अमन वहीद ख़ान के पिता छत्तीसगढ़ पुलिस में सब-इन्स्पेक्टर थे और वर्ष 2009 में राज्य के बस्तर इलाक़े में माओवादी छापामारों के साथ हुई मुठभेड़ में मारे गए थे।
यह वो वक़्त था, जब अमन बारहवीं की परीक्षा की तैयारी कर रहे थे।
विकास अग्रवाल के पिता चाहते थे कि वे आगे की पढ़ाई ना कर छत्तीसगढ़ के कोरबा में पारिवारिक किराने की दुकान संभालें।
यही वजह थी कि विकास आईआईटी की प्रवेश परीक्षा नहीं दे पाए।पिछले साल फ़रवरी की 16 तारीख थी जब विकास ने इसरो की परीक्षा पास की।जो सपना उन्होंने बचपन से देखा था, वो अब पूरा होने जा रहा था।
अमन के माँ हिना यासमीन ख़ान को अनुकंपा के आधार पर लोक अभियोजक की नौकरी मिली है।
हिना यासमीन उन पलों को याद करती हैं जब उनके दोनों बेटे – अमन और यासिर अपने कैरियर के अहम् मोड़ पर खड़े थे और उनके सामने पिता का शव रखा हुआ था।
वे कहती हैं : “मेरे पति की अपने एसपी से अनबन हो गई थी।तब उन्होंने पूछा कि क्या करना पड़ेगा कि मेरे बच्चों को देखकर एसपी खड़े हो जाएं और उनसे हाथ मिलाएं। किसी ने कहा कि बच्चों को आईआईटी में पढ़ाओ। बस फिर क्या था। उन्होंने हमें हैदराबाद भेज दिया जहां मेरे बच्चे आईआईटी की परिक्षा की तैयारी करने लगे”।
उन्होंने कहा, “ह्त्या से कुछ दिनों पहले ही वे हमसे मिलने आए थे। उन्होंने कहा था कि उन्हें अपनी ज़िंदगी का कोई भरोसा नहीं क्योंकि वो बस्तर में बारूद के ढेर पर काम कर रहे हैं. वे बार बार कहते रहे कि बच्चों को खूब पढ़ाना….”
“मगर अमन का कहना था कि वे अपने काम से किसी कंपनी को फ़ायदा पहुंचाने की बजाए देश को फ़ायदा पहुंचाना चाहते हैं।इसलिए इसरो का इम्तेहान दिया और चुन लिए गए।”
अमन और उनके भाई यासिर, दोनों ने आईआईटी से अपनी पढ़ाई की।यासिर ने यूपीएससी की मुख्य परीक्षा पास कर ली है।
विकास की कहानी कुछ अलग है क्योंकि वो एक ऐसे परिवार में पैदा हुए जहाँ व्यवसाय ही सबसे बड़ा माना जाता रहा है।
उनके घर में ही उनकी पढ़ाई का विरोध होता रहा।यही कारण है कि उन्हें अपने पिता की किराने की दुकान संभालनी पड़ी।
उन्होंने कोरबा के स्थानीय स्कूल से पढ़ाई की फिर स्थानीय कालेज से बीएससी किया।
विकास ने कहा, “मेरे पापा चाहते थे की मैं बीकॉम करूं। मैंने कोरबा के कालेज से ही इंजीनियरिंग की, मेरा अटेंडेंस हमेशा कम रहता था क्योंकि मुझे दुकान पर बैठना पड़ता था।फिर भी मैंने टॉप किया।”
वे आगे जोड़ते हैं, “मैं स्कूल से लेकर कालेज तक लगातार टॉप करता रहा।पापा बीमार भी रहते थे और वो मुझे कहीं बाहर नहीं जाने देना चाहते थे। मगर मेरी मम्मी को हमेशा लगता था कि मुझे आईआईटी जाना चाहिए।”
मैकेनिकल इंजीनियरिंग करने के बाद विकास ने इसरो की परिक्षा दी और उनका चयन भी हो गया।
विकास आईआईटी तो नहीं जा पाए, पर उन्होंने अपना सपना अपने क़स्बे में रहकर और अपनी किराने की दुकान चलाते चलाते ही पूरा कर लिया।
आज इसरो की उपलब्धि पर छत्तीसगढ़ अपने दोनों युवाओं पर नाज़ कर रहा है।अमन और विकास के घर बधाइयों का तांता लगा हुआ है।
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