्षेत्र में होती है। ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक चतुर्मास के बाद वैवाहिक कार्यक्रम होंगे।
देवशयनी के दौरान कुछ तिथियां शुभ मानी जाती हैं। इसमें खास तौर पर गणेश चतुर्थी व नवरात्रि की तिथि शुभ कार्यों के लिए बेहतर है। इसलिए इस दौरान सगाई व नए व्यापार की शुरुआत जैसे कार्य कर सकते हैं। आज से देव सो जाएंगे। आगामी देवोत्थान एकादशी के दिन विवाह संस्कार पुन: प्रारंभ हो जाएंगे।