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किराये पर रहना, मकान खरीदने के मुकाबले है फायदे का सौदा, जानिये कैसे?

नयी दिल्ली। नयी दिल्ली। अपना घर हर किसी का सपना होता है, लेकिन अगर यह कहा जाये कि फिलहाल अपना घर खरीदने से ज्यादा फायदे का सौदा है किराये पर रहना तो शायद आपको यकीन न हो। लेकिन इन दिनों रियल एस्टेट यानि प्रापर्टी सेक्टर में सुस्ती का असर सम्पत्ति के किरायों पर भी दीखने लगा है। पिछले कुछ समय से जहां मकानों के रेट में कमी आई है वहीं मकानों के किराये की दरें भी घटी हैं।

बता दें कि इन दिनों होम लोन लेने की दर बीते 7 सालों के न्यूनतम स्तर पर है। ऐसे में आपके मस्तिष्क में ये सवाल जरूर आएगा कि हम अपने घर के लिए किसी बैंक से होम लोने लें या फिर मकान किराये पर लेकर अपने पैसे बचायें।

ऐसे है किरायेदारी फायदे का सौदा

अगर आप दिल्ली या नोएडा में 50-60 लाख रुपए का फ्लैट किराये पर लेते हैं तो आपको किराये के रूप में प्रति महीने औसतन 12-15 हजार रुपए देने होंगे। वहीं अगर आप यही घर खरीदते हैं तो आपको 60 लाख रुपए की कीमत पर 12 लाख रुपए डाउन पेमेंट देने होंगे और बाकी 48 लाख रुपए आप बैंक से ले सकते हैं, जिस पर आपको लगभग 40-43 हजार रुपए के बीच ईएमआई यानि मासिक किस्त देनी होगी। इस तरह एक ही फ्लैट के लिए आपको किराये की तुलना में खरीदने की स्थिति में कई गुना अधिक रकम देनी होगी। ईएमआई पर रेपो रेट बढ़ने या कम होने का भी असर होगा।

अगर आप महज 45 हजार रुपए मासिक रूप में 10 साल तक एसआईपी में डालते हैं तो अगले 10 साल में अनुमानित रूप से 12 फीसदी ग्रोथ के साथ यह रकम 1 करोड़ रुपए से भी अधिक हो सकती है। अगर आपकी प्रॉपर्टी की वैल्यू में इस दौरान 2.5 गुना की वृद्धि होती है, तब जाकर ही आप एसआईपी के बराबर पहुंच पाएंगे, जो वर्तमान स्थिति को देखकर संभव नहीं लगता।

ब्याज दर कम होने के फायदे

बैंकों की ब्याज दरों में पिछले लगभग दो साल के दौरान औसतन 1.5 फीसदी की कमी आई है। एसबीआई ने तो 1.75 फीसदी तक की कमी की है। अगर किसी ने 20 साल के लिए 20 लाख रुपए का लोन ले रखा है तो मासिक ईएमआई पर लगभग 2000 रुपए तक की बचत हो रही है और साल में लगभग 24 हजार रुपए बच जाएंगे।

प्रॉपर्टी के वैल्यूएशन में कम इजाफा

हाल के वर्षों के ट्रेण्ड को देखते हुए कहा जा सकता है कि पहले की तरह अब प्रॉपर्टी के वैल्यूएशन में अधिक इजाफा नहीं हो रहा है। पहले 4-5 साल में वैल्यूएशन दो गुना हो जाता था, अब 10 साल में दोगुना होने का दावा भी नहीं किया जा सकता है।

नौकरी की वजह से बदल जाता है शहर

आज के युवा जिस तरह की जॉब करते हैं, उसमें जगह की कोई निश्चितता नहीं रहती है। आज कोई दिल्ली में तो कल बेंगलुरु, मुंबई या विदेश के किसी शहर में काम कर सकता है। दिल्ली जैसा शहर भी इतना बड़ा कि एक कोने से दूसरा कोना जाने में काफी समय लग जाता है। जबकि एक जगह फ्लैट ले लेने से उस जगह के प्रति एक तरह का आग्रह डेवलप कर जाता है। इसका बुरा असर करियर की संभावनाओं पर होता है।

 

 

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