प्रसंगवश : विशाल गुप्ता
प्रसंगवश : विशाल गुप्ता

लोकसभा चुनाव 2019 पूर्ण हुआ। प्रत्याशी लड़े, दल लड़े, परिणाम आया और प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में एनडीए को प्रचण्ड बहुमत मिला। इस चुनाव की खास बात यह रही कि विपक्ष दो दर्जन दलों के अलग-अलग नेता और प्रत्याशी अपने और अपनी पार्टी के एजेण्डे पर लड़ रहे थे। जबकि भाजपा समेत समूचे एनडीए के प्रत्याशी या घटक दलों के नेता नहीं, हर सीट पर लड़ रहे थे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी।

मोदी जहां भी जाते, मोदी-मोदी-मोदी-मोदी के नारों से जनता उनका स्वागत अभिनन्दन करती। कई बार तो कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, प्रियंका गांधी समेत सभी विपक्षी नेताओं की जनसभाओं में भी मोदी-मोदी के नारे लगते रहे। प्रचार चलता रहा। विपक्षी नेता अपनी जनसभाओं और अपने रोड शो के दौरान मोदी-मोदी के नारे लगने पर इसे मोदी और भाजपा का शिगूफा बताते रहे।

कभी राफेल तो कभी चौकीदार चोर के नारे लगे। इतना ही नहीं कांग्रेस समेत समूचे विपक्ष ने ईवीएम को मुद्दा बनाकर उसकी हैकिंग के दावे कर डाले। वोट पड़ने के तत्काल बाद से प्रत्याशी और उनके समर्थक स्ट्रॉन्ग रूम के बाहर चौकीदारी करते दिखायी दिये। हालांकि पूरे दो महीने के चुनाव प्रचार और मतदान के दौरान कहीं भी कोई ऐसी शिकायत नहीं मिली कि किसी पार्टी को डाला गया वोट किसी अन्य पार्टी के खाते में गया हो। कहीं से भी वीवीपैट में अन्तर की कोई सूचना नहीं आयी। इसके बावजूद एक झूठ को सौ बार बोलकर सत्य सिद्ध करने पर अड़े विपक्षी नेता जनता के मिजाज को भांप नहीं पाये।

कांग्रेस हो या वामदल, टीएमसी हो या सपा-बसपा का महागठबंधन, सभी एक स्वर से ईवीएम की हैकिंग के दावे करते रहे। इसके विपरीत विपक्षियों की अभद्रता, गालियों और अनर्गल आरोंपों को अपना हथियार बनाकर विरोधियों पर पलटवार करते मोदी ने कब वोटरों के दिल और दिमाग हैक कर लिये कोई समझ ही नहीं सका।

कांग्रेस ने प्रधानमंत्री मोदी के चौकीदार कहने पर चौकीदार चोर का नारा दिया तो मोदी ने देखते ही देखते पूरे देश में करोड़ों चौकीदार खड़े कर दिये। अंततः सुप्रीम कोर्ट में राहुल गांधी को माफी मांगनी पड़ी। इसे कांग्रेस अध्यक्ष की अनुभवहीनता कहें ये बचपना या अति उत्साह, जो भी हो खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ा।

इसके बाद सेना के पराक्रम का इस्तेमाल का आरोप लगाया तो मोदी ने पलटवार करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष के पिता राजीव गांधी के आईएनएस विराट का इस्तेमाल एक टैक्सी की तरह किये जाने की कलई खोलकर रख दी। राफेल विमान मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट ने ही क्लीनचिट जैसी देकर भ्रष्टाचार के बम को फुस्स कर दिया। रही-सही कसर कांग्रेस के बयानवीरों ने ओसामा जी, हुआ तो हुआ, मसूद अजहर साहब, हिन्दू आतंकवादी… जैसे बयान देकर पूरी कर दी। इन सभी ने कांग्रेस की हिचकोले खाती नाव में एक के बाद एक छेद कर दिये।

वास्तविकता में मोदी ने इस चुनाव में ढील का पेंच लड़ाया और विरोधी मोदी ट्रैप में फंसते चले गये। विरोधियों और विपक्षियों ने पीएम मोदी को जितनी गालियां दीं, मोदी की सक्रियता लोगों के दिलो-दिमाग पर और अधिक छा गयी।

सारे राजनीतिक पंडित, रंग, जाति, धर्म, वर्ग, अगड़ा-पिछड़ा, दलित-मुस्लिम, बनिया, ठाकुर, सवर्ण जैसे आंकड़ों के गुणा-भाग करते रहे। इधर चुनाव भी परवान चढ़ता रहा। किसी ने पिछले पांच सालों में निष्क्रिय भाजपा सांसदों के नाकारापन को मुद्दा नहीं बनाया। किसी ने गोद लिये गांवों की स्थिति को मुद्दा नहीं बनाया। सब केवल और केवल मोदी के पीछे पड़े थे कि कैसे भी हो ‘‘मोदी रोको अभियान’’ पूरा होना चाहिए।

इसके उलट मोदी को अपनी पार्टी के सांसदों के निकम्मेपन की पूरी जानकारी थी। वह खुद चाहते थे कि पूरा चुनाव ‘‘मोदी पक्ष और मोदी विरोध’’ पर टिक जाये। वही हुआ भी। मोदी ने अपनी सरकार द्वारा लागू की गयी योजनाओं के लाभार्थियों के दिलों को जीत लिया था। ‘इज्जतघर’ हो या गरीबों को प्रधानमंत्री आवास, उज्ज्वला योजना हो या आयुष्मान भारत योजना या फिर किसानों को हर चार महीने पर 2000 रूपये सीधे खाते में भेजना, जैसी योजनाओं को ठीक से भुनाया। विपक्ष इन योजनाओं को जानबूझकर अनदेखा करता रहा। इससे जनता में आक्रोश और बढ़ा। फिर परिणाम हम सबके सामने है।

हालांकि इस प्रचण्ड बहुमत से प्रधानमंत्री मोदी पर जिम्मेदारी भी और ज्यादा बड़ी आ गयी है। उन्हें इस 2019 से 24 के कार्यकाल में स्वयं तो काम करना ही है साथ ही अपने सांसदों को भी कसना है। अकेला मोदी आखिरकार कितनी बार सांसदों के जितवायेगा।

error: Content is protected !!