वाराणसी। सनातन धर्म में सावन के महीने में भगवान भोलेनाथ के जलाभिषेक का विशेष महत्व है और माना जाता है कि ऐसा करने से भक्त को शिवधाम की प्राप्ति होती है। लेकिन, इस दौरान भारी भीड़ उमड़ने की वजह से तमाम श्रद्धालु जलाभिषेक अथवा दुग्धाभिषेक नहीं कर पाते हैं। इसे देखते हुए काशी विश्वनाथ मंदिर प्रबंधन ने आगामी सावन में भोलेनाथ के “झांकी दर्शन” की व्यवस्था की है। हालंकि, इस व्यवस्था में श्रद्धालु  गर्भगृह में नहीं जा पाएंगे पर जलाभिषेक अथवा दुग्धाभिषेक करने के साथ ही बाबा विश्वनाथ के दर्शन कर सकेंगे। गौरतलब है कि उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में भी गर्भगृह के बाहर से ही अभिषेक की व्यवस्था है। 

मंदिर प्रबंधन के अनुसार सावन माह में बाबा के गर्भगृह के बाहर चारों दरवाजों पर कलश रखे जाएंगे। प्रत्येक कलश की चौड़ाई 18 इंच होगी। कलशों को पाइप के सहारे गर्भगृह से जोड़ा जाएगा। इनमें छोड़ा जाने वाला गंगा जल अथवा दूध सीधे ज्योतिर्लिंग पर गिरेगा। कम से कम समय में अधिक से अधिक भक्त बाबा विश्वनाथ का दर्शन और अभिषेक कर सकें, इसके लिए पूरे सावन भर “झांकी दर्शन” की व्यवस्था रहेगी। इस व्यवस्था में श्रद्धालुओं को गर्भगृह में प्रवेश की इजाजत नहीं होगी, वे बाहर से बाबा के दर्शन और गर्भगृह के दरवाजों पर रखे कलश के माध्यम से अभिषेक करेंगे।

मंदिर प्रबंधन का कहना है कि पिछले वर्ष की तुलना में अधिक भक्तों के आगमन की संभावना को देखते हुए यह कदम उठाया गया है। श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर न्यास परिषद की विगत बैठक में इस बिंदु पर भी चर्चा हुई थी। भक्तों को सहज दर्शन उपलब्ध कराने के लिए मंदिर प्रबंधन कुछ और कदम भी उठाएगा।

इस बार बुधवार, 17 जुलाई श्रावण (सावन) मास का पहला जबकि गुरुवार, 15 अगस्त अंतिम दिन है। सावन मास में कुल चार सोमवार पड़ेंगे। पहला सोमवार 22 जुलाई, दूसरा 29 जुलाई, तीसरा 05 अगस्त और चौथा सोमवार 12 अगस्त को है।


यूं तो पूरे सावन माह में भी भोले शंकर के पूजन का विशष महत्व पर इसमें भी सोमवार का ज्यादा महत्व है। इसी दिन सबसे ज्याद भक्त मंदिर पहुंचते हैं। सावन के प्रत्येक सोमवार को बाबा विश्वनाथ के अलग-अलग स्वरूपों की झांकी सजाई जाती है। इनमें शिव-पार्वती की चल प्रतिमा, शिव परिवार, बाबा की पंचबदन प्रतिमा और भगवान शिव के रुद्राक्ष शृंगार की झांकी प्रमुख हैं।  

error: Content is protected !!