इस फिल्म में सिंधु के करियर के सफर को और कोच गोपीचंद के साथ उनके तालमेल को दिखाया गया है। ‘गेटोरेड’ की ब्रैंड एम्बेसेडर सिंधु ने कहा, “कोच गोपीचंद ने मेरे लिए अथक प्रयास किया है और मेरे लिए उनकी आंखों में बड़े सपने थे।वह मेरा विश्वास हैं।’गेटोरेड’ के साथ इस फिल्म पर काम करना मेरे लिए घर जैसा अनुभव था। मैं कोच की ओर से मेरे करियर के लिए दिए गए योगदान की कर्जदार हूं।”
‘आई हेट माई टीचर’
सिंधु ने कहा कि शिक्षक दिवस के अवसर पर वह अपनी सफलता का सारा श्रेय अपने कोच को देती हैं। उन्होंने कहा, “आईए हमें आगे बढ़ाने के लिए हम अपने शिक्षक के हमें आगे बढ़ाने के लिए और हम पर विश्वास करने के लिए’ इस फिल्म के निर्माण के पीछे का विचार प्रशिक्षकों, शिक्षकों, कोचों और उनके शिष्यों के बीच नफरत और प्रेम के रिश्ते को दर्शाना है।
बता दें कि रियो ओलंपिक में भारत को सिल्वर मेडल दिलाने वाली पीवी सिंधु की सफलता के पीछे कोच पुलेला गोपीचंद की कठोर तपस्या का भी हाथ है।गोपीचंद ने भारत में बैडमिंटन को घर-घर तक पहुंचाया है। रिटायरमेंट लेने के बाद उन्होंने अपनी एकेडमी खोली और सिखाने की जिम्मेदारी संभाल ली।इसके बाद आए साइना नेहवाल, पीवी सिंधु, किदांबी श्रीकांत, परुपल्ली कश्यप जैसे सितारे।आज यह खिलाड़ी दुनिया के बेस्ट बैडमिंटन खिलाड़ियों में से एक हैं। गोपीचंद का परिश्रम उनके शिष्यों की सफलता के पीछे छुप जाता है। आज के जमाने के इस ‘द्रोणाचार्य’ ने किस तरीके से बैडमिंटन को एक नया मुकाम दिया।
गोपी अपने स्टूडेंट्स को किसी बच्चे की तरह ट्रीट करते हैं।उनकी कही हर बात कानून होती है। गोपी ने 21 साल की सिंधु के लिए उनकी फेवरेट चॉकलेट और हैदराबादी बिरयानी पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दी थी।कोई भी ऐसी चीज जो सिंधु को डोप टेस्ट में फेल करा सकती थी या जिससे उन्हें इनफेक्शन हो सकता था, खाने की गोपी की तरफ से सख्त मनाही थी।यह नियम उन्होंने मिठाइयों से लेकर मंदिर के प्रसाद तक पर लगा रखा थी।
एकेडमी में सूरज की किरणें पहुंचने तक तीन घंटे गोपी की कड़क आवाज में निर्देश गूंज रहे होते हैं. “ऊपर.. और ऊपर… और ऊपर…” वह सिंधु को तब तक पुश करते रहते हैं जब तक कि वह अपना बेस्ट शॉट न लगाएं। कभी वह कोर्ट के किनारे पर खड़े होकर किसी मशीनगन की तरह एक के बाद एक सिंधु पर शटल्स फेंकने लगते है और उसे शॉट लगाने को कहते हैं ताकि उनकी फ्लैक्सिबिलिटी को टेस्ट कर सकें। गोपी और सिंधु को ट्रेनिंग करते हुए देखना किसी मिलिट्री सार्जेंट को काम करते हुए देखने जैसा लगता है।
गोपी कहते हैं, “मैं जो करता हूं मुझे वह पसंद है. मैं खुद को किस्मत वाला मानता हूं कि मैं जो करता हूं मुझे वह करने का मौका मिला है।” यह बताता है कि गोपी असल में कभी खेल से रिटायर हुए ही नहीं. गोपी की यह एकेडमी चैंपियन्स बनाने वाली किसी फैक्ट्री की तरह है।42 साल के गोपी ने उनके 13 साल के कोच करियर में अपने गुरुकुल से कई धुरंधर निकाले हैं. गोपी की यह एकेडमी देश भर के टैलेंट को आकर्षित करती है क्योंकि देश भर में इस तरह चलाई जाने वाली एक भी एकेडमी नहीं है। गोपी बताते हैं, “चैंपियंस बनाना कोई पार्ट टाइम बिजनेस नहीं है। आपको इंटरनेशनल लेवल तक पहुंचने के लिए कुछ चीजों को लगातार करना होता है।”
(एजेंसी इनपुट के साथ)
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