नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना टीकाकरण अभियान मामले में पोस्टर को लेकर दर्ज एफआईआर को रद्द करने से इन्कार कर दिया है। देश की सबसे बड़ी अदालत ने कहा, “वैक्सीनेशन ड्राइव के मामले में प्रधानमंत्री के खिलाफ आलोचनात्मक टिप्पणी वाले पोस्टर लगाने के मामले में दर्ज एफआईआर को किसी तीसरे पक्ष के आग्रह पर खारिज नहीं किया जा सकता। ऐसा करने से यह गलत नजीर बन जाएगी।”
सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता वकील प्रदीप कुमार यादव को अर्जी वापस लेने की इजाजत दे दी। पिछली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा था कि वह उन केस का डिटेल पेश करें जिनमें वैक्सीनेशन ड्राइव से संबंधित मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ आलोचनात्मक टिप्पणी वाले पोस्टर लगाने के कारण केस दर्ज हुआ है या फिर किसी की गिरफ्तारी हुई है। न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ की अगुआई वाली पीठ ने कहा कि तीसरे पक्ष की ओर से इस मामले में एफआईआर रद्द करने की जो दलील दी गई है, उस आधार पर अगर केस रद्द किया जाता है तो यह गलत नजीर बनेगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जिनके खिलाफ एफआईआर दर्ज है अगर वह पीड़ित पक्ष एफआईआर रद्द करने की गुहार लगाता है तो मौजूदा मामले में दिया गया फैसला उसमें आड़े नहीं आएगा।
सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता वकील प्रदीप यादव ने इस मामले से संबंधित केस का ब्यौरा पेश किया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम इस मामले में कैसे तय करें कि जो आपने ब्यौरा दिया है वह डिटेल ठीक है। हम तीसरे पक्ष की ओर से लगाई गई गुहार पर केस रद्द करने का आदेश पारित नहीं कर सकते। यह आदेश अपवाद वाले मामले में होता है। जैसे अगर किसी तीसरे पक्ष के तौर पर अभिभावक अप्रोच करते हैं तो आदेश पारित होता है। तीसरे पक्ष के कहने पर अगर एफआईआर रद्द करने का आदेश हुआ तो गलत नजीर बन जाएगी।
प्रधानमंत्री के टीकाकरण नीति पर सवाल उठाते हुए पोस्टर लगाने वालों के खिलाफ दर्ज एफआईआर रद्द करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई गई थी। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अर्जी में कहा गया था कि लोगों से सरोकार वाली अभिव्यक्ति मौलिक अधिकार है और ऐसे में पोस्टर लगाने वाले लोगों के खिलाफ दर्ज केस अवैध है और तमाम केस रद्द होना चाहिए और आगे ऐसे मामले में केस दर्ज न करने का भी निर्देश जारी किया जाए।
वकील प्रदीप कुमार यादव ने रिट दाखिल कर गुहार लगाई थी कि इस मामले से संबंधित तमाम केस रद्द किए जाएं। याचिका में कहा गया था कि दिल्ली में दो दर्जन ऐसे केस दर्ज किए गए हैं और 24 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। इस मामले में विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हवाला दिया गया था और कहा गया था कि देश के हर नागरिक को विचार अभिव्यक्ति की आजादी मिली हुई है और जो जन सरोकार से संबंधित मामले में विचार अभिव्यक्ति करता है वह मौलिक अधिकार है।