नई दिल्ली। आलू, अदरक, प्याज और लहसुन के बाद अब खाने के तेल पर भी महंगाई का तड़का लग गया है। आयात महंगा होने की वजह से खाने के तमाम तेलों के दाम में भारी इजाफा हुआ है और आने वाले दिनों में उपभोक्ताओं को इसके लिए अपनी जेब और ढीली करनी पड़ सकती है। मलेशिया के साथ चल रही तनातनी और अंतरराष्ट्रीय बाजार की स्थिति को देखते हुए खाद्य तेल की महंगाई से राहत मिलने के आसार भी नहीं दिख रहे हैं।
भारत सबसे अधिक पाम ऑयल मलेशिया से आयात करता है। हाल के दिनों इस्लामिक कट्टरपंथ खासकर भारत से फरार चल रहे विवादित इस्लामिक स्कॉलर जाकिर नाइक को लेकर दोनों देशों के संबंधों में तनाव बढ़ा है और भारतीय व्यापारियों ने मलेशिया से पाम ऑयल का आयात कम कर दिया है। इसकी वजह से इसके दाम में बीते दो महीने में 35 प्रतिशत से ज्यादा की तेजी आई है। देश के बाजारों में पाम तेल के दाम करीब 20 रुपये प्रतिकिलो तक बढ़ गए हैं। पाम तेल में आई तेजी के चलते अन्य खाद्य तेलों के दाम ने भी “भाव खाना” शुरू कर दिया है।
अर्जेंटीना में सोया तेल पर निर्यात शुल्क बढ़ने से भारत में सोया तेल आयात की लागत बढ़ जाएगी जिससे आने वाले दिनों में खाने के तेल की महंगाई और बढ़ सकती है। अर्जेटीना ने सोया तेल पर निर्यात शुल्क 25 से बढ़ाकर 30 प्रतिशत कर दिया है। उधर, मलेशिया में अगले साल बी-20 बायो डीजल प्रोगाम और इंडोनेशिया में बी-30 बायो डीजल प्रोग्राम शुरू होने के बाद दोनों देशों में पाम तेल की घरेलू खपत बढ़ जाएगी जिससे तेल का स्टॉक कम होने पर दाम को सपोर्ट मिलता रहेगा।
तेल-तिलहन बाजार विशेषज्ञ सलिल जैन ने कहा कि बीते दो महीने से खाने के तमाम तेलों के दाम को पाम तेल से सपोर्ट मिल रहा है और मलेशिया एवं इंडोनेशिया से लगातार पाम तेल का आयात महंगा होने की वजह से खाद्य तेल की महंगाई आने वाले दिनों में और बढ़ सकती है। हालांकि खाद्य तेल उद्योग संगठन सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के कार्यकारी निदेशक डॉ. बीवी मेहता का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार से आयात महंगा होने के कारण भारत में खाद्य तेलों के दाम में वृद्धि देखी जा रही लेकिन इससे देश के किसानों को तिलहनों का ऊंचा भाव मिल रहा है जिससे वे तिलहनों की खेती करने को लेकर उत्साहित होंगे। उन्होंने कहा, “हमें अगर, खाद्य तेल के मामले में आत्मनिर्भर बनना है तो किसानों को प्रोत्साहन देना ही पड़ेगा जो कि उन्हें उनकी फसलों का बेहतर व लाभकारी दाम दिलाकर किया जा सकता है।”
भारत दुनिया का दुनिया का सबसे बड़ा खाद्य तेल आयातक है जो खाद्य तेल की अपनी जरूरतों के अधिकतर हिस्से की पूर्ति आयात से करता है। इस साल बारिश के कारण खरीफ सीजन में सोयाबीन की फसल कमजोर रहने और रबी तिलहनों की बुवाई सुस्त रहने के बाद आशंका जताई जा रही है कि खाद्य तेलों के आयात पर देश की निर्भरता और बढ़ेगी।
कारोबारियों ने बताया कि मलेशिया और इंडोनेशिया में पाम तेल का दाम बढ़ने से आयात घटा है जिससे घरेलू बाजार में तेल के दाम को सपोर्ट मिल रहा है। सॉल्वेंट एक्सट्रक्टर्स द्वारा संकलित आंकड़ों के अनुसार, नवंबर में देश में वेजीटेबल ऑयल (खाद्य एवं अखाद्य) तेलों का आयात 11,27,220 टन हुआ जबकि एक साल पहले इसी महीने में आयात 11,33,893 टन था।
केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा पिछले से पिछले सप्ताह जारी बुवाई के आंकड़ों के अनुसार, इस साल तिलहन फसलों का रकबा देशभर में 68.24 लाख हेक्टेयर हुआ है,जोकि पिछले साल से 2.47 लाख हेक्टेयर कम है। वहीं, बीते खरीफ सीजन में प्रमुख तिलहन फसल सोयाबीन का उत्पादन देश में पिछले साल से तकरीबन 18 प्रतिशत कम रहने का अनुमान है। सोयाबीन प्रोसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सोपा) के अनुमान के अनुसार, देश में इस साल सोयाबीन का उत्पादन 89.94 लाख टन है जो कि पिछले साल के उत्पादन 109.33 लाख टन से 71.73 फीसदी कम है।
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