नई दिल्ली। मुस्लिम महिला को अदालत के बाहर अपने पति को एकतरफा तलाक देने का अधिकार है जिसे खुला कहा जाता है। केरल हाईकोर्ट ने इसे कानूनी रूप से वैध माना है। न्यायमूर्ति ए मुहम्मद मुस्तकीम और न्यायमूर्ति सीएस डायस की खंडपीठ ने खुला के अधिकार को मुस्लिम पुरुषों के लिए उपलब्ध तलाक के अधिकार की बराबरी का माना है। हाईकोर्ट ने वर्ष 1972 के फ़ैसले (केसी मोयिन बनाम नफ़ीसा और अन्य) को गलत ठहराया जिसमें मुस्लिम महिलाओं को ऐसे अधिकार से वंचित रखा गया था।
1972 के फैसले में एक एकल पीठ ने कहा था कि एक मुस्लिम महिला अपने पति को अदालत से बाहर तलाक नहीं दे सकती। मुस्लिम पुरुषों को इस माध्यम से तलाक देने की अनुमति है। अदालत ने अपने फैसले में कहा था कि महिलाओं को मुस्लिम विवाह विघटन अधिनियम 1939 (DMMA) के तहत कोर्ट का रास्ता अपनाना आवश्यक है।
हाईकोर्ट ने कहा, “खुला तलाक का एक रूप है जो पत्नी को पति की तरह तलाक देना का अधिकार देता है। तलाक के एक रूप के रूप में खुला की मान्यता सीधे पवित्र कुरान से उपलब्ध है। अध्याय II छंद 228-229 में इसका जिक्र है। कुरान पति और पत्नी दोनों को तलाक देने का अधिकार देता है।”
अदालत ने कहा कि अगर पत्नी ने मेहर लौटाने से इन्कार कर दिया, तो पति अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है।