smokeless-tobaccoलंदन। पूरी दुनिया में हर साल ढाई लाख से अधिक व्यक्तियों की मौत धुआं रहित तंबाकू के सेवन के कारण होती है और उसमें भी तीन चौथाई मौतें भारत में होती हैं। वयस्कों पर तंबाकू सेवन के वैश्विक प्रभाव का आकलन करने वाले एक अध्ययन से यह खुलासा हुआ है।

अध्ययन के अनुसार, तंबाकू आधारित उत्पादों के सेवन से होने वाली बिमारियों के कारण प्रतिवर्ष दसियों लाख लोग काल के गाल में समा जाते हैं। अध्ययन में कहा गया है, धुआं रहित तंबाकू के इस्तेमाल से होने वाली मौतों में 85 प्रतिशत मौतें दक्षिण-पूर्व एशिया में होती हैं। उसमें भी अकेले भारत में 74 फीसदी मौतें होती हैं। दक्षिण-पूर्व एशिया में पांच फीसदी मौतों के साथ बांग्लादेश दूसरे नंबर पर है।

शोधकर्ताओं ने 113 देशों के आंकड़े संकलित किए और इसके लिए 2010 वैश्विक रोग अध्ययन तथा ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वेक्षण से जानकारी इकट्ठा की। अध्ययन से पता चला है कि 2010 में धुआं रहित तंबाकू के सेवन से मुंह, श्वासनली और घेंघा के कैंसर के कारण 62,000 से भी ज्यादा लोगों की मौत हुई थी, वहीं दिल की बीमारी के कारण 2,00,000 से भी अधिक लोगों की मौत हुई।

tobacco1इंग्लैंड में यार्क यूनिवर्सिटी के जन स्वास्थ्य एवं महामारी विज्ञान में वरिष्ठ लेक्चरर कामरान सिद्दीकी ने कहा, यह संभव है कि इन आंकड़ों को कम करके आंका जाता है और भविष्य के अध्ययनों में हो सकता है कि इसका प्रभाव और भी बड़ा निकले। हमें धुआं रहित तंबाकू के इस्तेमाल पर नियंत्रण के लिए वैश्विक तौर पर प्रयास करने की जरूरत है। सिद्दीकी ने कहा कि ऐसा नहीं लग रहा है कि तंबाकू नियंत्रण पर काम करने वाला अंतर्राष्ट्रीय तंत्र धुआं रहित तंबाकू पर नियंत्रण के लिए काम कर रहा है। इस अध्ययन के निष्कर्ष को बीएमसी मेडिसिन पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।

एजेंसी

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