भाजपा ने साध्वी प्रज्ञा के उस बयान से किनारा कर लिया जिसमें उन्होंने महात्मा गांधी के हत्याभियुक्त नाथूराम गोडसे को देशभक्त कहा था। प्रधानमंत्री मोदी ने भी साध्वी को क्षमा न करने की बात की। चुनाव आचार संहिता के कारण भाजपा या पीएम मोदी ने ऐसा किया हो सकता है। लेकिन साध्वी प्रज्ञा ने अपने बयान में न तो गांधी जी के प्रति कोई गलत बात कहीं। हां, चुनावी नफा-नुकसान के डर से तत्काल टिप्पणी कर पल्ला झाड़ने से कोई बहुत अच्छा संदेश भाजपा ने नहीं दिया है।
जब यह विषय चर्चा में आ ही गया है तो एक बार इस पर विस्तृत चर्चा और विश्लेषण की आवश्यकता है। सवाल यह है कि ‘‘गोडसे देशभक्त थे’’ ऐसा कहा गया, इसमें क्या गलत है? नाथूराम गोडसे देशभक्त थे या नहीं इस बात को समझने के लिए पहले यह जानना जरूरी है कि ‘देशभक्ति’ क्या है और देशभक्त कैसा होता है?
मेरे विचार से वह प्रत्येक व्यक्ति देशभक्त है जो देश की चिन्ता करे। देश के विभाजन की बात पर जिसे स्वभाविक क्रोध आये। देश के नागरिकों के जनसंहार पर जो आक्रोशित हो। देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ जो आन्दोलन करे, वो प्रत्येक नागरिक देशभक्त होता है।
जहां तक सवाल नाथूराम गोडसे का है तो नाथूराम को देश के विभाजन की पीड़ा थी। उन्हें विभाजन का दर्द सालता था। विभाजन के समय भारत के लोगों की नृशंस हत्याएं गोडसे को कचोटती थीं। पाकिस्तान से ट्रेन में भरकर भारत भेजी जा रही लाशें, किसी भी संवेदनशील व्यक्ति को आक्रोशित या विक्षिप्त कर देने के लिए काफी थीं। जनसंहार के ऐसे हृदय विदारक दृश्यों को देखकर सामान्य नागरिक का मानसिक सन्तुलन बिगड़ सकता है तो एक योद्धा का आक्रोशित होना भी स्वाभाविक है।
नाथूराम गोडसे निर्विवाद रूप से एक बहादुर व्यक्ति थे, उन्होंने बगैर किसी लाग लपेट कोर्ट में अपने बयान में न्यायाधीश के समक्ष तथ्यों पर अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत किया था।
इस सबके बावजूद बहादुर एवं गंभीर व्यक्ति का एक और लक्षण होता है भावनाओं पर नियन्त्रण। बस, नाथूराम गोडसे यहीं चूक गये और अपनी भावनाओं को नियंत्रित नहीं रख सके। इसे आक्रोशातिरेक कहें या भावावेश कि गोडसे ने गांधी जी की हत्या कर दी। हत्या को किसी भी तर्क से सही कृत्य नहीं ठहराया जा सकता लेकिन इससे नाथूराम गोडसे देशभक्त नहीं रहे, यह भी कहना सही नहीं है।
गांधी जी की हत्या के बाद गोडसे भागे नहीं। उन्हें भी अहसास था कि उन्होंने गलत किया किन्तु देशभक्ति की भावना उन पर हावी थी। नाथूराम गोडसे ने ये सब कोर्ट में स्वीकार किया था, जिसकी ऑडियो आज भी बाजार में उपलब्ध है।
गोडसे के निजी विचारों में वह भारत राष्ट्र के विभाजन के लिए सीधे तौर पर गांधी जी को ही दोषी मानते थे। गोडसे का मानना था कि गांधीजी चाहते तो यह विभाजन रोका जा सकता था, किन्तु नेहरू प्रेम की वजह से गांधी जी ने उसे नहीं रोका और देश दो भागों में बंट गया। अब यह जनता को तय करना है कि “गोडसे देशभक्त थे या नही”.
नाथूराम गोडसे ने कोर्ट में भी गांधी जी की हत्या को ‘‘गांधी वध’’ कहा। इसके लिए उन्होंने अपना पक्ष रखते हुए श्रीमद्भगवत गीता के श्लोकों का उदाहरण देते हुए हत्या और वध का अन्तर स्पष्ट किया। इससे इतर यह भी सत्य है कि गोडसे के तर्क जो भी हों, समूचा राष्ट्र गांधीजी की हत्या के लिए उन्होंने क्षमा नहीं कर सकता। गोडसे को इस कृत्य के लिए सजा भी मिल चुकी है। इस सबके बाजवूद वह देशद्रोही नहीं हो जाता। नाथूराम गोडसे की देशभक्ति को कोई नकार नहीं सकता।