नई दिल्ली। प्रधानमंत्री का दावा है कि देश के बुरे दिन जा चुके हैं और अच्छे दिन आने वाले हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों चीन और दक्षिण कोरिया में भारतीय समुदाय को संबोधित करते हुए कहा था कि लोग भारत में जन्म लेने को बुरा समझते थे। वे अक्सर कहा करते थे कि न जाने हमने क्या पाप किया है कि हमने हिंदुस्तान में जन्म लिया। ये कोई मुल्क है, ये कोई सरकार है। लेकिन अब मूड बदलने लगा है।
लेकिन संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन की एक रिपोर्ट पीएम मोदी को आइना दिखाने के लिए काफी है। ये रिपोर्ट हमें शर्मिंदा भी कर सकती है। संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन ने ‘फूड सिक्योरिटी इन द वर्ल्ड 2015‘ नाम से रिपोर्ट जारी की है। इसमें भारत में कुपोषितों की संख्या 19.46 करोड़ हो गई जो किसी भी मुल्क में सर्वाधिक है। इस मामले के वैश्विक परिदृश्य के हिसाब से दुनिया के कुल कुपोषितों में हर चैथा आदमी भारत का है।
रिपोर्ट का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 1990-92 से 2015 के बीच कुपोषितों की संख्या में 21.6 करोड़ की कमी आई है। परंतु इस दौरान भारत में महज 1.55 करोड़ लोग ही कुपोषण के स्तर से बाहर निकल पाए। कुपोषण के मामले में चीन को भारत से बेहतर आंका गया है।1990-92 में चीन में कुपोषितों की संख्या 28.9 करोड़ थी। नए आंकड़ों में ये कम होकर 13.38 करोड़ हो गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन ने कुपोषितों की संख्या कम करने की दिशा में बेहतर काम का असर दक्षिण-पूर्व एशिया समेत पूरे विश्व पर पड़ा है। रिपोर्ट में यह भी कह गया है कि भारत 1996 में तय किए गए मिलेनियम डेवलपमेंट प्लान के लक्ष्यों को पूरा करने में भी असफल रहा है।
उस समय तय किया गया था कि दुनिया भर की सरकारें 2015 तक कुपोषितों की संख्या आधी कर देंगी। 172 मुल्कों ने उन लक्ष्यों पर सहमति जताई थी। इनमें 29 ही उन्हें पूरा कर पाए। उन 29 मुल्कों में नेपाल भी शामिल है। भारत और चीन ने भूखमरी कम करने में सर्वाधिक योगदान दिया है। 2014-16 के आंकड़ों के मुताबिक, अफ्रीकी महाद्वीप के दक्षिणी हिस्से के मुल्कों में कुपोषितों की संख्या दुनिया के किसी भी इलाके में सर्वाधिक रही है। रिपोर्ट के अनुसार, दक्षिणी अफ्रीकी मुल्कों में कुपोषितों की संख्या 28.1 करोड़ है।