पुण्यतिथि पर विशेष : बहुत याद आता वो या………हू वाला ‘जंगली’

नयी दिल्ली । ‘याहू बॉय’ शम्मी कपूर 14 अगस्त 2011 को इस दुनिया को अलविदा कह गये थे। शम्मी कपूर अपने जमाने के बॉलीवुड के रोमांटिक हीरो माने जाते थे। अपने दमदार अभिनय से दर्शकों के दिलों पर खास पहचान बनाने वाले शम्मी कपूर की कायनात ही इतनी बड़ी थी कि हर तंज में हर रंग में हर रूप में वो अलहदा था. वो दिलों पर राज करते थे। संगीत उनकी थिरकन के बिना अधूरा था। रोमांस उनकी भावनाओं में डूबी आंखों के बिना सूना था। पर्दे पर जोश, जवानी, उमंग और उत्साह का एक ही नाम था – शम्मी कपूर।

21 अक्टूबर 1931 को मुंबई में जन्मे शम्मी कपूर के पिता पृथ्वीराज कपूर फिल्म इंडस्ट्री के महान अभिनेता थे। घर में फिल्मी माहौल की वजह से शम्मी कपूर का रूझान भी अभिनय की ओर हो गया और वह भी अभिनेता बनने का ख्वाब देखने लगे। वर्ष 1953 में प्रदर्शित फिल्म जीवन ज्योति से बतौर अभिनेता शम्मी कपूर ने फिल्म इंडस्ट्री का रूख किया। लेकिन फिल्मी माहौल में परवरिश और पिता-भाई का बड़ा नाम होने के बाद भी काफी संघर्ष के बाद सफलता हासिल कर सके थे शम्मी कपूर।

शम्मी 1955 में फिल्म की शूटिंग के दौरान गीता बाली से मिले थे, और दोनों को इश्क हो गया।फिर दोनों विवाह बंधन में बंध गए. 1965 में चिकनपॉक्स से गीता का निधन हो गया।

शम्मी कपूर अपने जमाने के बॉलीवुड के रोमांटिक हीरो माने जाते थे। उनकी ज़्यादातर फिल्मों में रोमांटिक गाने जरूर होते थे और उन गानों ने बॉलीवुड को रोमांटिक रूप देने में अहम भूमिका निभाई है। ‘बार-बार देखो हजार बार देखो’ और ‘चाहे मुझे कोई जंगली कहे’..जैसे गीतों को सुनकर आज भी हम खुद को झूमने से रोक नहीं पाते हैं। भले ही शम्मी आज हमारे बीच नहीं हैं, मगर उनके गाने हमें आज भी झूमने पर मजबूर कर देते हैं।

शम्मी कपूर हिंदी सिनेमा के पहले ऐसे सितारे थे जिन्होंने फिल्मों में चुलबुले टाइप के हीरो को स्थापित किया।शम्मी कपूर जब फिल्म इंडस्ट्री में आये तो उनके फिगर, आड़ी तिरछी अदायें और बॉडी लैंग्वज को फिल्म छायांकन की दृष्टि से उपयुक्त नहीं माना गया था, लेकिन बाद में यहीं अंदाज लोगों के बीच आकर्षण का केन्द्र बन गया।फिल्मों में जिंदादिल और शरारती दिखनेवाले शम्मी कपूर निजी जीवन में भी उतने ही जिंदादिल थे।

शम्मी कपूर के अभिनय का सितारा निर्देशक नासिर हुसैन की वर्ष 1957 में प्रदर्शित फिल्म ‘तुमसा नहीं देखा’ से चमका। बेहतरीन गीत, संगीत और अभिनय से सजी इस फिल्म की कामयाबी ने शम्मी कपूर को स्टार के रूप में स्थापित कर दिया। नीली-नीली आंखें, किसी जिम्नास्ट की तरह झुकती-उठती और मुड़ती हुई बॉडी, गर्दन को एकदम से झटकना और बालों को बिखरा कर संवारना, एक से बढ़ कर एक स्टाइल, तब के दौर में लोग देखते-देखते इनके दीवाने बन गये, शम्मी कपूर ने सभी स्थापित परंपराओँ को बदल कर रख दिया था। आज भी इस फिल्म के सदाबहार गीत दर्शकों और श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देते हैं।

कहा जाता है कि देव आनंद के बाद महिलाओं-युवतियों में शम्मी काफी फेवरेट थे। शम्मी के डांस करने का अंदाज लीक से एकदम हटकर था। वे शूटिंग पर अपना डांस खुद करना शुरू कर देते थे और कैमरा उन्हें फॉलो करता था। इसी की वजह से शम्मी की पहचान भी बनी। तब बॉलीवुड में एक से बढ़कर एक दिग्गज कलाकार थे, जिनकी तूती बोलती थी। 1961 में फिल्म जंगली ने शम्मी कपूर को सशक्त पहचान दिला दी। इसके बाद शम्मी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

उन्हें 1968 में फिल्म ब्रह्मचारी के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्म फेयर अवार्ड, 1982 में विधाता फिल्म के लिए श्रेष्ठ सहायक अभिनेता का पुरस्कार और 1995 में फि़ल्म फेयर लाइफ़ टाइम अचीवमेंट अवार्ड से नवाजा गया था। इसके अलावा 1999 में ज़ी सिने लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड पुरस्कृत किये गये थे शम्मी कपूर।

शम्मी कपूर फिल्म के हिट होने की इतनी बड़ी गारंटी बन चुके थे कि निर्माता-निर्देशक नई हीरोइनों को लॉन्च करने के लिए उनकी ही फिल्म का सहारा लेते थे।सायरा बानो को फिल्म जंगली से एंट्री मिली तो आशा पारिख को फिल्म दिल दे देखो से मौका मिला। जबकि साधना को फिल्म राजकुमार ने पहचान दिलाई तो शर्मिला टैगोर को कश्मीर की कली जैसी फिल्म ने स्टार बना दिया।

कहा जाता है कि शम्मी कपूर बॉलीवुड के पहले एंग्री यंगमैन थे। साथ ही रॉक स्टार भी थे। इस छवि ने तब के बॉलीवुड एक्टर को कई तरह के बंधनों से आजाद कर दिया। लेकिन शम्मी कपूर को रिबेल स्टार, विद्रोही कलाकार की उपाधि इसलिये दी गयी क्योंकि उन्होंने उदासी, मायूसी और देवदास नुमा अभिनय की परम्परागत शैली को बिल्कुल नकार कर अपने अभिनय की नयी शैली विकसित की थी। वे शौकीन मिजाज थे और साथ ही तकनीक प्रेमी भी थे। फिल्मों में जिंदादिल और शरारती दिखनेवाले शम्मी कपूर निजी जीवन में भी उतने ही जिंदादिल थे।

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