मुजफ्फरनगर दंगे की वजह बने कवाल के दोहरे हत्याकांड में अदालत ने बुधवार को सभी अभियुक्तों को दोषी पाया। सजा आठ फरवरी को सुनाई जाएगी।
मुजफ्फरनगर। मुजफ्फरनगर दंगे की वजह बने कवाल के दोहरे हत्याकांड में सातों आरोपियों के स्थानीय अदालत ने दोषी करार दिया है।सजा सुनाने की तारीख आठ फरवरी तय की गई है। करीब साढ़े पांच साल पहले देश की सुर्खियां बने कवाल गांव में मलिकपुरा के ममेरे भाइयों सचिन और गौरव की हत्या हुई थी। इस मामले में सात लोगों पर मकदमा चला। एडीजे-7 की अदालत ने बुधवार को सातों को दोषी करार दिया। अदालत ने सजा पर निर्णय की तारीख आठ फरवरी तय की है। पुलिस-प्रशासन की ओर से एहतियातन गांव में सुरक्षा व्यवस्था के प्रबंध किए गए।
27 अगस्त 2013 को कवाल गांव शाहनवाज, सचिन और गौरव की हत्या के बाद जिले में दंगा भड़क गया था। वादी पक्ष के अधिवक्ता अनिल जिंदल ने बताया कि इस मामले में गौरव के पिता रविन्द्र की ओर से जानसठ कोतवाली में कवाल निवासी मुजस्सिम, मुजम्मिल, फुरकान, नदीम, जहांगीर, शाहनवाज (मृतक) और अफजाल के विरुद्ध हत्या का मुकदमा दर्ज कराया गया था। दूसरी ओर शाहनवाज के पिता सलीम ने सचिन और गौरव के अलावा उनके परिवारीजनों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था।
एसआइटी ने जांच के
बाद शाहनवाज हत्याकांड में अंतिम रिपोर्ट (एफआर) लगा दी थी जबकि दोहरे
हत्याकांड में पांच आरोपितों के खिलाफ आरोप पत्र न्यायालय में
दाखिल किया। इस मामले
में पांच आरोपी मुजस्सिम, जहांगीर, मुजम्मिल, नदीम और फुरकान तभी से जेल
में बंद हैं जबकि अफजाल और
इकबाल हाई कोर्ट से जमानत पर हैं। मुकदमे की सुनवाई एडीजे-7 हिमांशु भटनागर के न्यायालय में हुई। अभियोजन पक्ष की ओर से दस गवाह जबकि बचाव पक्ष की ओर से छह गवाह अदालत में पेश किए गए।
27 अगस्त 2013 की उस मनहूस तारीख के बाद मुजफ्परनगर जिले में अमन-चैन गायब
हो गया था। कवाल की घटना के बाद से पुलिस पर एकपक्षीय कार्रवाई के आरोप लगने लगे। बाद
में पंचायतों का दौर चला और माहौल बिगड़ता चला गया। सात सितंबर की नंगला मंदौड़
पंचायत से लौटते लोगों पर कई जगह हमले हुए। अगले दिन जिले में हिंसा भड़क उठी।
पहली बार गांवों को सांप्रदायिक दंगों का सामना करना पड़ा जिसमें 65 से अधिक लोगों की जान चली गई। करोड़ों की
संपत्तियां जला दी गईं। करीब 40 हजार लोगों ने
गांवों से भागकर राहत शिविरों में शरण ली।
इस
घटना को लगभग साढ़े पांच साल होने को हैं। वारदात के
बाद से सचिन और गौरव
के गांव मलिकपुरा के लोग अब कवाल के उस चौराहे से नहीं गुजरते। उन्होंने
आने-जाने के लिए बाईपास का रास्ता अपना लिया है। लंबे समय चली कानूनी प्रक्रिया के
बाद दोनों ही पक्ष न्यायालय के फैसले पर टकटकी लगाए रहे।
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