नई दिल्ली, 6 अप्रैल। केंद्र सरकार ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को गैर-अल्पसंख्यक संस्थान करार देने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली पूर्ववर्ती संप्रग सरकार की अपील को वापस लेगी।
एटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने अपील वापस लेने और एएमयू से दूरी बनाने के केंद्र के फैसले के बारे में बताते हुए कहा कि एएमयू की स्थापना केंद्रीय कानून के तहत की गयी थी और 1967 में शीर्ष अदालत की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने अजीज बाशा फैसले में इसे ‘केंद्रीय विश्वविद्यालय’ कहा था, अल्पसंख्यक संस्थान नहीं।
रोहतगी ने कहा कि 1981 में विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा देने के लिए एक संशोधन लाया गया जिसे उच्च न्यायालय ने असंवैधानिक करार दिया था। शीर्ष विधि अधिकारी ने पीठ से कहा, ‘आप अजीज बाशा फैसले की अवहेलना नहीं कर सकते। भारतीय संघ का मानना है कि एएमयू को अल्पसंख्यक दर्जा देना अजीज बाशा फैसले के विरोधाभासी होगा और यह अब भी सही है।’
पीठ ने केंद्र को उसके द्वारा दाखिल अपील को वापस लेने के लिए आठ सप्ताह के अंदर एक हलफनामे के साथ आवेदन दाखिल करने की अनुमति दे दी। पीठ ने कहा कि एएमयू केंद्र के रख पर जवाबी हलफनामा दाखिल कर सकता है। उन्होंने ग्रीष्मकालीन अवकाश के बाद के लिए सुनवाई स्थगित कर दी। एएमयू का पक्ष वरिष्ठ वकील पी पी राव रख रहे थे।
शीर्ष अदालत ने हस्तक्षेप करने वाले कुछ लोगों को भी मामले में सहायता करने की अनुमति दी जिनके लिए वरिष्ठ अधिवक्ता सलमान खुर्शीद ने पक्ष रखा। उच्च न्यायालय ने जनवरी 2006 में एएमयू (संशोधन) अधिनियम, 1981 के प्रावधान को निष्प्रभावी करार दिया था जिसके माध्यम से विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया गया था। उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने 2005 में उसकी एकल पीठ के फैसले को बरकरार रखा था जिसके माध्यम से एएमयू को अल्पसंख्यक का दर्जा देने और 2004 में मुसलमानों को 50 प्रतिशत आरक्षण दिये जाने को ‘असंवैधानिक’ करार दिया गया था।
एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे का मुद्दा प्रधान न्यायाधीश टी एस ठाकुर की अगुवाई वाली एक और पीठ के सामने भी आया जो उसके कुलपति लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) जमीरद्दीन शाह की नियुक्ति को चुनौती देने से संबंधित एक अन्य मामले पर सुनवाई कर रही है।
पीठ में न्यायमूर्ति यू यू ललित भी शामिल हैं। पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा, ‘क्या किसी विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक संस्थान कहा जा सकता है।’ मामला लंच से पहले के सत्र में आया था और अदालत कक्ष में उपस्थित रोहतगी ने कहा, ‘भारतीय संघ उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ अपनी अपील पर एक और पीठ के सामने आगे बढ़ने का इच्छुक नहीं है।’
अदालत में मौजूद खुर्शीद ने कहा कि अल्पसंख्यक संस्थान के मुद्दे पर एक और पीठ के फैसले का कुलपति के मामले पर भी असर पड़ेगा। अदालत कक्ष में उपस्थित वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि मौजूदा कुलपति को जब नियुक्त किया गया था जब वह केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री थे।
एटार्नी जनरल ने 11 जनवरी को भी शीर्ष अदालत में बयान दिया था कि एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा नहीं दिया जा सकता।
उच्चतम न्यायाल में न्यायमूर्ति जे एस खेहर की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है। इस पीठ में न्यायमूर्ति एम बी लोकुर और न्यायमूर्ति सी नागप्पन भी शामिल हैं।