नई दिल्ली। प्रदूषण के खतरनारक स्तर तक पहुंच जाने के चलते दिल्ली समेत कई राज्यों ने इस बार दीपावली पर आतिशबाजी पर पूरी तरह रोक लगा दी है तो कई राज्यों ने कुछ स्थानों पर हरित अतिशबाजी (Green Crackers) की ही इजाजत दी है। मंगलवार को उत्तर प्रदेश सरकार ने भी लखनऊ समेत राज्य के 13 जिलों में आगामी 30 नवंबर तक आतिशबाजी पर प्रतिबंध लगाने का आदेश जारी कर दिया और बाकी जिलों में केवल हरित अतिशबाजी की अनुमति दी है। ऐसे में लोगों के मन में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर ये Green Crackers क्या हैं।
हालांकि, देश में कोरोना वायरस महामारी के प्रकोप और खतरनाक स्तर तक पहुंच चुके वायु प्रदूषण के चलते काफी लोग अब पटाखों के पक्ष में नहीं हैं, लेकिन एक सच यह भी है कि दिवाली पर पटाखे फोड़ना भी एक परंपरा जैसा बन गया है। इस दीपावली पर भी तमाम लोग आतिशबाजी को लेकर उत्साहित है, लेकिन सारी बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा अक्टूबर 2018 में पटाखों पर दिशा-निर्देश लागू कर दिए गए, जिसमें इन पर प्रतिबंध लगा दिया गया। इसके बाद पटाखा निर्माता भी अपने व्यवसाय को लेकर भयभीत हो गए। हालांकि, Green Crackers की घोषणा के बाद उद्योग को बचा लिया गया, ऐसा कहा जा रहा है। यहां बात यह है कि पहले जिन पटाखों को छोड़ा करते थे, वे तो अब बाजार में मौजूद नहीं हैं और अगर हैं भी तो गैर-कानूनी तरीके से, तो अब सवाल यह है कि जिन हरित पटाखों को छोड़ने की अनुमति दी गई है, वे पिछले पटाखों से किस प्रकार अलग हैं।
दरअसल, Green Crackers को पर्यावरण के अनुकूल माना जाता है क्योंकि ये पारंपरिक पटाखे की तुलना में 30 प्रतिशत कम प्रदूषकों का उत्सर्जन करते हैं। ये पटाखे वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान-राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान (CSIR-NEERI) द्वारा वायु प्रदूषण को कम करने और देश में स्वास्थ्य खतरों को कम करने के लिए विकसित किए गए हैं।
CSIR-NEERI द्वारा किए गए शोध से पता चला कि बेरियम नाइट्रेट (Barium Nitrate) एक महत्वपूर्ण तत्व है, जो हानिकारक रसायनों के उत्सर्जन में सहायक होता है और इसलिए इसके विकल्प देखे जा रहे हैं। इसके अलावा ग्रीन पटाखों में एक रासायनिक फॉर्मूलेशन होता है, जो पानी में मॉलिक्यूल्स का उत्पादन करता है, जो उत्सर्जन के स्तर को कम करता है और धूल को सोख लेता है।
हालांकि Sri Velavan Fireworks के मालिक N. Ellangovan ने सीएसआईआर-एनईईआरआई द्वारा विकसित नए फार्मूले में बेरियम नाइट्रेट के शामिल नहीं होने पर कहा कि इस रासायनिक के बिना पटाखे बनाना संभव नहीं है, इसलिए उन्होंने इसकी मात्रा कम कर दी है और कुछ अन्य योजक का उपयोग किया है। उन्होंने आगे कहा कि Green Crackers विकसित करने के लिए कई परीक्षण किए गए हैं, लेकिन वर्तमान फार्मूले का इस्तेमाल केवल तीन प्रकार के पटाखों- स्पार्कल, चक्र और फ्लावर पॉट (Sparkle, Chakra and Flower pot) के लिए ही किया जा सकता है।
गौरतलब है कि भारत में 90 प्रतिशत पटाखों का निर्माता तमिलनाडु का शिवकाशी है और Sri Velavan Fireworks भी वहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने दीपावली पर रात 8 से 10 बजे के बीच पटाखे चलाने का समय निर्धारित किया है। त्योहार पर Green Crackers चलाने का आदेश है लेकिन इनकी कीमत अन्य पटाखों से तीन गुना ज्यादा है। ऐसे में लोग ग्रीन पटाखों से दूरी बनाते नजर आ रहे हैं। बताया गया कि ग्रीन पटाखों में मार्किट में केवल अनार और फूलझड़ी ही उपलब्ध हैं। पटाखा दुकानदारों के कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद पटाखों की बिक्री में 50 प्रतिशत तक गिरावट आई है। अब एनजीटी के निर्देश के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने 13 जिलों में आतिशबाजी पर प्रतिबंध का जो आदेश जारी किया है, उसके बाद आतिशबाजी की बिक्री में और गिरावट आने की आशंका है।
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