नई दिल्ली। भारत में आज (सोमवार को) लॉकडाउन के 13वां दिन है। कोरोना वायरस महामारी की चेन अभी तक भले ही ब्रेक नहीं हुई है पर प्रकृति में शानदार बदलाव देखने को मिल रहे हैं। नदियों का पानी पहले से साफ हुआ है, हवा भी ताजी-ताजी लग रही है, आसमान नीला नजर आने लगा है, जंगली जानवर सड़कों पर निश्चिंत होकर घूम रहे हैं। ऐसे में सवाल उठने लगे हैं कि कोरोना वायरस (कोविड-16) खा खात्मा होने पर दुनिया में क्या बदलाव हो चुके होंगे और हमारी आदतें किस हद तक बदल चुकी होंगी? विशेषज्ञ इन सवालों का जवाब तलाशने में जुटे हैं। लेकिन, अब तक जो निष्कर्ष निकला है वह खासकर आर्थिक और राजनीतिक मोर्चे पर चिंता पैदा करने वाला है।
विश्लेषकों का कहना है एक न एक दिन इंसान कोरोना वायरस की महामारी पर विजय प्राप्त कर लेगा, प्रकृति में फिलहाल जो सकारात्मक बदलाव आये हैं वह भी अच्छी बात है पर इसके बाद जो दुनिया होगी निश्चित रूप से महामारी से पहले वाली नहीं होगी। कोरोना वायरस से लोगों की दर्दनाक मौत के साथ सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्तर पर भी अनगिनत खतरे पैदा हो गए हैं जिसकी कीमत चुकानी पड़ेगी और इन से होने वाले बदलाव आने वाले दिनों में दुनिया को दिशा देंगे।
विशलेषकों का कहना है कि कोरोना वायरस के चलते लागू लॉकडाउन की वजह से कुछ अर्थव्यवस्थाएं पूरी तरह से तबाह हो जाएंगी, वित्तीय बाजार संकट से पहले वाली स्थिति में कभी नहीं लौट पाएगा। आवाजाही पर रोक कुछ सरकारों को निरंकुश नियंत्रण स्थापित करने में मदद करेगी और नागरिक स्वतंत्रता कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के नाम पर कमजोर होगी।
कई लोग पहले ही इस अभूतपूर्व स्वास्थ्य संकट के समय समन्वय की कमी को लेकर सवाल उठा चुके हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और संयुक्त राष्ट्र (UN) सवालों के घेरे में हैं। कार्नेज इंडाउमेंट फॉर इंटरनेशल पीस के वरिष्ठ सदस्य एरोन डेविड मिलर ने कहा कि ये बदलाव बहुत व्यापक होने के साथ अप्रत्याशित भी होंगे। उन्होंने कहा, ”बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि कबतक राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाएं इस तूफान के आगे टिकी रहती हैं और इस खतरे से निपटने में सरकारें कितनी सफल होती है।”
चीन, जहां से संक्रमण फैला था, गर्व से दावा कर रहा है कि उसने महामारी पर काबू पा लिया है। वहीं राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने शुरुआत में इसे गंभीरता से नहीं लिया और अब अमेरिका बड़े संकट का सामना कर रहा है। भारत में संक्रमितों के आधिकारिक आंकड़े पश्चिमी देशों के मुकाबले बहुत कम है लेकिन आने वाले और बुरे दिनों को लेकर चिंता है। जब मिलर से पूछा गया कि क्या यह नेतृत्व या नेतृत्व की अनुपस्थिति दुनिया भर के देशों को मौका या खतरा प्रदान करेगी? उन्होंने कहा, ”अमीर देश संकट के समय कामगारों को क्षतिपूर्ति देकर और आर्थिक गतिविधियों को बहाल कर अर्थव्यवस्था को पटरी पर बनाए रख सकते हैं लेकिन गरीब देशों के लोगों के पास ऐसी सुरक्षा नहीं है और ऐसे में वंचित लोगों के सड़कों पर उतरने का खतरा है।”
जॉर्जटाउन विश्वविद्यालय के अतिथि प्रोफेसर जोशुआ ग्जेटजर ने कहा, “उन देशों में संघर्ष बढ़ने की आशंका है जहां पर लोगों को नौकरी जाने पर सामाजिक सुरक्षा मुहैया नहीं कराई जाती है। इससे शासन और अन्य पर संभावित असर पड़ेगा।” उन्होंने कहा, “रूस और तुर्की जहां पर दो दशक से मजबूत नेता शासन कर रहे हैं उनको उम्मीद है कि वायरस और किसी राजनीतिक असर से निपटने की उनकी तैयारी पर्याप्त है।”
हालांकि, इस महामारी के बाद अधिकतर उदारवादी लोकतांत्रिक समाजों ने नागरिक अधिकारों पर पाबंदी लगाई है और अपूतपूर्व तरीके से निकट भविष्य के लिए सीमा बंद दी है। दकार स्थित टिम्बकटू इंस्टीट्यूट के निदेशक बाकरे सांबे ने कहा, “लंबे समय से उदारवाद और वैश्वीकरण पर भाषण देने वाले सभी कुलीनों ने सबसे पहले अपनी सीमाएं बंद की।” भारत में अशोक विश्वविद्यालय में राजनीतिक शास्त्र के प्रोफेसर प्रताप भानु मेहता ने कहा, “व्यापार प्रणाली में विवाद उत्पन्न होने का खतरा है।” पेरिस स्थित अंतरराष्ट्रीय एवं रणनीतिक अनुसंधान संस्थान में शोधकर्ता बर्थेलेमी कोर्टमोंट ने कहा कि लगता है कि “विश्व स्वास्थ्य संगठन को और किनारे कर दिया जाएगा।”
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