नई दिल्ली। गणेश पुराण में कहा गया है कि स्वस्तिक चिह्न भगवान गणेश का स्वरूप है, जिसमें सभी विघ्न-बाधाएं और अमंगल दूर करने की शक्ति है। आचार्य यास्क के अनुसार स्वस्तिक को अविनाशी ब्रह्म की संज्ञा दी गई है। इसे धन की देवी लक्ष्मी यानी श्री का प्रतीक भी माना गया है।
ऋग्वेद की एक ऋचा में स्वस्तिक को सूर्य का प्रतीक भी माना गया है, जबकि अमरकोश में इसे आशीर्वाद, पुण्य, क्षेम और मंगल का प्रतीक माना गया है। इसकी मुख्यत: चारों भुजाएं चार दिशाओं, चार युगों, चार वेदों, चार वर्णों, चार आश्रमों, चार पुरुषार्थों, ब्रह्माजी के चार मुखों और हाथों समेत चार नक्षत्रों आदि की प्रतीक मानी जाती है। भारतीय संस्कृति में स्वस्तिक को कल्याणकारी माना गया है। सर्वत्र यानी चतुर्दिक शुभता प्रदान करने वाले स्वस्तिक में गणेशजी का निवास माना जाता है। यह मांगलिक कार्य होने का परिचय देता है।
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